हाल में ही एमएसपी (MSP) का मुद्दा सुर्खियों में है. किसान संगठन इसके प्रभावी लागू करने के लिए आन्दोलन भी कर रहे हैं. कृषि सुधार बिलों (Agricultural reform bill) में एमएसपी को नहीं रखना भी किसानों को अखर रहा है, क्योंकि इसको कानूनी (Act) रूप देना की मांग बड़ी पुरानी है. तो आइए जानते है एमएसपी के बारे में और क्यों जरूरी है किसानों के लिए एमएसपी.
क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य (What is the Minimum Support Price)
आपको बता दें कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भारत सरकार (Central Government) द्वारा जारी किया जाता है, जिससे कृषि बाजार में कृषि उत्पादकों को कीमतों में तेज गति से गिरावट को रोका जा सके. MSP भारतीय किसानों के लिए एक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है. पिछले दशकों के दौरान, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ने भारतीय किसानों (Indian farmer) को मूल्य परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने में मदद की. किसान आन्दोलन (Farmer protest) के दौरान एमएसपी एक महत्वपूर्ण तर्क बन गया है. कृषि लागत और मूल्य आयोग (Agricultural Costs and Prices Commission) की सिफारिशों के आधार पर कुछ फसलों के लिए बुवाई से पहले भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी जाती है. समर्थन मूल्य को किसानों के लिए उनकी उपज की मूल्य गारंटी समझा जाता है. किसानों को उनके उत्पाद का एक पहले से निश्चित मूल्य दिलाना और सार्वजनिक वितरण के लिए खाद्यान्नों की खरीद करना इसका प्रमुख उद्देश्य है, यदि बम्पर उत्पादन के कारण बाजार में दाम कम हो जाते हैं तो सरकारी एजेंसियां घोषित न्यूनतम मूल्य पर किसानों से खरीदी करती हैं.
देश में एमएसपी की शुरुआत (Introduction of MSP in the country)
कृषि मूल्य आयोग ने 60-70 के दशक के दौरान, पहली छमाही में एमएसपी और खरीद मूल्य का आंकलन करने के लिए उत्पादन की लागत को मुख्य रूप से चुना गया. 1979 के दौरान सेन समिति ने कृषि मूल्य आयोग का नाम बदलकर कृषि लागत और मूल्य आयोग करने का सुझाव दिया, साथ ही साथ पूरी तरह से परिवर्तित शर्तों के साथ इस आयोग की शुरुआत हुई. इसके बाद 80 के दशक के दौरान किसान संगठनो ने मांग उठाई कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की आंकलन करने की विधि पर फिर से विचार किया जाये और कीमतों की पारिश्रमिक भूमिका पर जोर दिया जाये.
एमएसपी निर्धारण के महत्वपूर्ण कारक (Important Factors of MSP Determination)
MSP को तय करते समय मुख्य रूप से 7 महत्वपूर्ण कारकों पर विचार किया जाता है. ये कारक है:
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उत्पादन की लागत (Cost of production).
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आदान (Input) मूल्य में बदलाव.
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खाद्य सामग्री की मांग एवम् इसकी आपूर्ति (Demand and supply).
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अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों का उतार-चढ़ाव (Price trends in the market, both domestic and international).
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क्षेत्रों में फसलों के इनपुट और आउटपुट के बीच मूल्य समता (inter-crop price parity).
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उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर एमएसपी के संभावित प्रभाव (likely implications of MSP on consumers of that product).
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कृषि और गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें (terms of trade between agriculture and non-agriculture).
न्यूनतम समर्थन मूल्य में सम्मिलित फसलें (Crops covered in MSP)
केन्द्र सरकार 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और गन्ने के लिए उचित और पारिश्रमिक मूल्य की घोषणा हर 6 महीने में करती है. इनमें खरीफ की 14 फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें हैं. इसके अलावा तोरिआ और डी-हस्क नारियल के एमएसपी क्रमशः सरसों और खोपरा के आधार पर तय किए जाते हैं.
भारत सरकार द्वारा 2020-21 खरीफ में धान (सामान्य) के लिए 1868 रुपए, ज्वार (हाइब्रीड) 2620 रुपए, रागी 2150 रुपए, बाजरा 2150 रुपए, रागी 3295 रुपए, मक्का 1850 रुपए, तुर (अरहर) 6000 रुपए, मूंग 7196 रुपए, उड़द 6000 रुपए, कपास (मध्य रेशे) 5515 रुपए, मूँगफली 5275 रुपए, सूरजमुखी बीज 5885 रुपए, सोयाबीन 3880 रुपए, तिल 6855 रुपए, रामतिल (Niger seed) 6695 रुपए प्रति क्विंटल की दर निर्धारित की गई.
इसी प्रकार रबी 2020-21 के लिए गेहूं 1975 रुपए, जौं 1600 रुपए, चना 5100 रुपए, मसूर (Lentil) 5100 रुपए, सरसों (Rapeseed & Mustard) 4650 रुपए, कुसुम (Safflower) 5327 रुपए प्रति क्विंटल की दर निर्धारित की गई है| इसके अतिरिक्त जुट के लिए 4225 रुपए, गन्ना के लिए 285 रुपए, कोपरा (मिलिंग) 9660 की दर निर्धारित की गई है.
एमएसपी के लाभ (Benefits of MSP)
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एमएसपी से खाद्यान की कीमतों में स्थिरता बनी रहती है.
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किसानों को बुवाई से पहले ही कीमत का पता चल जाता है जिससे फसल चुनाव किया जा सकता है.
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किसान को निश्चित कीमतों पर खरीद की गारंटी मिल जाती है.
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आपूर्ति में फसलों पर नियंत्रण रखा जा सकता है.
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सरकार द्वारा खरीदी गई उपज को गरीबी रेखा से नीचे के लोगों या जरूरतमंदो के लिए उचित मूल्य की दुकानों पर बेचा जाता है.
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