पेटूनिया (पेटूनिया x हाइब्रिडा) सोलेनेसी कुल का सदस्य है, जो दक्षिण अमेरिकी मूल के पुष्पी पादपों की 20 प्रजातियों का वंशज है. पेटूनिया नाम के लोकप्रिय फूल ने अपना यह नाम फ्रांसीसी भाषा के शब्द पेटून से लिया है
जिसका अर्थ एक तुसी गोआसी भाषा में तंबाकू होता है. अधिकतर पेटूनिया द्विगुणी होता है तथा इसके गुणसूत्रों की संख्या 14 होती है. कुछ पेटूनिया सदाबहार हो सकते हैं लेकिन आमतौर पर आजकल जिन संकर जातियों का उत्पादन किया जाता है और बेचा जाता है, वह ज्यादातर वार्षिक पौधे होते हैं. यह सबसे लोकप्रिय फूलों में से एक है तथा यह फूल हर रंग में जैसे- गुलाबी, बैंगनी, पीला आदि रंगों में देखने को मिल जाता है, लेकिन इसका असली रंग नीला होता है. इसका फूल तुरही या फनल के आकार का होता है, जिसमें पांच जुड़े हुए या आंशिक रूप से जुड़ी हुई पंखुड़ियां और पांच हरे रंग के वाहृदल पाए जाते हैं.
पिटूनिया मुख्यता प्राकृतिक परागित पौधा है, जो सर्दियों के मौसम में खिलता है तथा इसके सूक्ष्म आकार के बीज एक सूखे आवरण कैप्सूल में पैदा होते हैं. अपने इस सुंदर तुरही के आकार के फूलों के कारण पेटूनिया बहुत मशहूर फूल है. इसकी लगभग 35 प्रजातियां पाई जाती हैं. आमतौर पर उगने वाला पेटूनिया (पेटूनिया एटकिंसयाना) एक घरेलू सजावटी पौधा है तथा इसका प्रयोग खिड़की, दरवाजो आदि को लोकप्रिय बनाने के लिए किया जाता है. इसके फूलों का प्रयोग गुलदस्ता बनाने के लिए भी किया जा सकता है.
भूमि
पेटूनिया उगाते समय मिट्टी का प्रकार कोई प्रतिबंधी कारक नहीं होता है, तथा यह पौधे बलुई दोमट से औसतन दोमट मिट्टी में अच्छी तरह विकसित हो सकते हैं. इन्हें अच्छी धूप तथा जल निकास वाली मिट्टी तथा हल्की अम्लीय, जिसका पी.एच. मान- 6.0 से 7.0 हो, वाली मिट्टी पसंद है. अच्छी जल निकास वाली मिट्टी तथा पी.एच. मान- 5.5 से 6.0 वाली मिट्टी में उगने वाले पौधों पर तेज और गहरे रंग के फूल आते हैं.
जलवायु
उचित वृद्धि एवं विकास के लिए पेटूनिया को प्रतिदिन 5 से 6 घंटे सूर्य की रोशनी की आवश्यकता पड़ती है. आमतौर पर छाया की वजह से पौधों पर कम तथा निम्न गुणवत्ता रंग वाले फूलों का विकास होता है. पेटूनिया मुख्यता सर्दियों का पौधा होने के साथ-साथ अधिकतर पेटूनिया को गर्म तथा औसत शुष्क जलवायु और धूप वाली गर्मियां पसंद आती हैं. बारिश के समय में फूल कम खिलते हैं तथा अधिकतर फूल खराब हो जाते हैं. इसके पौधे को 65 से 75 डिग्री फॉरेनहाइट (17 से 23 डिग्री सेंटीग्रेड) तक का औसत तापमान पसंद होता है क्योंकि पेटूनिया मुख्यता दक्षिण अमेरिका का वंशज है जहां गर्मियों के दौरान औसतन तापमान 59 से 86 डिग्री फारेनहाइट (15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड) होता है तथा जहां सर्दियों में बहुत कम तापमान 32 डिग्री फारेनहाइट (0 डिग्री सेंटीग्रेड) से नीचे चला जाता है, इन पौधों को 95 डिग्री फारेनहाइट (35 डिग्री सेंटीग्रेड) तक और 32 डिग्री फारेनहाइट (0 डिग्री सेंटीग्रेड) का तापमान सहन करने की क्षमता होती है.
प्रजातियां
पेटूनिया की निम्नलिखित प्रजातियां है.
