अर्जुन एक औषधीय पेड़ है. इसे गार्जियन ऑफ़ हार्ट भी कहा जाता है. इसके अलावा, इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है. जैसे- घवल, नदीसर्ज और ककुभ आदि. इस पेड़ की लम्बाई करीब 60 से 80 फीट होती है. यह हिमालय की तराई, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों के किनारे तथा बिहार और मध्य प्रदेश राज्य में अधिकतम पाया जाता है. अर्जुन की छाल उतार लेने पर, छाल दोबारा उग जाती है. इसे उगने के लिए न्यूनतम 2 वर्षा ऋतुएं चाहिए होती है.
एक वृक्ष में छाल लगभग 3 साल के चक्र में मिलती है. अगर इसकी छाल की बात की जाए, तो बाहर से सफेद और अन्दर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है, वहीं लगभग 4 mm मोटी होती है. यह छाल वर्ष में 1 बार निकलकर खुद ही नीचे गिर जाती है. इसका स्वाद हल्का कसैला व तीखा होता है तथा गोदने पर पेड़ से एक प्रकार का दूध जैसा तरल पदार्थ भी निकलता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, इसका फल दिल की सेहत सुधारने में काफी ज्यादा मददगार होता है. जबकि इसकी छाल सर्दी, खांसी, कफ, पित, और मोटापा जैसी बीमारियों में कारगर होती है. इसके अलावा, इसे स्त्री संबंधी रोगों में भी बेहद लाभकारी माना गया है.
अर्जुन का पेड़ कब और कहां लगाएं? (When and where to plant Arjuna tree)
अर्जुन के फुल जून-जुलाई में आने शुरू हो जाते हैं. इसका पेड़ आकार में काफी बड़ा होता है. इसलिए इसे सड़क या खुले स्थान पर ही लगाएं. यह नमी वाले भागों में ही विकसित होते हैं. इसलिए बारिश में इसे लगाना सही नहीं है. बीज की वजह से ये स्वत: ही उग जाता है. इसके पौधों को नर्सरी में भी तैयार किया जाता है.
अर्जुन की छाल के उपयोग व फायदे (Benefits of Arjun’s Chaal )
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हृदय की बढ़ी धड़कन (Heart Beat Control) को नियंत्रित करने में इसे काफी ज्यादा उपयोगी माना गया है.
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हाइपर एसिडिटी (Hyper Acidity) जैसी समस्याओं में भी इसे काफी ज्यादा फायदेमंद माना गया है.
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इसे आयुर्वेदिक चिकित्सक कार्डियक टॉनिक (Cardio Tonic) के रूप में प्रयोग करते हैं.
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पीलिया (Jaundice) में इसके पेड़ की छाल के चूर्ण को घी में मिलाकर सुबह शाम लें.
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मुंह के छालों (Mouth Ulcer) से राहत पाने के लिए इसके छाल को पीसकर नारियल के तेल के साथ लगाएं.
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जलन से बने घाव (Burning Spot) पर छाल को पीसकर लगाने से राहत मिलती है.
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टूटी हड्डी (Broken Bone) को जल्द जोड़ने के लिए दूध के साथ इसकी छाल के पाउडर का सेवन करें
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