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शून्य बजट प्राकृतिक खेती किसानों के लिए एक वरदान

नयी तकनीकों एवं नयी विधियों का इस्तेमाल करने हेतु किसानों को महंगी मशीनें, महंगे खाद व महंगी बीज का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे खेती की लागत बढ़ गई है. खेती की नयी तकनीक के साथ किसान अपने खेत में रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे है. जिससे किसान की उपज में वृद्धि तो हो रही है,

KJ Staff
Zero Budget Farming
Zero Budget Farming

नयी तकनीकों एवं नयी विधियों का इस्तेमाल करने हेतु किसानों को महंगी मशीनें, महंगे खाद व महंगी बीज का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे खेती की लागत बढ़ गई है. खेती की नयी तकनीक के साथ किसान अपने खेत में रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे है. जिससे किसान की उपज में वृद्धि तो हो रही है,

लेकिन उत्पादन लागत में भी वृद्धि हो रही है. ऐसे में किसान पूंजी के आभाव में कर्जे में डूबता जा रहा है अथवा किसान को अपनी उपज की सही कीमत भी नहीं मिलती है. इन सभी कारणों से रासायनिक खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है. इसके साथ ही किसानों के खेत की उर्वरता में भी कमी हो रही है. मिट्टी भी बंजर होती जा रही ह. खेती के मौजूदा दौर में शून्य बजट प्राकृतिक खेती किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. शून्य बजट प्राकृतिक खेती से उत्पादन में लागत कम होगी और कम लागत में अधिक पैदावार होगी साथ ही उपज की अच्छी गुणवत्ता होने के कारण उसके दाम भी बाजार में अच्छे मिलेंगे.

शून्य बजट प्राकृतिक खेती को महाराष्ट्र के रहने वाले पूर्व कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर जी ने ईजाद किया है. इसे सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती भी कहा जाता है. शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए सुभाष पालेकर जी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया. शून्य बजट प्राकृतिक खेती करने का एक तरीका है जिसमें बिना किसी लागत के खेती की जाती है. खेती करने के इस तरीके में बहार से किसी भी उत्पाद का कृषि में निवेश मना है. कुल मिला कर कहें तो यह सम्पूर्ण रूप से प्राकृतिक खेती है. शून्य बजट प्राकृतिक खेती में प्राकृतिक चीजो का ही इस्तेमाल होता है और जमीन पर भी कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ता है.

शून्य बजट प्राकृतिक खेती क्या है:-

शून्य बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित है. एक देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर शून्य बजट खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है. इन् सभी का खेत में प्रयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियाँ बढ़ती है. गाय के सप्ताह भर गोबर एवं गौमूत्र से बनाया गया घोल का छिड़काव खेत में खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता भी कम नहीं होती. जीवामृत का महीने में एक बार या दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता ह, जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीज उपचार में किया जाता है. इस विधि से खेती करने से किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरुरत नहीं पड़ती है. फसलों की सिंचाई के लिए पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है.

शून्य बजट प्राकृतिक खेती के चार स्तम्भ:-

जीवामृत

जीवामृत की मदद से जमीन को पोषक तत्व मिलते है और ये एक उत्प्रेरक का काम करता है, जिसकी वजह से मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि बढ़ जाती है. जीवामृत बनाने के लिए एक बैरल में 200 लीटर पानी डालें और उसमें 10 किलो ताजा गाय का गोबर, 5 से 10 लीटर वृद्ध गाय का मूत्र, 2 किलो दाल का आटा, 2 किलो भूरी शक्कर और मिट्टी को मिला दें, यह सब चीजे मिलाने के बाद इस मिश्रण को छाया में रख दें. 48 घंटे छाया में रखने के बाद यह मिश्रण इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जायेगा.

एक एकड़ जमीन लिए 200 लीटर जीवामृत की जरुरत होती है और फसलों में महीनें में दो बार जीवामृत का छिड़काव देना होता है। किसान इसको सिंचाई के पानी में मिलाकर भी फसलों पर छिड़काव दें सकते है.