पेटूनिया को फूलों के आधार पर विभिन्न भागों में बांटा गया है. इसकी कुछ प्रसिद्ध प्रजातियों के निम्नलिखित प्रकार हैं-
पेटूनिया ग्रैंडिफ्लोरा-
इस प्रजाति में सबसे बड़े फूल आते हैं जिनकी लंबाई 5 सेंटीमीटर तथा जिनकी पौधे की लंबाई 40 सेंटीमीटर (15 इंच) तक हो सकती है. हालांकि इस प्रजाति की श्रेणी में हमें हल्की लटकने वाली किस्में भी मिल सकती हैं. आमतौर पर इसके सुंदर लहरदार फूलों को बारिश तथा हवा आदि से बचाना लाभप्रद होता है. इसमें कुछ जातियां हैं जैसे कि-
शुगर डैडी -जिसमें गहरे नसों के साथ बैंगनी रंग के फूल खिलते हैं जो दिखने में सुंदर तथा आकर्षक लगते हैं.
रोज स्टार (पेटूनिया अल्ट्रा सीरीज)-जिसमें फूल सफेद केंद्र वाले तथा रंग में गुलाबी पिंक धारीदार होते हैं.
पेटूनिया मल्टीफ्लोरा-
इस प्रजाति में पेटूनिया ग्रैंडिफ्लोरा से छोटे तथा पेटूनिया मल्टीफ्लोरा से बड़े आकार के फूल आते हैं.
जातियां-
कारपेट सीरीज- यह एक फूल के लिए बहुत लोकप्रिय प्रजाति है तथा यह सघन जल्दी खिलने वाले 1.5- 2 इंच के विभिन्न प्रकार के रंगों के फूल वाली एवं सत्य आवरण के लिए एक आदर्श प्रजाति है.
प्राइम टाइम- इस श्रेणी में आने वाले फूल 2.5 इंच के सघन तथा समान रंग वाले आवरण की तरह होते हैं.
हैवियनली लैवेंडर -इसके पौधे 12- 14 इंच के तथा फूल सघन गहरे नीले रंग के 3 इंच आकार के पाए जाते हैं
पेटूनिया मिलीफ्लोरा-
इस प्रजाति सबसे छोटे फूल आते हैं. पेटूनिया मिलीफ्लोरा की लंबाई 25 सेंटीमीटर (10 इंच) तक नहीं पहुंचती है तथा इस प्रजाति को ग्रैंडिफ्लोरा के विपरीत इस पौधे को बारिश से कम बचाना पड़ता है. इस प्रजाति में लटकने वाले प्रकारों के साथ-साथ क्षैतिज रूप में उगने वाले प्रकार भी मिल सकते हैं जो मेड़ों के ऊपर लगाने के लिए उपयुक्त होते हैं.
जातियां
फेंटेसी- इस किस्म में साफ-सुथरे सघन रूप के काल्पनिक गुलाबी रंग के फूल आते हैं जो देखने में काफी आकर्षक लगते हैं.
पेटूनिया फ्लोरीबुन्डस-
पेटूनिया का वर्णन करने के लिए नई श्रेणी का विकास किया गया है जिसे फ्लोरीबुन्डस के नाम से जाना जाता है 1970 के दशक में आई फ्लोरीबुन्डस मैडनेस श्रंखला में ग्रैंडिफ्लोरा के आकार के फूल तथा और मल्टीफ्लोरा के पौधों की तरह मौसम सहिष्णुता थी आज के समय में आप फ्लोरीबुंडा पेटूनिया के छोटे तथा बड़े आकार के फूल पा सकते हैं तथा इसी प्रकार के पौधे भी पाए जाते हैं
सेलिब्रिटी- इस प्रकार के पेटूनिया में फूल 2.5- 3.0 इंच तक के हो जाते हैं तथा फूलों का आकार 2.5 से 3 इंच का होता है तथा या सगन और वर्षा सहिष्णुता भी पाई जाती है
मैडनेस पेटूनिया -
इस प्रकार की श्रेणी में फूल गहरे रंग के बड़े तथा आकार में 3 इंच तक के होते हैं तथा इसमें फूल सगन एवं ठंड तक खिले रहते हैं, फूल बारिश के बाद अच्छी तरह खिलते हैं फूल खिलने के समय बारिश प्रतिकूल प्रभाव डालती है
डबल मैडनेस पेटूनिया -
