बकरी पालन भारत में प्राचीन काल से ही होता आया है. पुराने समय से ही चरवाहे बड़े स्तर पर बकरी पालन करते आये हैं. लेकिन इस समय बकरी पालन मुनाफे का सौदा बन चुका है. किसानों के साथ-साथ बड़े इसको एक वाणिज्यिक रूप दे दिया गया है. भारत से दूसरे देशों में भी बकरे का मांस एक्सपोर्ट किया जाता है. इसलिए हर साल बकरी पालन की मांग बढ़ती जा रही है राज्य सरकारे भी इसको बढ़ावा दे रही हैं. बकरी पालन करते समय उसकी नस्ल का चुनाव किया जाना बहुत आवश्यक है. क्योंकि बकरियों की कई नस्ल होती है . लेकिन काली बंगाल जाति की बकरियाँ पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, उत्तरी उड़ीसा एवं बंगाल में पायी जाती है. बकरी की यह नस्ल बहुत ही अच्छी मानी जाती है. इसके शरीर पर काला, भूरा तथा सफेद रंग का छोटा रोंआ पाया जाता है. अधिकांश बकरियों में काला रोंआ होता है. यह छोटे कद की होती है वयस्क नर का वजन करीब 18-20 किलो ग्राम होता है जबकि मादा का वजन 15-18 किलो ग्राम होता है. नर तथा मादा दोनों में 3-4 इंच का आगे की ओर सीधा निकला हुआ सींग पाया जाता है. इसका शरीर गठीला होने के साथ-साथ आगे से पीछे की ओर ज्यादा चौड़ा तथा बीच में अधिक मोटा होता है. इसका कान छोटा, खड़ा एवं आगे की ओर निकला रहता है.
इस नस्ल की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी है. औसतन यह 2 वर्ष में 3 बार बच्चा देती है एवं एक ब्यात में 2-3 बच्चों को जन्म देती है. कुछ बकरियाँ एक वर्ष में दो बार बच्चे पैदा करती है तथा एक बार में 4-4 बच्चे देती है. इस नस्ल की मेमना 8-10 माह की उम्र में वयस्कता प्राप्त कर लेती है तथा औसतन 15-16 माह की उम्र में प्रथम बार बच्चे पैदा करती है. प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होने के कारण इसकी आबादी में वृद्धि दर अन्य नस्लों की तुलना में अधिक है. इस जाति के नर बच्चा का मांस काफी स्वादिष्ट होता है तथा खाल भी उत्तम कोटि का होता है. इन्हीं कारणों से ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियाँ मांस उत्पादन हेतु बहुत उपयोगी है. परन्तु इस जाति की बकरियाँ अल्प मात्रा (15-20 किलो ग्राम) में दूध उत्पादित करती है जो इसके बच्चों के लिए अपर्याप्त है. इसके बच्चों का जन्म के समय औसत् वजन 1.0-1.2 किलो ग्राम ही होता है. शारीरिक वजन एवं दूध उत्पादन क्षमता कम होने के कारण इस नस्ल की बकरियों से बकरी पालकों को सीमित लाभ ही प्राप्त होता है.
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