बिहार की बात करें तो सबसे पहले हमारे दिमाग में जो चीज़ आती है वो है लिट्टी चोखा, गोल घर, शाही लीची और मगही पान की. इन सब की विशेषताओं ने देशभर में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. जिसका नाम सुनते बिहार जाने का दिल करने लगता है.
यूँ तो बिहार में कई ऐसी चीज़ें हैं जो अपनी और आकर्षित करती हैं लेकिन कुछ चीज़ें ख़ास है और उसे GI TAG से सम्मानित भी किया गया है. जैसे मुज्जफरपुर की शाही लीची. लीची की यह एक ख़ास किस्म है जिसमें बीज बहुत छोटा होता है और स्वाद उतना ही रसीला. GI TAG मिलने के बाद ये ना सिर्फ हमारे देश में फेमस हुआ बल्कि विदेशों में भी इसे एक अलग पहचान मिली.
क्या है GI TAG?
वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है. ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है. भारत में संसद की तरफ से सन् 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है. ये टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है.
ऐसे में एक बार फिर बिहार के प्रसिद्ध मखाना को जल्द ही जीआई टैग मिल सकता है. भौगोलिक संकेतक मिलने से मखाना को ग्लोबल पहचान मिलेगी और बड़े मात्रा में इसकी निर्यात भी होगी, जिसका सीधा लाभ राज्य के मखाना किसानों को मिलेगा. खबर है कि ‘बिहार का मखाना’ के रूप में इसे जीआई टैग मिलेगा. आपको बता दें बिहार के मधुबनी जिले में मखाना की फसल अच्छी और अधिक होती है.
खबर के मुताबिक, केंद्र सरकार के कंसल्टेटिंग समूह ने पटना में इसकी बैठक की और इस संबंध में जरूरी कामकाज का निपटारा कर दिया. बैठक में आवेदक के दावों की सत्यता पर मुहर लग गई. अधिकारियों को मखाना के विशेषता और गुणों के बारे में भी आवेदकों ने जानकारी दी. आपको बता दें, जीआई टैग के लिए मिथिलांचल मखाना उत्पादक समूह ने आवेदन दिया था. कंसल्टेटिंग समूह के अधिकारियों ने उत्पादक समूह को भी बैठक में हिस्सा लेने के लिए बुलाया था. समूह ने मखाना के इतिहास और उत्पादन से जुड़े तथ्य भी प्रस्तुत किए.
जीआई टैग मिलने से होंगे ये फायदे
जीआई टैग मिलने के बाद मखाना का कहीं से कहीं भी मार्केटिंग किया जा सकेगा. वहीं कोई दूसरा राज्य इस उत्पाद पर दावा नहीं कर पाएगा. इससे राज्य के मखाना उत्पादक किसानों को लाभ होगा क्योंकि उन्हें एक वैश्विक बाजार और नई पहचान मिल जाएगी. इसका सीधा असर उनकी आमदनी पर पड़ेगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर मखाना को जीआई टैग मिल जाता है तो यह बिहार का पांचवा कृषि उत्पाद होगा, जिसे जीआई टैग मिला है. इससे पहले कतरनी चावल, जर्दालू आम, शाही लीची और मगही पान को जीआई टैग मिल चुका है.
बिहार में 6000 टन होता है उत्पादन
बिहार में दुनिया का 85 प्रतिशत मखाने का उत्पादन होता है. हर साल राज्य के किसान 6000 टन मखाने का उत्पादन करते हैं. बाकी का 15 प्रतिशत जापान, जर्मनी, कनाडा, बांग्लादेश और चीन में उगाया जाता है. बिहार में मखाना के उत्पादन को और बढ़ाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं.
इसकी नई और उन्नत किस्मों को विकसित करने का भी काम हो रहा है. जीआई टैग मिलने के बाद किसान उत्पादन बढ़ाकर अपनी कमाई कई गुना तक बढ़ा सकेंगे.
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