इस प्रकार के पेटूनिया के पौधों में सघन बड़े तथा फूलदार जो कि लगभग 3 इंच आकार के फूल गर्मियों में खिलते हैं मैडनेस की तुलना में डबल मैडनेस प्रजाति के फूल बरसात के बाद 1 घंटे में अपनी पुनः स्थिति में आकर खिल जाते हैं
ट्रेलिंग पेटूनिया
पर्पल वेब
यह प्रजाति फैलकर चलने वाली प्रजातियों की सबसे पहली प्रकार है तथा यह प्रकार बड़े खिले हुए गहरे गुलाबी रंग एवं बैंगनी रंग के फूल देते हैं, यह प्रकार गर्मियों में होने वाले गर्मी तथा सूखा और बारिश की क्षति के प्रति सहिष्णु होते हैं. पर्पल वेब के फूलों का आकार 3 इंच से 4 इंच लंबा रहता है
वेब-
इस प्रकार के पेटूनिया में विभिन्न प्रकार के रंगों के फूल आते हैं. इस प्रकार के पौधे मौसम सहिष्णु, रोग प्रतिरोधी और भारी खिलने वाले होते हैं
पेटूनिया की नई प्रजातियां
ब्लू स्पार्क (कैस्कैडिया)-यह एक नीले रंग के फूल वाली भीनी महकदार प्रजाति है
सुपरटुनिया सिल्वर -इसमें पाए जाने वाले फूल की बिनस (नसो) सफेद एवं की बैंगनी रंग की पाई जाती हैं जो आकर्षक लगते हैं यह मौसम के प्रति सहिष्णु एवं अधिक फूलने वाली प्रजाति है.
प्रिज्म सनशाइन-यह कोमल पीले रंग की ग्रैंडिफ्लोरा फूल के आकार की एवं मल्टीफ्लोरा फूल की तरह मौसम सहिष्णु प्रजाति है इस प्रजाति को बीज से उगाया जाता है.
खेत की तैयारी
सामान्यता पेटूनिया की खेती मैदानी क्षेत्र (खेतों) में ना करके, कंटेनर गमलों एवं हैंगिंग बॉस्केट्स में की जाती है. इसमें इसकी तैयारी के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए.
पेटूनिया की बुवाई
पेटूनिया का प्रवर्धन, बीज तथा कटिंग दोनों विधियों के द्वारा किया जाता है परंतु बीज के द्वारा प्रवर्धन लोकप्रिय है. पेटूनिया की नर्सरी अक्टूबर-नवंबर महीने में बोई जाती है. इसकी बुवाई के लिए अच्छी जल निकास वाली मिट्टी एवं अधिकांश कार्बनिक खाद की आवश्यकता होती है. पेटुनिया को गमलों में लगाने के लिए उसमें 20% कोकोपीट, 20% केचुआ खाद और नदी की रेत, गाय के गोबर की खाद, एवं 30% बागान की मिट्टी आदि मिलाकर एक मिश्रण तैयार कर गमलों की भराई कर देनी चाहिए. प्रत्येक गमले में एक चम्मच नीम की खली मिला देनी चाहिए जिससे फफूंद एवं बैक्टीरिया आदि से पौधों को बचाया जा सकता है.
बुवाई का सर्वोत्तम समय
पेटूनिया को लगाने का सर्वोत्तम समय सर्दी का मौसम होता है. पेटूनिया शरद ऋतु के ठंडे मौसम में रोपे जा सकते हैं. जाड़े के अंतिम दिनों में या गर्मी के मौसम के लिए शुरूआती बसंत में लगाए जा सकते हैं.
मिट्टी का तापमान-
इष्टतम मिट्टी का तापमान 10 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड अच्छा रहता है.
बीज बोने की सर्वोत्तम विधि
सबसे पहले नीचे की तरफ जल निकासी छिद्र के साथ अपनी पसंद का कंटेनर या गमला ले लें तथा कंटेनर या गमले को 2:1 अनुपात के साथ मिट्टी में अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद के साथ भरे तथा फिर गमलों के केंद्र में दो बीज बोए बीजों को किसी वाटरिंग कैन से पानी दे दे.
