ओडिशा ने देसी पशु नस्ल पंजीकरण में अपनी पहचान बना ली है. दरअसल, ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र में पाए जाने वाली मांडा भैंस को 19वीं देसी नस्ल के रूप में मान्यता दी गई है.
बता दें कि पूर्वी घाट की मांडा भैंस (Manda buffalo) आकार में छोटी होती हैं, लेकिन काफी मजबूत होती हैं. इनमें बाल तांबे के रंग की तरह होते हैं, साथ ही राख ग्रे और भूरे रंग का एक अनूठा कोट रंग होता है.
इसके अलावा पैरों का निचला हिस्सा हल्के रंग का होता है, तो वहीं घुटनों पर तांबे के रंग के बाल पाए जाते हैं. इसके अलावा कुछ भैंस नस्लों का रंग चांदी की तरह होता है.
किसने की मांडा भैंस की पहचान (Who identified the Manda buffalo)
सबसे पहले मांडा भैंस (Manda buffalo) की पहचान मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास (FARD) विभाग की मदद से ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने की.
इसके लिए एक विस्तृत सर्वेक्षण किया गया, जिसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) को भेजा गया था.
इसके बाद स्वदेशी अनूठी भैंस मांडा को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने का फैसला लिया गया. बता दें कि अब इस भैंस को देश में 19वीं नस्ल घोषित कर दिय गया है.
मांडा भैंस का उपयोग (Use of manda buffalo)
इस भैंस के पास एक अलग प्रजनन पथ है, साथ ही पूर्वी घाट की पहाड़ी श्रृंखला और कोरापुट क्षेत्र के पठार का भौगोलिक वितरण है. भैंस की इस नस्ल के नर और मादा, दोनों का उपयोग जुताई और कृषि कार्यों में होता है.
इसका उपयोग कोरापुट, मलकानगिरी और नबरंगपुर में किया जाता है.
सूत्रों का कहना है कि साल 2009 में जर्मप्लाज्म और नस्ल का एक विस्तृत सर्वेक्षण हुआ.
इसे पशु संसाधन विकास विभाग द्वारा ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की मदद से एआरडी के तत्कालीन निदेशक, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बिष्णुपद सेठी और पशु आनुवंशिकीविद् सुशांत कुमार दास के नेतृत्व में शुरू किया गया था.
मांडा भैंस की परिपक्व क्षमता (Maturity Capacity of Manda Buffalo)
ये भैंस लगभग 3 साल में परिपक्व हो जाती हैं. पहले बछड़े को 4 साल में छोड़ देती हैं, तो वहीं हर 1.5 या 2 साल में एक बछड़े को जन्म देती हैं. यह प्रक्रिया लगभग 20 साल तक चलती है.
मांडा भैंस देती है 2 से 2.5 लीटर दूध (Manda buffalo gives 2 to 2.5 liters of milk)
खास बात यह है कि इन भैंसों से औसतन दूध का उत्पादन एक बार में 2 से 2.5 लीटर तक मिल जाता है. इस दूध में 8 प्रतिशत से अधिक फैट होता है. हालांकि, इसकी कुछ नस्लों से4 लीटर तक दूध भी मिलता है.
बिना इनपुट सिस्टम कर सकती हैं काम (System can work without input)
मांडा भैंस को स्वदेशी नस्ल की मान्यता के लिए आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के समक्ष रखा गया था. बताया जाता है कि मंड परजीवी संक्रमण के प्रतिरोधी हैं, साथ ही इसमें बीमारियां कम होती हैं. ये नस्ल कम या बिना इनपुट सिस्टम पर रह सकती हैं. इसके अलावा उत्पादन और प्रजनन कर सकते हैं. इस नस्ल की लगभग 1 लाख भैंसें सभी कृषि कार्यों में योगदान दे रही हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि केंद्र और राज्य द्वारा अद्वितीय भैंस आनुवंशिक संसाधन के संरक्षण के लिए प्रयास किए जाएंगे. हालांकि, पहले से ही राष्ट्रीय स्तर पर भैंस नस्लों (चिलिका और कालाहांडी), 4 मवेशी नस्लों (बिंझारपुरी, मोटू, घुमुसरी और खरियार) और 1 भेड़ नस्ल (केंद्रपाड़ा भेड़) को पंजीकृत किया जा चुका है.
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