बिहार, भारत का एक ऐसा राज्य है जहां लोग रोज़गार के लिए ज्यादातर खेती पर निर्भर हैं. यहां किसानों के साथ-साथ मजदूरों की संख्या भी बहुत अधिक है. पिछले कुछ समय में यहां के मजदूर काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करत चले गये. लेकिन, देश में कोरोना महामारी फैलने के बाद वो अपने राज्यों में वापसी करते दिखाई दे रहे हैं. वहीं सरकार वापसी करने वाले लोगों के लिए खेती में उन्हें रोज़गार मुहैय्या करवाने का अवसर भी तलाश रही है. किसानों को लाभ दिलाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कई तरह कि योजनाएं बनाई जा रही है.
राज्य सरकार के इस नये प्लान का नाम है “जलवायु के अनुसार खेती”. इसके तहत बिहार में हर जिले के पांच गांवो में जलवायु के अनुसार खेती होगी. इसमें हर गांव में सौ एकड़ में फसल लगाई जाएगी. वहीं इसमें गांव और भूखंड के साथ फसल का चयन की जिम्मेदारी उन्हीं कृषि संस्थानों को दी जाएगी, जिनके जिम्मे उस जिले की खेती को सौंपा गया है. इसकी खेती की समय को भी पांच साल निर्धारित किया गया है और यह इस पूरी अवधि तक उनकी देखरेख में की जाएगी. इसमें साल में तीन फसल लेने का प्रयास है वो भी ऐसे जो बिना जुताई, बुवाई के की जा सके.
इस योजना के तहत खेती के सभी प्लान को कृषि विभाग के द्वारा सरकार को भेजा गया है. गांवों के चयन का कार्य सरकार से योजना पर मुहर लगने के बाद शुरू किया जाएगा. इस योजना की देखभाल के लिए बिहार कृषि विवि, राजेन्द्र केन्द्रीय कृषि विवि, बोरोलॉग इस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया, अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान व अंतरराष्ट्रीय आलू अनुसंधान संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों का चुनाव किया गया है. इन सभी संस्थानों को जिला आवंटित कर दिया गया है और गांव का चयन इन संस्थानों के द्वारा ही किया जाएगा.
किसान करेंगे सिंचाई
यह योजना दूसरी योजनाओं से बिल्कुल अलग है, क्योंकि खेती को इसमें संस्थाओं की देखरेख में कराई जाएगी. किसानों को इसमें बीज व कीटनाशक सरकार के द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी और इसमें खाद व सिंचाई की व्यवस्था किसानों को करनी होगी. ये संस्थान पांच साल तक खेती कर इलाके के किसानों को खेती की नई विधि के साथ इससे होने वाले लाभ से अवगत करा देंगे. योजना को सफल होने के बाद इसे किसानों के हवाले कर दी जएगी.
फसलों को खेत में रखा जाएगा एक साल
इस योजना में किसानों को जलवायु में हो रहे बदलाव की चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार करना इन संस्थाओं की जिम्मेवारी होगी. योजना के तहत खेत में फसलों को 365 दिनों के लिए रखा जाएगा. फसलों व उसकी किस्मों का चयन वैज्ञानिक जोन व मिट्टी की संरचना के अनुसार करेंगे. इस योजना में पांच साल तक चयनित खेतों में जुताई नहीं करने की योजना है.
योजना को आठ जिलों में किया जा चुका है प्रयोग
सरकार द्वारा इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर रवी मौसम में शुरू की गई थी. साथ ही वैज्ञानिकों की देखरेख में इन जिलों में बिना जुताई के गेहूं की खेती की गई. जिसका नतीजा उसके उत्पादकता पर देखने को मिली जो कि डेढ़ गुणा तक ज्यादा था. इन जिलों में करीब 1442 एकड़ में खेती की गई लेकिन इस बार रकबा बढ़ाया जाएगा. सरकार का यह प्रयास है कि इसमें नई व्यवस्था पुराने तर्ज पर की जाए. बता दें कि जुताई नहीं होने पर लागत के साथ मेहनत भी कम लगती है.
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