बीज से कैसे उगाए
यह पहली विधि है, आप सर्दियों के अंत में या बसंत की शुरुआत में पेटूनिया के बीज लगा सकते हैं, जब बहुत कम तापमान और ठंड खत्म हो जाती है. उन्हें गमलों या हैंगिंग बॉस्केट्स में लगाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि गमलों के नीचे छेद होना चाहिए, पानी की खराब निकासी की वजह से बीजो के पौधे को सड़ने से बचाने के लिए यह चरण महत्वपूर्ण होता है. ज्यादातर बेहतर जल निकास और वायु संचार के लिए गमलों के नीचे प्यूमिस, प्लाइट या बजरी डाल कर उसके ऊपर मिट्टी डालना अच्छा रहता है, बजरी के ऊपर मिट्टी होती है और इसके बाद बीज की बारी आती है. अपनी पसंद और पेटूनिया के आधार पर आप हर गमले में दो- दो या ज्यादा बीच डाल सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि आमतौर पर ग्रैंडिफ्लोरा को फैलने के लिए ज्यादा जगह की आवश्यकता या जरूरत होती है. हम बीजों को मिट्टी के अंदर घुसाने के बजाय सतह पर छोड़ सकते हैं. पौधों की वृद्धि के शुरुआती चरणों के दौरान मिट्टी में हमेशा नमी होनी चाहिए, लेकिन बिल्कुल गीली नहीं होनी चाहिए ताकि बीज अंकुरित हो सके. सड़ने से बचाने के लिए बहुत अधिक सिंचाई ना करें. पेटूनिया के बीजों को अंकुरित होने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, इसलिए पौधों को धूप वाली जगह पर रख सकते हैं. पेटूनिया की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह बाद कुछ छोटे पौधे दिखाई देने लगते हैं. पहले 8 से 10 दिनों के अंदर बीज अंकुरित हो जाएंगे और छोटे अंकुर दिखाई देंगे तथा दूसरे सप्ताह में एक छोटे फूल वाले पौधों के रूप में बढ़ने लगेंगे.
कलम से कैसे उगाए
कलम से पेटूनिया को उगाने का काफी प्रचलित तरीका है तथा यह विधि तेज एवं ज्यादा किफायती भी है. सबसे पहले आप मूल पौधे के रूप में किसी सुंदर स्वस्थ पेटुनिया का चुनाव कर सकते हैं. इस विधि में 4 इंच (10 सेंटीमीटर) की लंबाई वाली किसी छोटी बिना लकड़ी वाली कोमल शाखा को काट लेते हैं तथा बाद में कलम के नीचे 2 /3 हिस्से की सभी पतियों को हटा सकते हैं.
मिट्टी में कलम लगाने से पहले आपको इसकी जड़ निकालने में मदद करनी होगी. ऐसा करने के लिए आमतौर पर कलम को पानी की एक गिलास में रखने की जरूरत होती है जिसमें पौधे के आधे भाग तक पानी रहता है तथा इसमें कुछ दिनों बाद जड़ें निकलने लगती हैं. पेटूनिया की जड़ें निकालने की गति बढ़ाने के लिए आप IAA जैसे रूटिंग हार्मोन का प्रयोग कर सकते हैं. जड़ निकलने के बाद कलम को फूलों वाले मिट्टी के मिश्रण और उचित वायु संचार के लिए प्लाइट या बजरी के साथ गमलों में लगाने की जरूरत होती है. आमतौर पर पेटूनिया के पौधों से सुंदर फूलों का उत्पादन करने के लिए पुराने सूखे हुए फूलों को हटा दिया जाता है. इस तरह से पौधे के नए फूलों को ज्यादा पोषक तत्व मिलते हैं.
पेटूनिया को हैंगिंग बॉस्केट्स में उगाना
पेटूनिया को इस प्रकार उगाने के लिए 50% कोकोपीट, 30% केचुआ की खाद, 10% बर्मीकुलाइट एवं 10% परलाइट आदि मिलाकर हैंगिंग बॉस्केट्स में भर देनी चाहिए. पिटूनिया को इस प्रकार उगाने के लिए पर्याप्त जल धारण क्षमता का उपयोग करें क्योंकि इसमें बगीचे की मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है.
सिंचाई
दूसरे पौधों की तरह पेटूनिया को भी ज्यादा सुखी या गीली मिट्टी पसंद नहीं है. इसके बजाय इन्हें थोड़ी नम मिट्टी अच्छी लगती है. आमतौर पर पेटूनिया में सप्ताह में 1 से 3 बार पानी डाल सकते हैं तथा इस बात का ध्यान रखें कि आप बीज से पेटूनिया उगा रहे हैं तो आपको बीजों में अंकुर निकालने में मदद करने के लिए ज्यादा पानी डालने की आवश्यकता पड़ सकती है. हैंगिंग बास्केट तथा अन्य कंटेनर आदि को उनकी मिट्टी की मात्रा के आधार पर दैनिक सिंचाई में लगातार कम या अधिक पानी की आवश्यकता होती है.
