भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के दिल्ली स्थित पूसा अनुसंधान ने सरसों की एक ऐसी किस्म विकसित की है जिससे न केवल उत्पादन में बढ़ावा मिलेगा, साथ ही साथ इसके तेल की क्वालिटी भी बहुत अच्छी होगी. सरसों की इस किस्म से किसानों की आय बढ़ेगी और खाने वालों की सेहत अच्छी रखेगी. इस किस्म का बीज अगले साल से पूसा अनुसंधान तथा आईसीएआर के अन्य अनुसंधान में उपलब्ध हो जाएगा. इस नई किस्म का नाम पूसा मस्टर्ड- 32 (PM- 32) रखा गया है.
सामान्य सरसों की तुलना में बेहतर यह किस्म (This variety is better than normal mustard)
साधारण सरसों के तेल में 42% फैटी एसिड होता है. इसे इरुसिक एसिड कहते हैं. यह इरुसिक एसिड हृदय संबंधी रोग उत्पन्न करता है. जबकि पूसा मस्टर्ड- 32 किस्म के तेल में यह इरुसिक एसिड 2% से कम पाया गया है. पूसा संस्थान ने इससे पहले पहले डबल जीरो सरसों-31 किस्में विकसित की थी. इसमें भी इरुसिक एसिड 2% से कम है. वैसे सामान्य सरसों के प्रति ग्राम खली में ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा 120 माइक्रोमोल होती है. जबकि इस नई पूसा- 31 में माइक्रोमोल कम है और इसमें ऐसा ग्लूकोसिनलेट्स सल्फर कंपाउंड होता है. जिसका इस्तेमाल जुगाली करने वाले पशुओं के भोजन के रूप में नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे घेंघा रोग हो जाता है.
सरसों की नई किस्म से किसानों की बढ़ेगी इनकम (The new variety of mustard will increase the income of farmers)
अभी रबी के सीजन में सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 4650 रुपये प्रति क्विंटल है. नई किस्म से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार ली जा सकती है, जिससे 1.16 लाख रुपए की आय हो सकती है. इस सरसों की किस्म से एक तरफ लोगों की हेल्थ ठीक होगी, वहीं दूसरी तरफ किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होने वाली है.
अधिक खाद्य तेलों की आवश्यकता क्यों (Why need more edible oils)
देश में खाद्य तेलों के मामले में देश को दूसरे देशों से ये तेल आयात करना पड़ता है. क्यों कि हमारे देश की खाद्य तेलों की मांग देश की उपज से पूरी नहीं होती और विदेशी मुद्रा का कोष भी कम होता है. इसलिए अधिक तिलहनी फसल को उगाकर हम खाद्य तेलों में आत्म निर्भर बन सकते हैं. खाद्य तेलों के इंपोर्ट पर सालाना 17 हजार करोड रुपए खर्च हो रहे हैं.
दक्षिण भारत के किसान भी कर सकते हैं इसकी बुवाई (South Indian farmers can also grow it)
पूसा 31 किस्म के साथ किसानों के लिए अच्छी बात यह है कि 100 दिन में पककर तैयार हो जाती है. दक्षिण भारत के लोग झाग की वजह से सरसों के तेल का इस्तेमाल कम करते हैं इसलिए इस किस्म के सरसों की बुवाई दक्षिण के किसान भी कर सकते हैं.
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