जूट मिल मालिकों की शिकायत रहती थी कि तैयार माल की बाजार में मांग नहीं है. जूट थैलों की बाजार में मांग घटने पर तो कभी-कभी जूट मिल मालिकों को कारखाने में तालाबंदी तक करनी पड़ती थी. लेकिन आज स्थिति ठीक इसकी उल्टी है. बाजार में जूट के थैले की मांग अचानक बढ़ गई है. आपूर्ति के अभाव में इसकी बाजार में कमी महसूस की जा रही है. रबी की फसल कटने के बाद अधिकांश राज्यों में अनाज को बस्तों में भर कर गोदामों या मंडियों तक ले जानी की जरूरत आ पड़ी है. लेकिन कृषि उपज की पैकेजिंग के लिए जूट थैलों की भारी कमी है.
प्राप्त खबरों के मुताबिक कृषि प्रधान अधिकांश राज्यों के किसान और व्यापारी जूट के थैलों की समस्या से जूझ रहे हैं. अनाज की पैकेजिंग के लिए जूट का थैला बहुत सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत अच्छा माना जाता है. लेकिन रबी की फसल कटने के बाद जूट के थैलों की इतनी कमी है कि उसकी जगह प्लास्टिक थैलों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र आदिर राज्यों के कृषि मंत्रियों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अनाज की पैकेजिंग के लिए जूट का थैला उपलब्ध कराने की मांग की है.
अधिक उत्पादन करने का निर्देश
इसके बाद ही जूट आयुक्त ने पश्चिम बंगाल में स्थित सभी जूट मिल मालिकों को अधिक से अधिक उत्पादन करने का निर्देश दिया है. प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक जूट के थैला की कमी के कारण अनाज की पैकेजिंग में आ रही बाधाओं पर पीएमओ भी नजर रख रहा है. सरकार की ओर से पश्चिम बंगाल के जूट मिलों को जून माह के अंत तक तीन लाख बेल जूट थैला की आपूर्ति करने का निर्देश दिया गया है. किसानों और व्यापारियों को अनाज की पैकेजिंग के लिए जूट थैला की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने को लेकर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय भी हरत में आया है. जूट थैलों के अभाव में तो सरकार को अनाज की पैकेजिंग के लिए 6.5 लाख पलास्टिक का बैग खरीदना पड़ा है.
अभी किसान और व्यापारी रबी की फसल कटने के बाद उसे मंडियों व उपयुक्त स्थान पर ले जाने के लिए जूट के थैला के अभाव से जूझ रहे हैं. यह संकट और गहराएगा जब जुलाई में कुछ खरीब की फसल की भी कटाई होगी. विभन्न राज्यों की जरूरतों को देखते हुए संबंधित सरकारी विभाग इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि खरीब की फसल के लिए 17 लाख बेल जूट के थौलों की जरूरत पड़ेगी.
उल्लेखनीय है कि पहले लॉकडाउन, उसके बाद चक्रवाती तूफान और अब श्रमिकों के अभाव को लेकर भी जूट मिलों में उत्पादन प्रभावित हुआ है. 25 मार्च से लॉकडाउन के कारण जूट मिलों में उत्पादन बंद हो गया था. कारखाना में काम बंद होते ही बिहार, यूपी, ओड़िशा और झारखंड आदि के मजदूर अपने गांव लौट गए. एक जून से अनलॉक- 1 शुरू होने पर पश्चिम बंगाल की सभी जूट मिलों में 100 प्रतिशत श्रमिकों के साथ काम शुरू करने की सरकार से अनुमति मिली. लेकिन श्रमिकों के अभाव के कारण कारखानों में सुचारू रूप से उत्पादन करना संभव नहीं हो पा रहा है. इसलिए कि अधिकांश मजदूर अपने गांव चले गए हैं और उनके जल्द लौटने की कोई संभावना नहीं है. जूट मिलों में अधिकांश प्रवासी मजदूर ही काम करते हैं. कारखाना बंद होने पर वे अपने गांव लौट जाते हैं. कुछ श्रमिक जो स्थाई रूप से यहां रहते हैं वे काम पर जाने लगे हैं. लेकिन न्यूनतम मजदूरों को लेकर कारखाना चलाना जूट मिल मालिकों के समक्ष एक चुनौती है.
वैसे सरकारी निर्देश मिलने के बाद कारखानों में प्रतिदिन 10 हजार बेल जूट का थैला उत्पादित करने का प्रयास किया जा रहा है. जूट मिल मालिकों के संगठन आईजेएमए की ओर से श्रमिकों के अभाव तथा उत्पादन बढ़ाने में आने वाली बाधाओं की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया है. उल्लेखनीय है कि जर्जर अवस्था में पहुंच चुके बंगाल का जूट उद्योग आज भी सबसे अधिक रोजगार देने वाला उद्यम है. पश्चिम बंगाल के करीब 60 जूट मिलों में लगभग 4 लाख श्रमिक कार्यत हैं. लेकिन लॉकडाउन में कारखाना बंद होने के बाद जो प्रवासी मजूदर अपने गांव चले गए हैं उनके फिलहाल लौटने की संभावना बहुत कम है.
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