खाद एवं उर्वरक
पेटूनिया की खेती के लिए अधिक कार्बनिक खाद वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है तथा इसके साथ केंचुआ खाद की अधिक मात्रा में भी आवश्यकता पड़ती है. ज्यादातर उत्पादक महीने में एक बार नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 10-10-10, 12-12-12 या 15-15-15 का संतुलित तरल उर्वरक डालकर बगीचे में पेटुनिया के तेजी से विकास में मदद करते हैं. उद्यान में उगे पेटूनिया के लिए संतुलित उर्वरक जैसे, 8-8-8, 10-10-10 या 12-12-12 के रूप में जुलाई के शुरुआत से मध्य में हर 2 से 3 सप्ताह में एक तरल उर्वरक का प्रयोग करना शुरू करना चाहिए
पौधों से सूखे हुए फूलों को हटाना (डेड हेडिंग)
हर समय पर पेटूनिया के फूलों का आनंद उठाने के लिए पौधों से मरे हुए फूलों को हटाने की प्रक्रिया (डेड हेडिंग) का प्रयोग करते हैं. पौधों से सूखे फूल हटाने से हमारा मतलब पेटूनिया खिलने के मौसम में पुराने खिले हुए फूलों की कटाई करना या बीज वाले हरे कोशो को हटाना होता है. अगर हम पुराने खिले हुए फूलों या अक्सर पौधों के पीछे स्थित हरे कोशो को नहीं हटाते तो पौधा बीज का उत्पादन करने के लिए अपनी ज्यादातर उर्जा उन्हें देना शुरू कर देगा तथा फूल खिलना बंद हो जाता है. यह एक सरल तकनीक है जो पिटूनिया के खिलने का समय बढ़ाएगी और साथ ही साथ बड़े और सुंदर फूल देगी.
प्रमुख रोग एवं रोकथाम
ग्रे मोल्ड और सॉफ्ट रॉट
यह रोग मुख्यता बरसात के मौसम में लगता है. इससे प्रभावित पौधे एवं फूलों पर भूरे रंग के नरम धब्बे पड़ जाते हैं. यह रोग पौधों में नर्सरी, नए तनो एवं पत्तियों, फूलों आदि पर काफी मात्रा में आता है. इस रोग की रोकथाम के लिए वर्षा रोधी सहिष्णु फूल वाले पौधे का चुनाव करना चाहिए तथा रोग की अधिकतम मात्रा होने पर किसी एक सर्वांगी फफूंदीनाशक का प्रयोग करना चाहिए.
बोट्राइटिस ब्लाइट
यह रोग कम खिले फूलों पर आता है तथा प्रभावित फूल झुलसे हुए नजर आते हैं. इस रोग का फैलाव फूल गिरने (प्रभावित फूल में पत्तियों एवं तनो पर) पर स्वस्थ पौधों को काफी रोगी बना देते है. बोट्राइटिस की रोकथाम के लिए नियंत्रित वायुमंडल एवं कर्षण क्रियाएं का उपयोग करना चाहिए. मृदा में अधिक नमी नहीं रखनी चाहिए तथा रोग आने की दशा में किसी एक अच्छे फफूंदी नाशक का छिड़काव करना चाहिए. इससे प्रभावित फूल छोटे तथा पारदर्शी एवं मृत धब्बे नजर आते हैं.
फाइटोप्थोरा क्राउन रॉट
इस रोग से प्रभावित पौधे की शाखाएं ऊपर की ओर से सूखने लगती है तथा यह रोग पौधों में सबसे अधिक लगता है तथा वह जल्दी ही मर जाते हैं. अगर बाहर का मौसम शुष्क है तो इस रोग का फैलाव जड़ तक हो सकता है. इस रोग के लक्षण विभिन्न प्रजातियों पर अलग-अलग हो सकते हैं. एक वर्षीय पौधों में इस रोग के लक्षण पत्तियों एवं तनो पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए मृदा एवं मिश्रण का पाश्चुरीकरण माध्यम होना चाहिए जो रोग मुक्त हो तथा प्रभावित पौधे को मिट्टी एवं गमलों से निकाल देना चाहिए. पत्तियों एवं तनो पर तथा बुवाई के समय मिट्टी में 7 से 10 दिन के अंतराल पर बरसात के मौसम में एक प्रभावी फफूंदी नाशक मैंकोजेव अथवा मेनेव का छिड़काव करते रहना चाहिए.
