गाय का दूध बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक गुणों से भरपूर होता है. विभिन्न शोधों में यह बात सामने आई है कि गाय का दूध बच्चों या व्यक्ति के बौद्धिक विकास में बेहद फायदेमंद होता है. ऐसा माना जाता है गाय के दूध के सेवन से दिमाग तेज होता है, वहीं यह पाचन तंत्र को भी दुरुस्त रखता है.
इसके अलावा, गाय के दूध का सेवन करने से पित्त संबंधी बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं. इसके लगातार सेवन से शरीर का तेज और ओज भी बढ़ता है.
टीबी के मरीजों के लिए गाय का दूध रामबाण औषधि माना जाता है. वैसे तो भारत में सदियों से गाय का पालन किया जाता रहा है. आज देश में देशी-विदेशी सभी नस्लों की गाय का पालन बड़े स्तर पर किया जाता है. देशी नस्लों में गिर, साहीवाल का पालन प्रमुखता से किया जाता है. वहीं विदेशी गायों में एचएफ (होल्सटीन फ्रिसियन) का पालन करके पशुपालक अच्छी आमदानी कर सकते हैं.
एचएफ क्रॉस ब्रीड गाय का करें पालन (Follow HF Cross Breed Cow)
कृषि जागरण से बात करते हुए इंदौर कृषि विज्ञान केन्द्र के एनिमल हस्बेंड्री स्पेशलिस्ट डॉ. श्रीराम दधीच का कहना है कि होल्सटीन फ्रिसियन (एचएफ ) और जर्सी की क्रॉस ब्रीड नस्ल का पालन किसानों लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है. इंदौर जिले में कई पशुपालक हैं, जो एचएफ नस्ल की क्रॉस ब्रीड (संकर नस्ल) का पालन करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
एक ब्यांत 2100 लीटर दूध (1 cup 2100 liters of milk)
दधीच ने आगे बताया कि कि देशी नस्ल की गायों की तुलना में एचएफ क्रास ब्रीड अधिक दूध देने में सक्षम है. यह 270 से 290 दिनों तक दूध देती है. वहीं एक ब्यांत में तकरीबन 1700 से 2100 लीटर दूध देती है. इसकी क्रॉस ब्रीड प्रतिदिन 10 से 12 लीटर दूध देती है. वहीं देशी नस्ल की गायें इसकी तुलना में बेहद कम 2 से 3 लीटर ही दूध देती हैं. व्यावसायिक दृष्टि से इस नस्ल की गाय का पालन लाभकारी है.
एचएफ नस्ल की गाय के गुण (Characteristics of HF breed cow)
1. गाय की यह नस्ल मूलतः यूरोपीय देश नीदरलैंड की है. इसका औसत वजन 580 किलोग्राम होता है.
2. इसके दूध में 3.5 से 4 फीसदी वसा होता है. यह प्रतिदिन 10 से 15 लीटर दूध दे सकती है.
3. इस गाय का रंग काला या सफेद या फिर लाल या सफेद हो सकता है.
4. इसकी चमड़ी कसी और चमकीली होती है. सामान्य गाय की तुलना में इसका लंबाई अधिक होती है. इसका माथा छोटा, लंबा और सीधा होता है.
5. गाय की यह नस्ल अधिक तापमान नहीं सह पाती है. दरअसल, यह यूरोपीय देशों से आई है, जहां सामान्यतः तापमान कम होता है.
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