किसान भाइयों नवंबर महीना खेती के लिहाज से भी बेहद खास होता है. सर्दी के आलम में किसानों का काम करने का जोश और हौसला काफी बढ़ जाता है. दुनिया की सब से अहम फसल गेहूं की बोआई की बुनियाद नवंबर में ही पड़ जाती है. इनसान के खाने की सब से खास फसल गेहूं की बोआई का जनून तमाम किसानों में अलग ही नजर आता है. गेहूं न सिर्फ बेहद अहम फसल है, बल्कि यह किसानों की माली हालत भी सुधारने की कूवत रखती है.
नवंबर की शुरुआत में ही तमाम किसान गेहूं की बोआई की तैयारियों में जुट जाते हैं. महीने के पहले हफ्ते के दौरान खेतों की तैयारी कर लेना लाजिम है, क्योंकि 7 नवंबर से 25 नवंबर के बीच गेहूं की बोआई का दौर पूरे जोरशोर से चलता है. यह अरसा ही गेहूं की बोआई के लिहाज से सब से अच्छा होता है. इस दौरान बोआई किए जाने से सब से ज्यादा फायदा होने के आसार होते हैं. अक्लमंद किसानों को नवंबर महीने की शुरुआत में ही गेहूं के लिहाज से अपने खेतों की मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए ताकि कोई कमी हो तो उस का इलाज किया जा सके. मिट्टी की जांच करा लेने से माकूल खादों व उर्वरकों की जानकारी मिल जाती है, नतीजतन फसल उम्दा होती है. होशियार किसान अपने इलाके की मशहूर प्रयोगशाला में अपने खेत की मिट्टी की जांच कराते हैं और उसी के मुताबिक कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर बीज, खाद व उर्वरक वगैरह का इस्तेमाल करते हैं. उम्दा खेती के लिए खाद व उर्वरक वगैरह उतनी मात्रा में ही डालने चाहिए, जितनी की वैज्ञानिक सलाह दें.
1- गेहूं की बोआई से पहले खेतों में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद डालना बेहद जरूरी होता है, मगर कितनी खाद डालनी चाहिए, यह बात कृषि वैज्ञानिक ही बेहतर बता सकते हैं. इसलिए अपने खेत के आकार के हिसाब से वैज्ञानिक से पूछ कर ही खाद की मात्रा तय करें.
2- गेहूं की बोआई के लिए अपने इलाके की आबोहवा के हिसाब से ही गेहूं की किस्मों का चयन करना ठीक रहता है. इस मामले में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से बेहतर सलाह कोई और नहीं दे सकता. लिहाजा उन्हीं की सलाह के मुताबिक बीजों का बंदोबस्त करें.
3- अगर किसी मशहूर कंपनी या सरकारी संस्था से बीज हासिल करें तो वे ठीक होते हैं. उन्हें उपचारित करने की जरूरत नहीं होती है. अच्छी बीज कंपनियां व सरकारी संस्थाएं अपने बीजों का उपचार पहले ही कर चुकी होती हैं.
4- अकसर कई किसान बड़े किसानों से ही बीज खरीद लेते हैं. ऐसी हालत में बीजों को उम्दा फफूंदीनाशक दवा से उपचारित करना जरूरी हो जाता है. बीजों को उपचारित न करने का असर पैदावार पर पड़ता है.
5- छिटकवां विधि से गेहूं की बोआई करने में 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगता है. इस विधि से बोआई करने में कुछ बीज बेकार चले जाते हैं. इसी वजह से अब वैज्ञानिक इस विधि का इस्तेमाल करने की सलाह नहीं देते.
6- सीड ड्रिल से गेहूं की बोआई करना सही रहता है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर महज 100 किलोग्राम बीज की दरकार होती है. इस तरीके से बीजों की बरबादी नहीं होती है.
7- गेहूं की बोआई लाइनों में करना बेहतर होता है और पौधों के बीच का फासला करीब 20 सेंटीमीटर होना चाहिए. इतना फासला रखने से पौधों का विकास अच्छा होता है और खेत की निराईगुड़ाई करना भी सरल होता है.
8- आमतौर पर तो खादों व उर्वरकों की मात्रा मिट्टी की जांच के मुताबिक वैज्ञानिकों से तय कराना ही बेहतर रहता है, लेकिन कई इलाकों के किसानों के लिए मिट्टी की जांच कराना कठिन होता है. ऐसी नौबत आने पर प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. बोआई के वक्त नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा खेत में मिलाएं.
9- गेहूं के साथसाथ नवंबर में चने की बोआई का दौर भी चलता है. चने की बोआई का काम भी 15 नवंबर तक निबटा लेना चाहिए. बोआई के लिए साधारण चने की पूसा 256, पंत जी 114, केडब्ल्यूआर 108 व के 850 किस्में अच्छी रहती हैं. अगर काबुली चने की बोआई करनी है, तो पूसा 267 व एल 550 किस्मों का चयन बेहतर रहता है.
10- मुमकिन हो तो मिट्टी की जांच कराने के बाद कृषि वैज्ञानिक से खादों व उर्वरकों की मात्रा तय करा लें वरना प्रति हेक्टेयर 45 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल चने की खेती के लिए मुफीद रहता है.
11- चने के बीजों को राइजोबियम कल्चर और पीएसबी कल्चर से उपचारित कर के बोएं. प्रति हेक्टेयर बोआई के लिए बड़े आकार के दानों वाली किस्मों के 100 किलोग्राम और छोटे व मध्यम आकार के दानों वाली किस्मों के 80 किलोग्राम बीज इस्तेमाल करें.
12- आमतौर पर तो मटर व मसूर की बोआई का काम पिछले महीने यानी अक्तूबर में ही निबटा लिया जाता है. मगर किसी वजह से मसूर व मटर की बोआई अभी तक न हो पाई हो, तो उसे 15 नवंबर तक जरूर कर लें.
