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Sugarcane Farming: गन्ने की खेती में इन बारीकियों का रखें ध्यान..

गन्ना बहुत ही सुरक्षित महत्वपूर्ण बहुवर्षीय व अधिक मुनाफा देने वाली नगद फसल है. यदि किसान भाई आधुनिक तकनीकि के साथ विपुल उत्पादन का लक्ष्य रखकर गन्ना का शुभारम्भ करें तो सफलता एवं समृद्धि निसंदेह ऐसे किसानो का स्वागत करेगीं.

KJ Staff
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Ganna - sugarcane
Sugarcane Cultivation

गन्ना बहुत ही सुरक्षित महत्वपूर्ण बहुवर्षीय व अधिक मुनाफा देने वाली नगद फसल है. यदि किसान भाई आधुनिक तकनीकि के साथ विपुल उत्पादन का लक्ष्य रखकर गन्ना का शुभारम्भ करें तो सफलता एवं समृद्धि निसंदेह ऐसे किसानो का स्वागत करेगीं.

मिट्टी परिक्षण

मिट्टी का परिक्षण करवाये परिक्षण के आधार पर आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों का उपयोग करके उवर्रक के खर्च में बचत कीजिये.

बुवाई का समय

शरदकालीन गन्ना की बुवाई का ऊपयुक्त समय -अक्टूबर से नवम्वर.

  • इस अबधि में गन्ना बोनी करने पर अंकुरण स्वस्थ तथा कांसे, कल्ले की संख्या अधिक होती है प्रति एकड़ 42 से 45 हजार गन्ना संख्या रखना संभव होता हैं.

  • जड़ी फसल अच्छी, उत्पादन अधिक, रोग तथा कीटों का प्रकोप कम होता है.

  • फसल वृद्धि शीघ्रगति से होती है, तथा लक्ष्य अनुसार कर सकते है.

  • विशेष परिस्थितियो में बसंतकालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाया जा सकता है.

खेत (जमीन) का चयन

काली भारी मिट्टी, पीली मिट्टी, तथा रेतेली मिट्टी जिसमें पानी का अच्छा निकास हो गन्ने हेतु सर्वोत्तम होती है.

खेत की तैयारी

गन्ना बहुवर्षीय फसल है, इसके लिए खेत की गहरी जुताई के पश्चात् 2 बार कल्टीवेटर व आवश्यकता अनुसार रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत तैयार करें, मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए इससे गन्ने की जड़े गहराई तक जाएगी और आवश्यक पोषक तत्व का अवशोषण करेगी.

गन्ना बीज का चुनाव

 गन्ना बीज 9 से 10 माह के उम्र का गन्ना बीज के लिए उपयोग करे, गन्ना बीज उन्नत जाति,  मोटा,  ठोस,  शुद्ध व रोग रहित होना चाहिए. जिस गन्ने की छोटी पोर हो फूल आ गये हो,  ऑंखे अंकुरित हो या जड़े निकल आई हो ऐसा गन्ना बीज के लिये उपयोग न करें. आप निम्न गन्ना प्रजातियों का चयन करे – Co-86032, CoVs-3102, Co-0238, Vsi-434, Co-0239 इन प्रजातियों का ही बीज प्रोयोग करें.

गन्ना बीज 9 से 10 माह के उम्र का गन्ना ही बीज के लिए उपयोग करें गन्ना बीज उन्नत जाति, मोटा, ठोस, शुद्ध व रोग रहित हो. गन्ना की ऑख पूर्ण विकसित तथा फूली हुई हो जिस गन्ने का छोटी पोर हो फूल आ गये हो ऑख अंकुरित हो या जड़े निकल हो ऐसा गन्ना बीज के लिए उपयोग न करें.

बीज की मात्रा

एक ऑख का टुकड़ा लगाने पर प्रति एकड़ 10 क्विंटल बीज लगेगा,  2 ऑख के टुकड़े लगाने पर 20 क्विंटल बीज लगेगा, पॉली बैग, पॉली ट्रे के उपयोग से बीज की बचत होगी तथा अधिक उत्पादन प्राप्त होगा.

बीज की कटाई

 तेज धार वाले ओजार से गन्ना की कटाई करते समय ध्यान रखें कि ऑख के ऊपर वाला भाग 1/3 तथा निचला हिस्सा 2/3 भाग रहे.

