देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों (Farm Law) की वापसी का ऐलान कर दिया है. इस घोषणा के कृषि कानून वापसी को लेकर कैबिनेट से मंजूरी मिल गई, लेकिन इसके बाद भी किसान आंदोलन जारी है. दरअसल, अभी किसान संगठन द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर लीगल गारंटी की मांग की जा रही है.
उनका कहना है कि सरकार द्वारा गेहूं और धान समेत अन्य फसलों पर भी एमएसपी देने की घोषणा की जानी चाहिए. इस दौरान स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के अर्थशास्त्रियों की पांच कृषि सुधारों की रिपोर्ट काफी चर्चा में है. उनका मानना है कि इन सुधारों से कृषि क्षेत्र का कायाकल्प हो जाएगा, साथ ही यह किसानों के हित में भी होगा.
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की पांच कृषि सुधारों की रिपोर्ट (SBI economists report on five agricultural reforms)
-
एमएसपी की जगह खरीद की मात्रा तय हो
-
ई-नाम पर ऑक्शन के लिए एमएसपी को फ्लोर प्राइज में बदला जाए
-
मंडियों को मजबूती प्रदान हो
-
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए संस्था बने
-
सभी राज्यों से एक समान मात्रा में खरीद की जाए
एमएसपी की जगह खरीद की मात्रा तय हो (Purchase quantity should be fixed instead of MSP)
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो एसबीआई (SBI) के अर्थशास्त्रियों की राय है कि सरकार द्वारा एमएसपी पर गारंटी की जगह कम से कम पांच साल के लिए एक तय मात्रा तक खरीद की गारंटी दी जाए. यानि सरकार की तरफ से गारंटी दी जाए कि पिछले साल कुल उत्पादन की जितनी खरीद हुई, कम से कम उतनी पैदावार की खरीद एमएसपी पर की जाए.
ई-नाम पर ऑक्शन के लिए एमएसपी को फ्लोर प्राइज में बदला जाए (MSP to be converted into floor price for auction on e-NAM)
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ई-नाम पोर्टल पर ऑक्शन के लिए एमएसपी की जगह एक फ्लोर प्राइज तय कर दिया जाए. बता दें कि फ्लोर प्राइज किसी वस्तु या उत्पाद की वह सबसे कम कीमत होती है, जिस पर उसकी खरीद या बिक्री होगी. यानि किसी भी पैदावार की फ्लोर प्राइज से नीचे ना बेचा जाए.
मंडियों को मजबूती मिले (Markets should be strengthened)
इसके साथ ही एसबीआई की रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) यानि मंडियों को मजबूत प्रदान की जाए. अनुमान लगाया गया है कि कटाई और कटाई के बाद के नुकसान को मिलाया जाए, तो कुल 27000 करोड़ रुपए के अनाज का नुकसान होता है. वहीं, यह नुकसान दलहन और तिलहन में लगभग 10,000 करोड़ रुपए का है. इस स्थिति में अगर मंडियों को मजबूती मिलेगी, तो यह नुकसान कम होगा.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए संस्था बने (Become an organization for contract farming)
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत कंपनियां या संस्थाएं पहले से तय एक भाव पर पैदावार की गुणवत्ता और मात्रा को लेकर डील करती हैं. इसके तहत समस्या यह होती है कि अगर किसान की पैदावार तय गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी है, तो कंपनियां औने-पौने दाम पर फसल खरीदती हैं. इसके अलाव फसल खरीदने से मना भी कर देती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है.
यानि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में फसल की बुवाई के समय ही दाम तय हो जाते हैं. ऐसे में अगर कटाई के समय बाजार में फसल के दाम ज्यादा हों, तब भी किसानों को उसी दाम पर फसल बेचना पड़ती है. इस तरह किसानों को काफी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है.
सभी राज्यों से हो एक समान मात्रा में खरीद (Procurement in equal quantity from all the states)
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश के सभी राज्यों में एक समान मात्रा में फसलों की खरीद नहीं की जा रही है. सरकारी आंकड़ों की मानें, तो हरियाणा व पंजाब से लगभग 83 प्रतिशत अनाज की खरीद हुई है. वहीं, अन्य राज्यों में खरीद का प्रतिशत एक अंकों में रहा है. इस तरह साफ होता है कि उन राज्यों के किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं मिल रहा है. ऐसे में यह साफ जाहिर है कि हर राज्य में एक समान मात्रा में खरीद की व्यवस्था नहीं है, लेकिन अब ऐसा होना चाहिए. होनी चाहिए.
Share your comments