मेरिनो व कोरिडेल भेड़ की तरह उत्तम गुणवत्ता वाली ऊन देगी यह भेड़ लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय के अंतर्गत पशु प्रजनन एवं अनुवांशिकी विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने तीन नस्लों को मिलाकर भेड़ की हरनाली नामक प्रजाति विकसित की है.
हरनाली भेड़ की प्रजाति को प्रदेश को समर्पित करते हुए लुवास के कुलपति डॉ. गुरदियाल सिंह ने बताया कि हरनाली भेड़ की यह नई नस्ल मेरिनो तथा कोरिडेल भेड़ की तरह उत्तम गुणवत्ता वाली ऊन देगी.
इस उपलब्धि पर बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना के कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह ने पशु अनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अभय सिंह यादव तथा उनकी पूरी टीम को बधाई देते हुए कहा कि इस नस्ल से क्षेत्र के भेड़पालकों को बड़ा फायदा होगा. इस अवसर पर हरनाली भेड़ पर एक विवरणिका का भी विमोचन किया गया. अनुसंधान निदेशक डाॅ. पीके कपूर, पशुचिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एस. के. गुप्ता इस खास मौके पर मौजूद रहे. विभागाध्यक्ष डॉ. अभय सिंह यादव ने बताया कि हरनाली भेड़ में अन्य नस्ल की भेड़ों के मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है.
भेड़ों में अमूमन देखा गया है कि परजीवी की समस्या बहुत ज्यादा रहती है. हरनाली की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने से भेड़पालकों को भेड़ों तथा मेमनों के मरने से होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी. आने वाले समय में यह नस्ल उत्तम गुणवत्ता वाली रशियन मेरिनो व न्यूजीलैंड कोरिडेल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में जबरदस्त टक्कर देगी तथा भेड़पालकों को बड़ा फायदा होगा.
अगर हरनाली को अच्छा खाना-पीना दिया जाए तो 10 प्रतिशत भेड़ दो बच्चों को जन्म दे सकती हैं. अभी केवल पश्चिम बंगाल की नस्ल हरनाली ऊन की गुणवत्ता के मामले में रूस की नस्ल मेरिनो व न्यूजीलैंड की कोरिडेल के बराबर होगी.
बिहार पशुविज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि भेड़-बकरियों का पालन समाज के कमजोर तबके द्वारा किया जाता है. भेड़ की यह प्रजाति रोग रोधी होने के कारण किसानों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध होगी. इस अवसर पर लुवास के कुलपति डाॅ. गुरदियाल सिंह पशु अनुवांशिकी विभाग के अध्यक्ष, शोध वैज्ञानिकों तथा कर्मचारियों को बधाई दी.
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