नाली से नाली की दूरी (घार की दूरी)

नालियों के बीच की दुरी 4 से 4.5 या 5 फिट रखें इसके निम्न लाभ होगे-

  • सूर्यप्रकास, हवा अधिक मिलने से गन्ना अधिक होता हे, तथा अधिक गन्ना उत्पादन प्राप्त होता हे बीज की मात्रा कम लगती है.

  • अन्तरवर्तीय फसल या यंत्रीकरण हेतु सुलभ.

  • हार्वेस्टर द्वारा गन्ना कटाई में सुविधा.

बीजोपचार

अनेक रोग व कीट प्रकोप बीज के माध्यम से होते है, इसलिए बीज उपचार आवश्यक है.

रसायनिक उपचार (प्रति एकड़) कार्बनडाईजिम (बावेस्टीन) 100 ग्राम क्लोरोपयरीफास 300 मि.लि., यूरिया 2 किलो, 1 किलो चूना, 100 लीटर पानी में घोल बनाकर बीज के टुकडो को 10 मिनिट तक घोल में डूबाकर उपचारित करे.

जैविक उपचार

प्रति एकड़ 1 लीटर एजोटोवैक्टर + एक लीटर पी. एस. बी. का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर रसायनिक बीज उपचार के पश्चात् बीज के टुकडो को सूखने के बाद उपरोक्त घोल में 30 मिनिट डुबाकर उपचार करने के पश्चात् बुवाई करें

बुवाई विधि

माध्यम से भारी मिट्टी में सुखी बुवाई करें नालियों में गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद, बेसल डोज, सूक्ष्म पोषक तत्व डाले. घार में गन्ने के टुकड़े को कातार में जमा दें. गन्ने की आंखे आजू-बाजू में हो ऐसा रखें (दोनों आंखे नाली की बगल की तरफ हो) इसके बाद 2-3 इंच मिट्टी से टुकडो को दबा दे.

गोबर खाद या कम्पोस्ट

गन्ना फसल के लिये लगभग 50 कुन्टल गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद का उपयोग गन्ना बुवाई के समय नालियों में डालकर करना चाहिए. गोबर खाद के कारण जमीन में हवा व पानी का संतुलन बना रहता है. मिट्टी की जलधारण क्षमता बढती हें जीवा‍‌‍णओ की संख्या में वृद्धि होती हें हरी खाद प्रेसमड मुर्गी खाद बायोकम्पोस्ट, गन्ने की सुखी पत्तियां अन्य घासफूस की पलटवार कर भूमि में कार्बनिक पदार्थ मिलायें जा सकते हैं.

मिट्टी में साधारणत: 0.75% से 1% तक कार्बनिक या जीवांश पदार्थ का होना आवश्यक हैं.

रसायनिक उर्वरको का प्रयोग – फसलो की सही बढ़बार, उपज और गुणवत्ता के लिये पोषक तत्वों का सही अनुपात और जरुरी मात्रा मिट्टी में साधारणत: 0.75% से 1% तक कार्बनिक या जीवांश पदार्थ का होना आवश्यक हैं.

रसायनिक उर्वरको का प्रयोग – फसलो की सही बढ़बार, उपज और गुणवत्ता के लिये पोषक तत्वों का सही अनुपात और जरुरी मात्रा में मिट्टी परिक्षण प्रतिवेदन (रिपोर्ट) के अनुसार ही प्रोयोग करें जहाँ तक संभव हो सरल खाद जैसे यूरिया, सुपरफास्फेट, व म्यूरेट ऑफ़ पोटाश जैसे उर्वरको अनुशासित मात्रा में फसल को दें.

गन्ना बुवाई से पूर्व (प्रति एकड़) – सुपरफास्फेट 150 किलो + 50 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश + 25 किलो यूरिया + 10 किलो रीजेंट.

गन्ना बुवाई से 45 दिन बाद- 100 किलो यूरिया दो से तीन बार सिंचाई के समय बाँट- बाँट कर डाले.

गन्ना बुवाई से 80 दिन बाद- 100 किलो यूरिया उपरोक्त अनुसार बाँट- बाँट कर डाले.