बौनापन (स्टंटिंग)
इससे प्रभावित पौधा छोटा तथा मोटा बौनापन आकार का हो जाता है जिससे पौधे पर फूल या तो नहीं या फिर बहुत कम गुणवत्ता का फूल आता है. इस रोग की रोकथाम के लिए मृदा का पी.एच. मान- 7 रखना चाहिए. पानी में अधिक मात्रा में कैल्शियम और सोडियम की मात्रा का भी परीक्षण करते रहना चाहिए जो कि अधिक होने पर पौधे पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
विषाणु वायरस
इसका रोग कारक- इंपैक्टिस नैक्रोटिक स्पॉट वायरस (INSV) है. इससे प्रभावित पौधों की पत्तियों पर खुरदुरे उभरे हुए उथले आकार के धब्बे बन जाते हैं जिससे पत्तियों की अपनी दैनिक क्रिया एवं प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन बनाने में बाधा उत्पन्न होती है. इस रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित पौधे को निकालकर मिट्टी आदि में दबा देना चाहिए. इस रोग का वाहक थ्रिप्स होता है जिसकी रोकथाम आवश्यक है. इसके लिए किसी कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए.
प्रमुख कीट एवं नियंत्रण
एफिड्स-
यह छोटे कीट होते हैं, जो हर बगीचे आदि पौधों पर आसानी से मिल जाते हैं. ये छोटे नरम शरीर वाले कीड़े होते हैं, जो पौधों से पोषक तत्व एवं उनका रस चूसने का काम करते हैं. अधिक संख्या में एफीड पौधो एवं फूलों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. एफीड की रोकथाम के लिए उनके प्रजनन क्रिया को प्रभावित करना चाहिए. एफीड पर ठंडे पानी का छिड़काव करने से उनको पौधों एवं फूलों से विस्थापित किया जा सकता है. यदि एफिड्स की संख्या अधिक है तो पौधों पर धूल या कीटनाशक धूल वाले कीटनाशी का छिड़काव करें. नीम का तेल तथा कीटनाशक सावुन एवं बागवानी तेल एफीडस के नियंत्रण के लिए प्रभावी पाए गए हैं.
इसके अलावा ‘डायटोंमेसियस अर्थ’ एक गैर विषैला कार्बनिक पदार्थ है जो एफीडस को मार देता है तथा इसका प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज बनाने के लिए पौधों को फूल खिलने के समय इसका प्रयोग ना करें ताकि यह फूल खिलने के समय परागण करने वाले सहायक कीटों को भी मार देता है. यह क्रिया पौधों से बीज प्राप्त करने की दशा में प्रयोग नही की जाती है. फूल प्राप्त करने के लिए डी. इ. का प्रयोग कर सकते हैं.
कैटरपिलर
यह एक सुंडी होती है, जो जून एवं जुलाई माह में पौधों में फूल की कलिका को खाती है. इस कीट से प्रभावित पौधों पर छोटे काले धब्बे एवं पत्तियों एवं कलियों में छेद बना दिए जाते हैं जो फूल बनाने की क्रिया में फूलों को काफी नुकसान पहुंचाता है. इसकी रोकथाम के लिए एक प्रभावी सर्वांगी कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए
फूलों का आना एवं उनकी तुड़ाई
बुवाई के लगभग 35-50 दिनों के बाद फूल आना शुरू हो जायेंगे. पूरी तरह से खिले हुए फूलों को तोड़कर बाज़ार में बेंचा जा सकता है, जो कि बाद में विभिन्न प्रकार की सजावट में प्रयोग होते है. इसके फूलों का प्रयोग गुलदस्ता बनाने के लिए भी किया जा सकता है. इस प्रकार उन्नत तरीके से पेटूनिया को उगाकर किसान अच्छे दामों पर बाजार में बेंच सकते है तथा मुनाफा भी कमा सकते है.
लेखक
अंकित कुमार शर्मा, अरुण कुमार, शिल्पी सिंह एवं स्वाभी त्यागी
रिसर्च स्कॉलर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ-250110.
Email I.D.- [email protected]
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