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केले की टिश्यू लैब के सहारे किसानों की कमाई में होगा इज़ाफा

बिहार के कोसी में पहला केले का टिश्यू माइक्रो बायोलॉजी लैब पूर्णिया के मारंगा में खुलने जा रहा है. यहां तैयार होने वाला टिश्यू लैब 2020 से काम करेगा और इससे हर साल तीन लाख केले के टिश्यू तैयार होगें. कोसी में 40 हजार एकड़ में केले की खेती की जाती है जिसमें सिर्फ पूर्णिया एवं कटिहार जिले में 25 हजार एकड़ में केले की खेती की जा जाती है. केले की खेती के लिए हर साल 25 लाख टिश्यू की जरूरत होती है.

किशन
banana cultivation

बिहार के कोसी में पहला केले का टिश्यू माइक्रो बायोलॉजी लैब पूर्णिया के मारंगा में खुलने जा रहा है. यहां तैयार होने वाला टिश्यू लैब 2020 से काम करेगा और इससे हर साल तीन लाख केले के टिश्यू तैयार होगें. कोसी में 40 हजार एकड़ में केले की खेती की जाती है जिसमें सिर्फ पूर्णिया एवं कटिहार जिले में 25 हजार एकड़ में केले की खेती की जा जाती है. केले की खेती के लिए हर साल 25 लाख टिश्यू की जरूरत होती है. इस टिश्यू के अभाव में किसान अब तक कंद से केले की खेती करते है. कृषि विश्वविद्यालय सबौर में केले का टिश्यू को तैयार करने का एक मात्र सरकारी माइक्रो बायोलॉजिकल लैब है. इसमें हर साल पांच लाख टिश्यू को तैयार किया जाता है. पूर्णिया में खुलने वाले माइक्रो बायोलॉजिकल लैब में जी 9 प्रभेद के टिश्यू को तैयार किया जाएगा. इस प्रभेद को कोसी के इलाकों में खेती के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है. यहां के किसान प्रभेद के केले की खेती करते है.

'टिश्यू कल्चर खेती' के प्रति बढ़ा रूझान

पुरानी और पांरपरिक खेती की जगह टिश्यू कल्चर जी -9 प्रजाति की वजह से जिले में केले की खेती समृद्द हो रही है. नकदी फसल के रूप  में केले की खेती कर नुकसान झेलने वाले किसान अब केले की टिश्यू कल्चर प्रजाति की फसल को लगाकर काफी बेहतर मुनाफा कमा रहे है. केले की खेती के लिए पूर्णिया एवं आसापास के जिलों को सर्वाधिक उत्पादन करने वाला क्षेत्र माना जाता है. जब से टिश्यू क्लचर को किसानों ने केले की खेती के लिए अपनाया है तभी से प्रति साल केले की खेती में बढ़ोतरी हुई है. इस खेती के लिए भी किसानों को सरकारी अनुदान दिया जाता है. टिश्यू कल्चर में अधिक मुनाफे को देखते हुए किसान भी इस खेती की ओर मुड़ने लगे है.

Tissue culture

टिश्यू कल्चर पौधे की विशेषता

केले की जी 9 प्रजाति को टिश्यू कल्चर के सहारे तैयार किया गया है. इसकी विशेषता यह है कि इसका उत्पादन महज नौ से दस महीने में ही हो जाता है. पकने के बाद समान्य तापक्रम पर उपचार करने के एक महीने बाद केले के फल में कोई भी गड़बड़ी नहीं होती है. ये केला बीज रहित, आकार में बड़ा और मिठास से भरपूर होता है. बाजार के अंदर भी इसकी कीमत बेहतर मिलती है. पुरानी पद्दति पर सिंगापुरी, रोबिस्टा, मालभोग और अल्पपान, जैसे केले की प्रजाति 14 से 15 माह में तैयार हो जाती है. इसकी बाजार में कीमत भी कम ही मिलती है.

किसानों को उद्यान विभाग

केले की अच्छी पैदावार हेतु किसानों को उद्यान विभाग उपलब्ध करवाया जाता है. केले का नया सीजन शुरू होते ही जुलाई से किसानों के पौधों का वितरण किया जाएगा. टिश्यू कल्चर का पौधा लगाने वाले किसानों को अनुदान भी दिया जाएगा. 

English Summary: Farmers will have huge profits as soon as banana tissue lab opens Published on: 02 July 2019, 02:06 PM IST

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