गन्ना बुवाई से 120 दिन बाद- बड़ी मिट्टी चढ़ाते समय सुपरफास्फेट 150 किलो + पोटाश 50 किलो + 50 किलो यूरिया.

जिंक का प्रोयोग - 10 किलो जिंक सल्फेट तीन साल में एक बार प्रति एकड़ गन्ना बुवाई के पूर्व करें.

जैविक खाद- मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बनी रहे इसके लिये एजोटोबैक्टर व 4 किलो पी.एस.बी. का प्रयोग गोबर खाद में मिलाकर दूसरी सिचाई के समय करें.

अंतरवर्ती कृषि कार्य 

  • औजार द्वारा गन्ना में हल्की एवँ भारी मिट्टी चढ़ाना – गन्ना फसल में जरुरी कांसे / कल्ले आने के लिये डेढ़ से दो माह की समयावधि में हल्की मिट्टी चढ़ाना चाहिए तथा जब कांसे / कल्ले जरुरत के मुतावित निकल आये तव भारी मिट्टी चढ़ाना चाहिए इससे नये कांसे / कल्ले निकलना बन्द हो जायेगे.

  • खरपतवार नियंत्रण – गन्ना बुवाई के पश्चात् पहले 4 माह तक नींदा नियंत्रण नहीं करने पर गन्ना उत्पादन में 50 प्रतिशत तक कमी हो सकती हैं इस लिए कहा गया हें- त्रण खाये धन. अन्त: क्रिया द्वारा खरपतवार नियंत्रण कर सकते है. रसायनिक विधि में 2-4डी 58 प्रतिशत 500 मि.ली. + सेंकार 500 ग्राम + 300 लीटर पानी बुवाई के 4-5 दिन बाद तथा दूसरी बार पहले छिडकाव से 30 दिन बाद नमी रहते छिडकाव करें 80 प्रतिशत खरपतवार नियंत्रण होगा (प्रति एकड़ की मात्रा).

सिंचाई

सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी व जलवायु पर निर्भर करती हैं . मिट्टी में रेत की मात्रा अधिक होने पर सिंचाई की मांग अधिक होगी . भारी मिट्टी में सिंचाई अवधि बढ़ाई जा सकती है. मिट्टी में जीवांश की मात्रा अधिक होने से जलग्रहण की क्षमता बढ़ती है .

टपक (ड्राप) सिंचाई पद्धति- उन्नत सिंचाई पद्धतियो में टपक (ड्राप) सिंचाई पद्धति से फसल के लिये आवश्यकता अनुसार उचित मात्रा में द्रव रूप रसायनिक उर्वरक सीधे जड़ो तक पहुचाये जा सकते हैं. यह (ड्राप) सिंचाई पद्धति अपनाने पानी की 50 से 60 प्रतिशत तक तथा उर्वरको की 20 से 35 प्रतिशत तक की बचत की जा सकती है. बिजली की बचात के साथ सिंचाई के लिए मजदूरो की आवश्यकता नहीं होती हैं खरपतवार पर पूर्ण नियंत्रण होता हें. गन्ना उत्पादन में 30 से 35 प्रतिशत बढ़त होती हैं.

गन्ने में अंतरवर्ती (सह) फसल 

अंतरवर्ती (सह) फसल हेतु इस तरह की फसल का चुनाव जो की गन्ने की फसल से प्रतिस्पर्धा ना करें.

प्याज, आलू, राजमा, धनिया, मूंग, उड़द तथा सब्ज़ियों लगायें.

गन्ना फसल में छिडकाव (प्रति एकड़) (स्प्रे) निम्नानुसार छिडकाव से गन्ना सफल उत्पादन में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी पाई गई हैं.

गन्ना बुवाई से 50 दिन बाद 19:19:19 NPK 2K.G. + 0:0:50 1 K.G. 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें.

80 दिन बाद 12:61:02 K.g. + 0:0:50 1 Kg. 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें

100 दिन बाद 19:19:19 2 kg. + 0:0:50 1 Kg. 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाब करें.

सिंचाई हेतु पानी की कमी रहते 4 किलो पोटाश 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें.

English Summary: Keep these nuances in sugarcane farming meditation .. Published on: 12 October 2017, 07:01 IST

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