वैसे तो दुधारू पशुओं को कई तरह की बिमारियों के लगने का डर रहता है, लेकिन सबसे अधिक खतरा इन्हें थनैला रोग से होता है. थनैला सबसे संभावित बीमारी है, जो पशुओं में कभी भी हो सकती है. पिछले कुछ सालों के आंकड़े भी यही कहते हैं कि ये बीमारी बहुत तेजी से दुधारू पशुओं को अपना शिकार बना रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक इस रोग के फैलने के कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण है साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाना. चलिए आपको बताते हैं कि कैसे आप कुछ आसान से उपाय करके इस बीमारी को होने से रोक सकते हैं.
पशुओं के दूध को कम कर देता है थनैला
थनैला एक प्रकार की ऐसी बीमारी है, जिसका सीधा प्रभाव दूध उत्पादन पर पड़ता है. सरल शब्दों में कहें तो पशुपालकों की कमाई के लिए यह रोग सबसे बड़ा खतरा है. एक बार इस रोग के प्रभाव में अगर दुधारू पशु आ जाएं तो वो दूध देना धीरे-धीरे कम करते जाते हैं.
दबाव बढ़ने से होता थनैला
डॉक्टरों का कहना है कि दूध का दबाव बढ़ने के कारण पशुओं को यह बीमारी होती है. यहां हम आपको ये भी बताना चाहेंगें कि इस बीमारी का उपचार आसान नहीं है, इसलिए ऐसे समय में झोलाछाप चिकित्सक के पास उपचार या घर में ही उपचार न करें. थनैला का पता लगते ही पशु चिकित्सक से संपर्क करें.
बीमारी के लक्षणः
पशु खाना धीरे-धीरे कम कर देता है. उसके व्यवहार में बदलाव आता है और थनों में असामान्य रूप से सूजन होने लगती है. उसके दूध का रंग भी कुछ बदल सा जाता है, जिसे आराम से देखा जा सकता है.
बरतें सावधानीः
इस रोग को बहुत आसानी से होने से रोका जा सकता है. कुछ सावधानियों का रखना जरूरी है, जैसे पशु बांधने के स्थान को सही से साफ किया जाना चाहिए. दूध निकालने के लिए आपको मुट्ठी का उपयोग किया जाना चाहिए.
पशु को दें संपूर्ण आराम
ऐसे समय में पशु को संपूर्ण आराम देना चाहिए. दूध निकालने के कुछ देर बाद इन्हें चारा डालना चाहिए. कोशिश करें कि इस दौरान पशु जमीन पर कम से कम ही बैठे. विशेषज्ञों के मुताबिक दूध निकालने के लगभग आधे घंटे बाद तक थनों के छिद्र (छेद) खुले होते हैं, ऐसे में उनमें संकम्रण की शिकायत आ सकती है. पशुओं को बैक्टीरिया से बचाने के लिए चारा डालना सही है, ताकि दूध देने के बाद थोड़ी देर वो खड़े रहें.
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