छत्तीसगढ़ में खेतों में पेड़ के नीचे नई तरह की तकनीक से पैरा मशरूम के उत्पादन के कार्य को किया जा रहा है. यहां मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन ने किसान को प्रगतिशील मशरूम का उत्पादन कर रहे है. यहां पर प्रतिदिन 5 से 10 किलो मशरूम का उत्पादन होता है. साथ ही यहां पर 200 से 300 रूपये किलो में इसकी बिक्री हो रही है. यहां पर कृषि विज्ञान केंद्र के एसके वर्मा और एसएस अली ने बताया कि इस तकनीक में राजेंद्र साहू आम के पेड़ों के छांव के नीचे लोहे की पाइप पर धान के गट्टों में पैरा मशरूम डाल कर खेती कर रहे है. राजेंद्र केवल उत्पादन ही नहीं, स्पॉन का भी उत्पादन करते है. वह मशरूम उत्पादन के बाद अपशिष्ट पदार्थ से केंचुआ खाद का निर्माण भी करते है. साथ ही वह खाद का विक्रय भी करते है. इस तकनीक के सहारे आस-पास के किसानों को लाभ मिल रहा है. आज के समय में मशरूम की मांग बढ़ सकती है. इसका उत्पादन बेहतर होने पर वर्षभर मशरूम की खरीदी होती है. यहां पर हॉटल और लॉज आदि में ज्यादा मांग रहती है. इसीलिए इसकी खपत बढ़ती जा रही है.
कृषि प्रशिक्षण केंद्र में है प्रशिक्षण केंद्र
मशरूम के उत्पादन के लिए कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद में प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां पर 15 लाख रूपए की लागत से प्रशिक्षण केंद्र, लैब और प्रशिक्षण स्टोर आदि बनाया जा रहा है. इसमें कई तरह की आधुनिक स्टोर मशीनें लगाई गई है. इसके माध्यम से मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है. यहां पर समय-समय पर यहां के क्षेत्रीय किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है.
मशरूम और बीज उत्पादन का प्रशिक्षण मिला
बता दें कि यहां के निदेशालय के वैज्ञानिकों ने पिछले साल ही इंदिरा गांधी कृषि विवि के मशरूम वैज्ञानिकों के साथ यहां के क्षेत्र का भ्रमण किया था और उनके द्वारा विकसित खुले में पैरा मशरूम के उत्पादन और तकनीक की सराहना भी की थी. राजेंद्र साहू को मशरूम और इसके बीज उत्पादन के लिए प्रशिक्षण और उपकरण को भी प्रदान किया गया था. मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन हिमाचल प्रदेश ने उनको प्रगतिशील मशरूम उत्पादक सम्मान दिया है.
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