मसूर की बोआई के लिए करीब 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगता है. इसी तरह मटर की बोआई के लिए 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगता है. मटर व मसूर के बीजों को बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना जरूरी है, वरना नतीजा अच्छा नहीं मिलता.
13- पिछले महीने बोई गई मटर व मसूर के खेतों में अगर सूखापन नजर आए तो जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें. इस के अलावा खेत की अच्छी तरह निराईगुड़ाई करें, जिस से खरपतवार काबू में रहें.
14- मटर व मसूर की फसल पर अगर पत्ती सुरंग या तनाछेदक कीटों का असर नजर आए, तो मोनोक्रोटोफास 3 ईसी वाली दवा का इस्तेमाल करें.
15- नवंबर में जौ की बोआई भी की जाती है. जौ के लिए तैयार किए गए खेत में बोआई का काम 25 नवंबर तक निबटा लेना चाहिए. यों तो जौ की पछेती फसल की बोआई दिसंबर महीने के आखिर तक की जाती है. वैसे समय से बोआई करना ही बेहतर है, क्योंकि देर से बोई जाने वाली फसल से पैदावार कम मिलती है.
16- जौ की बोआई में सिंचित व असिंचित खेतों का फर्क पड़ता है, उसी के लिहाज से कृषि वैज्ञानिक से बीज की मात्रा पूछ लेनी चाहिए.
17- जौ की विजया, कैलाश, आजाद, अंबर व करन 795 किस्में सिंचित खेतों के लिए अच्छी हैं. केदार, डीएल 88 व आरडी 118 किस्में देर से बोआई करने के लिहाज से अच्छी हैं.
18- इस महीने अरहर की फलियां पकने लगती हैं. अगर 75 फीसदी फलियां पक गई हों, तो कटाई का काम करें.
19- अरहर की देरी से पकने वाली किस्मों पर अगर फलीछेदक कीट का हमला दिखाई दे, तो मोनोक्रोटोफास 36 ईसी वाली दवा की 600 मिलीलीटर मात्रा पर्याप्त पानी में मिला कर फसल पर छिड़काव करें.
20- आलू के खेत अगर सूखे नजर आएं तो तुरंत सिंचाई करें, ताकि उन की बढ़वार पर असर न पड़े. आलू की बोआई को 5-6 हफ्ते हो चुके हों, तो 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. सिंचाई के बाद आलू के पौधों पर ठीक से मिट्टी चढ़ाएं.
21- सरसों के खेत से फालतू पौधों की छंटाई करें और उन्हें पशुओं को खिला दें. सरसों के फालतू पौधे इस हिसाब से निकालें कि पौधों के बीच की दूरी करीब 15 सेंटीमीटर रहे.
22- सरसों में नाइट्रोजन की बची मात्रा बोआई के 1 महीने बाद पहली सिंचाई कर के छिटकवां तरीके से दें.
23- सरसों के पौधों को सफेद गेरुई व झुलसा बीमारियों से बचाने के लिए जिंक मैंगनीज कार्बामेट 75 फीसदी वाली दवा की 2 किलोग्राम मात्रा पर्याप्त पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें.
24- सरसों को आरा मक्खी व माहू कीट से बचाने के लिए इंडोसल्फान दवा की डेढ़ लीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें.
25- इस महीने के दौरान तोरिया की फलियों में दाना भरता है, लिहाजा खेत में भरपूर नमी होनी चाहिए. नमी कम लगे तो तुरंत खेत की सिंचाई करें, ताकि फसल बढि़या हो.
26- पिछले महीने लगाई गई सब्जियों के खेतों की बारीकी से जांच करें. उन में खरपतवार पनपते नजर आएं तो निराईगुड़ाई के जरीए उन का खात्मा करें. जरूरत के मुताबिक सिंचाई भी करें.
27- सब्जियों के पौधों व फलों पर अगर कीड़ों या बीमारियों के लक्षण नजर आएं तो कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर माकूल दवाओं का इस्तेमाल करें.
28- इस महीने खासतौर पर लहसुन के खेतों का बारीकी से मुआयना करें. अगर खेतों में सूखापन दिखाई दे, तो फौरन सिंचाई करें. सिंचाई के अलावा निराईगुड़ाई भी करें, ताकि खरपतवारों से नजात मिल सके.
29- लहसुन के खेतों में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. यदि लहसुन की पत्तियों पर पीले धब्बों का असर दिखे, तो इंडोसल्फान एम 45 दवा के 0.75 फीसदी वाले घोल का छिड़काव करें ताकि फसल अच्छी हो.
30- आमों की फसल आने में भले ही कई महीने बाकी हैं, मगर उन के पेड़ों का खयाल रखना जरूरी है. मिलीबग कीट आमों के लिए घातक होते हैं. इन से बचाव के लिए पेड़ों के तनों के चारों तरफ पौलीथीन की करीब 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी बांध कर उस के सिरों पर ग्रीस लगा दें.
31- आम के पेड़ों के तनों व थालों में फौलीडाल पाउडर छिड़कें. इस के अलावा पेड़ों की बीमारी के असर वाली डालें व टहनियां काट कर जला दें.
32- सर्दी के असर वाले इस महीने में अपने मवेशियों का खयाल रखें, क्योंकि सर्दी से इनसानों के साथसाथ जानवरों के भी बीमार होने का खतरा रहता है. गायभैंसों को सर्दी से बचाने का पूरा बंदोबस्त करें.
33- अपने मुर्गे मुर्गियों को भी सर्दी से महफूज रखने का इंतजाम करें. जरूरत पड़ने पर डाक्टर को बुलाना न भूलें.
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