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बड़ी ख़बर! यूरिया संकट से निपटने के लिए अब फसल के हिसाब से मिलेगा खाद

देशभर के किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यूरिया खाद की आती है. यही वजह है कि यूरिया संकट से निपटने के लिए मध्य प्रदेष के कृषि विभाग ने एक नया तरीका निकाला है. विभाग ने इसके लिए एक फार्मूला तैयार किया है.

श्याम दांगी
fertilizer
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देशभर के किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यूरिया खाद की आती है. यही वजह है कि यूरिया संकट से निपटने के लिए मध्य प्रदेष के कृषि विभाग ने एक नया तरीका निकाला है. विभाग ने इसके लिए एक फार्मूला तैयार किया है.

रकबे पर नहीं, फसल पर मिलेगा ख़ाद

कृषि विभाग के इस नए फार्मूले के मुताबिक प्रदेश के किसानों को रकबे की बजाय उनके द्वारा उगाई जा रही फसल पर खाद की खुराक प्राप्त होगी. इसके लिए विभाग के कृषि अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने अनुशंसित उर्वरकों का फसल के हिसाब उपयोग होने वाली मात्रा का चार्ट तैयार किया है. जो खाद वितरण करने वाली सहकारी संस्थाओं को वितरित किया जाएगा.

मप्र इंदौर जिले में शुरू

प्रदेश के इंदौर जिले ने इस पहल की शुरूआत करते हुए रबी फसल के दौरान किसानों को इसी फार्मूले के मुताबिक खाद का वितरण किया जाएगा. प्याज, लहसुन, गेहूं, चना, आलू एवं अन्य सब्जियों के लिए यह खाद वितरित किया जाएगा. राज्य के अन्य जिलों की संस्थाओं को भी विभाग ने यह चार्ट भेजा है.

खरीफ की फसल के दौरान कमी

दरअसल, राज्य में खरीफ की फसल के दौरान यूरिया के अनियमित वितरण से अन्य जिलों में कमी आ गई थी. जहां एक तरफ यूरिया खाद की खूब कालाबाजारी हुई वहीं दूसरी तरफ कई छोटे और जरूरतमंद किसानों को खाद ही नहीं मिल पाया. कृषि विभाग के उप संचालक रामेश्वर पटेल का कहना है कि यूरिया के अनियंत्रित उपयोग के कारण किसानों की लागत में भी इजाफा हो रहा है. इसलिए अब से खाद का वितरण रकबे की बजाय फसल के हिसाब से किया जाएगा.

सोयाबीन में यूरिया की जरूरत नहीं

सोयाबीन का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश में ही होता है. यह एक दलहनी फसल होती है और इसमें यूरिया खाद देने की आवश्यकता नहीं होती है. इसके बावजूद अधिकतर किसान सोयाबीन में यूरिया खाद अनियंत्रित मात्रा में डालते हैं. राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के शस्य वैज्ञानिक डा. सुनील दत्त का कहना है कि सोयाबीन के पौधों की जड़ों में राइजोबियम नामक बैक्टीरिया पाया जाता है. जो कि वातावरण से नाइट्रोजन अवशोषित करने में सक्षम होता है. इसलिए सोयाबीन में यूरिया खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. वहीं कई किसान तो फास्फोरस और पोटाश की तुलना यूरिया अधिक डालते हैं.

किन फसलों में कौन-सा खाद डालें

गेहूं-कृषि विभाग के मुताबिक गेहूं में डीएपी खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. इसमें प्रति हेक्टेयर एनपीके 187 किलो, यूरिया 168 किलो, पोटाश 6 किलो डाला जाता है.

चना-चने में प्रति हेक्टेयर डीएपी 110 किलो डाला जाता है. इसमें यूरिया, एनपीके, सुपर फास्फेट और पोटाश देने की आवश्यकता नहीं होती है.

आलू-आलू की फसल में प्रति हेक्टेयर एनपीके 200 किलो, यूरिया 275 किलो, पोटाश 147 किलो डाला जाता है. इसमें डीएपी और सुपर फास्फेट खाद डालने की जरूरत नहीं होती है.

प्याज-प्याज में प्रति हेक्टेयर एनपीके 100 किलो, यूरिया 190 किलो, सुपर फास्फेट 138 किलो और पोटाष 140 किलो की मात्रा में डाला जाता है. इसमें डीएपी डालने की जरूरत नहीं होती है.

लहसुन-लहसुन में प्रति हेक्टेयर एनपीके 100 किलो, यूरिया 94 किलो, सुपर फाॅस्फेट 82 किलो और पोटाश 115 किलो डाला जाता है. इसमें डीएपी नहीं डाला जाता है. 

English Summary: madhya pradesh agriculture department fertilizer distribute new formula Published on: 10 October 2020, 05:23 PM IST

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