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जिस मिट्टी में जन्म हुआ
जो है हमारे सर की ताज
पाल रही है जो हमें
क्यों न करें उस पर नाज़ !
सौंधी खुशबू है जिसमें
जिसपर भोगे सारे राज
सिर्फ समर्पण है भाव जिसका
क्यों न करें उस पर नाज़ !
नाच-गाने सब खेल-खिलौने
और दूसरे काम-काज
सीचा है इस मिट्टी ने हमें
क्यों न करें इस पर नाज़ !
सब खाते हैं इसकी रोटी
कुत्ता, बिल्ली, सियार, बाज़
अहसान नहीं धन्यवाद के लिए
ज़रुर करो मिट्टी पर नाज़ !
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