किसानों का कर्ज और उनकी आत्महत्या तो देश में एक बहुत ही आम बात हो गई. ऐसा लगता है जैसे कोई हर रोज एक ही खाना खाकर परेशां हो जाता है. ठीक उसी तरह यह एक ऐसा मुद्दा है जिसकी विषय में हर रोज कुछ न कुछ सुन सकते हैं. सरकार चाहे जो भी हो लेकिन किसान सबसे बड़ा मुद्दा बनता है. किसानों की परेशानियों का समाधान किसी के पास नही है. हाल ही में मोदी सरकार ने बताया है कि देश में 52 प्रतिशत किसान परिवारों के क़र्ज़दार होने का अनुमान है और प्रति किसान परिवार पर बकाया औसत क़र्ज़ 47,000 रुपये है.
लोकसभा में एडवोकेट जोएस जॉर्ज के प्रश्न के लिखित उत्तर में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के कृषि वर्ष जुलाई 2012 – जून 2013 के संदर्भ के लिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 70वें राउंड के कृषि परिवार के सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर यह बात कही.उन्होंने बताया, ‘अखिल भारतीय स्तर पर बकाया ऋणों का लगभग 60 प्रतिशत संस्थागत स्रोतों से लिया गया था जिसमें सरकार से 2.1 प्रतिशत, सहकारी समिति से 14.8 प्रतिशत और बैंकों से लिया गया ऋण 42.9 प्रतिशत था.’
राधामोहन सिंह ने बताया कि कृषि परिवारों द्वारा ग़ैर संस्थागत स्रोतों से लिए गए बकाया ऋण में कृषि एवं व्यवसायिक साहूकारों से 25.8 प्रतिशत तथा दुकानदारों एवं व्यापारियों से 2.9 प्रतिशत, नौकरीपेशा या भूस्वामियों से 0.8 प्रतिशत, संबंधियों एवं मित्रों से 9.1 प्रतिशत तथा अन्य से 1.6 प्रतिशत ऋण लिया गया था. प्रति कृषि परिवार बकाया ऋण की औसत राशि 47,000 रुपये थी.
मंत्री ने बताया कि छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए ज़मीनी स्तरीय कृषि ऋण प्रवाह में सभी एजेंसियों द्वारा वित्त पोषितों की कुल संख्या में छोटे एवं सीमांत किसानों की हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 में 60.07 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 72.02 प्रतिशत हो गई. केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि देश में साल 2014 से 2016 तक, तीन वर्षों के दौरान ऋण, दिवालियापन एवं अन्य कारणों से क़रीब 36 हज़ार किसानों एवं कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है.
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