पिछले कुछ महीनों के गति विधियों पर अगर नज़र डालें, तो देश में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिस पर जरुरत है आवाज उठाने और बुलंदी के साथ इसको आगे लेकर जाने की. एक तरफ कृषि कानून बिल वापसी को लेकर देश के किसान काफ़ी ख़ुश हैं, तो वहीं किसान कुछ ऐसे परेशानियों से भी गुज़र रहे हैं, जिसका हल निकलना अति आवश्यक हो गया है.
दरअसल, रबी सीजन की मुख्य फसलों में गेहूं, सरसों और अन्य साग-सब्जियां शामिल हैं, लेकिन खाद की कमी ने किसानों को परेशानियों में जकड़ लिया है. ये भी सच है कि जहां विशेषज्ञ और सफल किसान आर्गेनिक खेती की ओर अपना रुख करने को कह रहे हैं, तो वहीं अभी भी अधिकांश किसान ऐसे हैं, जो रासायनिक खेती पर निर्भर हैं. इसका मुख्य कारण अच्छी उपज और कम लागत है.
ऐसे में खाद्य की कमी से किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है. गेहूं, सरसों और आलू की बुवाई के मुख्य सीजन में देश के कई राज्यों में किसान डीएपी और एनपीके जैसे रासायनिक उर्वरकों के लिए परेशान हैं. पिछले करीब डेढ़ महीने से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में खाद के लिए लेकर भटक रहे हैं. वहीं अक्टूबर के महीने में यूपी में 2 तो मध्य प्रदेश में एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी. जिसके बाद डीएपी-एनपीके के लिए कई जगहों पर किसानों द्वारा जम कर हंगामा हुआ विरोध प्रदर्शन भी किया गया.
किसानों के मुताबिक वो 1200 वाली डीएपी 1500 तो 1475 वाली एनपीके 1800 से 2000 रुपए तक में खरीदने को मजबूर हैं. यहां तक की कई किसानों ने बिना खाद के हीं बुवाई कर दी. इससे पहले की समय निकल जाता किसानों ने खुद का नुक्सान होने से बचाया.
वहीं, उत्तर प्रदेश में किसानों को दिवाली के बाद 5 दिन तक चक्कर लगाने के बाद डीएपी मिल पाई वो भी गांव से 50 किलोमीटर दूर से, जब तक उर्वरक मिली उनके खेतों में डीजल से पलेवा लगाकर की गई नमी तक कम हो गई थी. इसी जिले में अक्टूबर महीने में 4 किसानों की जान खाद के चलते गई थी, जिसमें 2 खाद की लाइन में लगने के चलते हुई थी, जबकि दो ने आत्महत्या की थी.
हालांकि, प्रशासन ने मौत की वजह खाद की किल्लत नहीं मानी थी. ललितपुर से सटे मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में एक किसान ने 29 अक्टूबर को खाद की किल्लत के चलते आत्महत्या कर ली थी. प्रशासन ने यहां भी आत्महत्या की वजह खाद नहीं माना था. मध्य प्रदेश में भी डीएपी की किल्लत अभी जारी है. मध्य प्रदेश में शिवनी जिले में पारसपानी तहसील में केवलारी गांव के किसान के मुताबिक उन्होंने गेहूं बुवाई के लिए उन्हें फुटकर में 35 बोरी डीएपी मिली है.
किसानों का कहना है कि "अभी हालात थोड़े सुधरे हैं लेकिन डीएपी अभी भी 1500 रुपए बोरी मिल रही है. यहां की खेती नहर में पानी आने पर निर्भर करती है, तो किसान सरकार से खाद आने का इंतजार नहीं कर सकता है. कई छोटे किसानों ने हमारे यहां मजबूरी में बिना डीएपी-एनपीके डाले ही बुवाई कर दी है."
बता दें कि रबी सीजन में सरसों, गेहूं, आलू, चना, मटर, मसूर की बुवाई के लिए डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) और एनपीके (NPK), सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP)और एमओपी की जरुरत होती है. इनमें भी सबसे ज्यादा जरूरत डीएपी की होती है, जो किसानों को बुवाई के वक्त जमीन में ही देना होता है. लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसान लगातार खाद को लेकर परेशान हैं.
फिलहाल, सरकार लगातार किल्लत की बात से इनकार करती रही है. केंद्रीय उर्वरक एवं रसायन मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि देश में कुछ समय के थोड़े हिस्से में किल्लत हुई थी, लेकिन वो भी सप्लाई के चलते, बाकी देश में पर्याप्त उर्वरक हैं. केंद्रीय उर्वरक मंत्री ने कहा कि बारिश के चलते थोड़े समय के लिए दिक्कत थी.
केंद्रीय उर्वरक मंत्री Mansukh Mandaviya ने एक रिपोर्ट में कहा, "बुंदेलखंड में (यूपी और एमपी) के कई हिस्से, मध्य प्रदेश के कई दूसरे हिस्से ( भिंड ग्वालियर बेल्ट) और राजस्थान के कई पार्ट में एकाएक पिछले दिनों बारिश हो गई थी. ऐसे में किसानों को दोबारा बुवाई करनी पड़ी, इसलिए दोबारा उसे उर्वरक की जरूरत पड़ी. केंद्रीय उर्वरक मंत्री 12 नवंबर को लखनऊ में एक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे.
उन्होंने आगे कहा, "उत्तर प्रदेश में नवंबर महीने के लिए 6 लाख मीट्रिक टन डीएपी मांगी गई थी, केवल 11 दिन में पौने 3 लाख मीट्रिक टन डीएपी पहुंचाई गईं. 11 नवंबर को 14 रैक पहुंचीं, 12 को 13 रैक पहुंची हैं. आगे भी रैक आती रहेंगी. यूरिया स्टेट की जरूरत से ज्यादा उपलब्ध कराया गया है. एनपीके की भी कोई किल्लत नहीं है.जहां एक तरफ किसानों का कहना है कि देश में खाद्य की भरी कमी है और इसका हर्जाना किसानों को भुगतना पड़ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ सत्ता पार्टी और विपक्ष ने मिलकर इससे राजनितिक रंग देने के प्रयास में लगी हुई है.
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