Moong Threshing Machine: भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मूंग (Moong) महत्वपूर्ण स्थान रखती है. किसान मूंग की खरीफ, रबी और जायद तीनों ही सीजन में खेती कर सकते हैं. बता दें, मूंग एक शक्ति-वर्द्धक दाल फसल है, जिसमें प्रोटीन और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. किसान मूंग की खेती देश के विभिन्न राज्यों में करते हैं. बिहार के लगभग 1.8 लाख हेक्टेयर में मूंग फसल की खेती की जाती है. अधिकतर किसान मूंग की फली के पक जाने पर हाथों से तुड़ाई करते हैं, जिससे अधिक पके दानें फली से निकलकर खेत में ही गिर जाते है और किसान को उसका नुकसान होता है. हाथों से मूंग की तुड़ाई लगभग 3 से 4 बार की जाती है, जिसमें समय ज्यादा लगता है और देरी होने पर मूंग को भी नुकसान होता है. किसानों की इस समस्या को देखते हुए अमरपुर प्रखंड, बांका जिले के किसान अशोक मांझी ने अपने देसी जुगाड़ से एक छोटी थ्रेशिंग मशीन विकसित की है, जो मात्र एक घंटे में 80 किलोग्राम तक मूंग तैयार कर सकती है.
हाथों से मूंग की तुड़ाई
मूंग की तुड़ाई से होना वाला नुकसान किसानों के लिए आम समस्या हैं, जिसके कारण किसानों को प्रति वर्ष मूंग की बर्बादी तथा आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है. मूंग की तुड़ाई करने के बाद इन्हें धूप में सुखाया जाता है और अच्छी तरह सूखने के बाद इसकी फलियों को डंडों से पीट-पीट कर इनमें से मूंग को निकला जाता है, जिसमें बहुत ज्यादा श्रम और समय लगता है. यदि फली पूरी तरह सूखी न हो तो मूंग निकालना बेहद मुश्किल भरा काम हो जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें, मूंग की तुड़ाई मानसून आने के दौरान की जाती है, जिससे इसकी फलियां भीग जाती है और इनमें से मूंग नहीं निकाला जा सकता हैं. अधिक समय तक फली के गीला रहने पर मूंग खराब होने लगती है और किसान को इससे काफी नुकसान होता है.
देसी जुगाड़ से बनाई छोटी थ्रेशिंग मशीन
मूंग की फसल को उपजाने और तैयार करने में किसानों का बहुत ज्यादा समय और श्रम दोनों ही लगता है, जिस वजह से अधिकतर किसान इसकी खेती कम से कम क्षेत्र में करते हैं. मूंग की तुड़ाई मानसून के आने के समय की जाती है, जिससे मूंग के खराब होने का भी भय बना रहता है. आपकी जानकारी के लिए वर्तमान समय में मूंग की तुड़ाई के लिए कोई भी तकनीक या उपकरण बड़े पैमाने पर विकसित नहीं किया गया है, जिस वजह से किसानों को मूंग तैयार करने में बहुत ज्यादा लागात लगानी होती है. लेकिन किसानों की इस समस्या को देखते हुए अमरपुर प्रखंड, बांका जिले के किसान अशोक मांझी ने अपने देसी जुगाड़ से एक छोटी थ्रेशिंग मशीन को विकसित किया है.
5000 रुपये में तैयार हुई मशीन
इस छोटी थ्रेशिंग मशीन में किसान ने 1 हॉर्स पावर जनरेट करने वाली मोटर, 2 बैरिंग, 1 बेल्ट और एक साफ्ट लगाया है. इस थ्रेशिंग मशीन का कुल वजन मात्र 30 किलोग्राम है, जिससे एक खेत से दूसरे खेत में इस मशीन को आसानी से ले जाया जा सकता है. किसान अशोक मांझी ने इस छोटी थ्रेशिंग मशीन को महज 5000 रुपये की लागत में तैयार किया है. इसे चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है और इससे मात्र एक घंटे में 80 किलोग्राम तक मूंग तैयार की जा सकती हैं. इस मशीन के एक किनारे से मूंग की फलियों को डाला जाता है, जो थ्रेशिंग होने के बाद साफ मूंग को मशीन के पीछे बने आउटलेट से निकाल देती हैं. किसानों को मूंग को आवश्यकता के अनुसार धूप में सुखा कर संग्रहित करते हैं, क्योंकि फली में नमी ज्यादा रहने पर इसकी भण्डारण क्षमता कम हो जाती है. मसीन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि तोड़ी गयी मूंग की फली को बिना धूप में सुखाये ही इससे मूंग के दाने को अलग किया जा सकता है. ऐसा होने से खेत में होने वाली मूंग की बर्बादी बिलकुल खत्म हो जाती है और किसानों का मुनाफा बढ़ जाता हैं.
किसानों की आय बढ़ाने में सहायक
छोटी थ्रेशिंग मशीन बांका जिले में किसानों के बीच धीरे-धीरे काफी लोकप्रिय हो रही हैं और किसान भी इससे लाभान्वित हो रहे हैं. इस मशीन से मूंग की खेती करने वाले किसानों के श्रम और समय दोनों की बचत हो रही हैं. छोटा आकार और कम कीमत इस मशीन को किसानों के लिए बहुत उपयोगी बनाते हैं. इस थ्रेशिंग मशीन का उपयोग किसान अपनी मूंग की तुड़ाई के साथ-साथ अन्य किसानों के मूंग की थ्रेशिंग करके भी अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं. इस मशीन को अब बड़े संस्थाओ द्वारा परिस्कृत करने की आवश्यकता है, जिससे देश के किसानों तक इसकी पहुंच हो सके और वे इसका लाभ उठा सकें. किसान अशोक मांझी के अनुसार, इस तकनीक को विकसित करने में कृषि विज्ञान केंद्र, बांका ने उनका काफी सहयोग दिया है.
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