बीजामृत

बीजामृत का इस्तेमाल नए पौधे के बीज रोपण के दौरान किया जाता है और बीजामृत की मदद से नए पौधों की जड़ो को मजबूत, मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाया जाता है. इसे बनाने के लिए गाय का गोबर, एक शक्तिशाली फफूंदीनाशक, गौमूत्र, निम्बू और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है. किसी भी फसल को बोने से पहले उन बीजों में अच्छे से बीजामृत लगा दें और कुछ देर उन बीजों को सूखने के लिए छोड़ दें अथवा सूखने के बाद इनको जमीन में बो सकते है.

आच्छादन-मल्चिंग

मिट्टी की नमी बनाये रखने के लिए और उसकी प्रजनन क्षमता को बनाये रखने के लिए मल्चिंग का प्रयोग करते है। इस प्रक्रिया के अंदर मिट्टी की सतह पर कई तरह की सामग्री को लगाया जाता है। मल्चिंग तीन प्रकार की होती है- मिट्टी मल्च, भूसा मल्च और लाइव मल्च.

मिट्टी मल्च

मिट्टी के आसपास और मिट्टी इकट्ठा करके रखा जाता है, ताकि मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता को और अच्छा बनाया जा सके अथवा खेती के दौरान मिट्टी की ऊपरी सतह को कोई नुकसान न पहुंचे.

भूसा मल्च

भूसा सबसे अच्छी मल्च सामग्री है. किसान चावल के भूसे और गेहूं के भूसे का उपयोग करके अच्छी फसल पा सकता है और मिट्टी की गुणवत्ता को भी सही रख सकता है.

लाइव मल्चिंग

इस प्रक्रिया के अंदर एक खेत में एक साथ कई तरह के पौधे लगाए जाते हैं और ये सभी पौधे एक दूसरे को बढ़ने में मदद करते है. ऐसे दो पौधों को एक साथ लगा दिया जाता है जिनमे से कुछ ऐसे पौधे होते हैं जो की कम धूप लेने वाले पौधों को अपनी छाया प्रदान करते है और ऐसे पौधे का अच्छे से विकास हो पता है.

व्हापासा

सुभाष पालेकर जी ने बताया है की पौधों को बढ़ने के लिए अधिक पानी की आवश्कता नहीं होती है और पौधे व्हापासा यानि भाप की मदद से भी बढ़ सकते है. व्हापासा वह स्थिति है जिसमें हवा अणु होती है और इन दोनों अणु की मदद से पौधे का विकास हो जाता है.

शून्य बजट प्राकृतिक खेती के फायदेः-

कम लागत लगती है-

शून्य बजट प्राकृतिक खेती तकनीक के अतंर्गत किसान को किसी भी प्रकार के रासायनिक और कीटनाशकों तत्वों की खरीदने की जरुरत नहीं पड़ती है और इस तकनीक में किसान केवल अपने द्वारा बनाई गई चीजो का इस्तेमाल करता है, जिसके चलते इस प्रकार की खेती करने के दौरान कम लागत लगती है.

जमीन के लिए फायदेमंद

आजकल किसान अपनी फसल को किसी भी प्रकार की बीमारी या कीड़े से बचने के लिए अलग अलग प्रकार के रासायनिक और कीटनाशकों का छिड़काव करते है. इसके कारण जमीन के उपजाऊपन को नुकसान पहुँचता है और कुछ समय बाद फसलों की पैदावार भी अच्छे से नहीं हो पाती है. मगर शून्य बजट प्राकृतिक खेती के दौरान जमीन का उपजाऊपन बना रहता है और फसलों की पैदावार अच्छी होती है.

मुनाफा ज्यादा होता है

शून्य बजट प्राकृतिक खेती  के तहत केवल खुद से बनाई कई खाद का इस्तेमाल किया जाता है और ऐसा होने से किसानों को किसी भी फसल को उगने में कम खर्चा आता है और कम लागत लगने के कारण उस फसल पर किसानों को अधिक मुनाफा होता है.

अच्छी पैदावार होती है

शून्य बजट प्राकृतिक खेती के द्वारा जो फसल उगाई जाती है उसकी पैदावार अच्छी होती है. यदि किसानों को यह लगता है कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती के तहत खेती करने से फसलों की पैदावार कम होगी तो बिलकुल नहीं है।.

पैदावार की गुणवत्ता बढ़ती है

शून्य बजट प्राकृतिक खेती से पैदावार की गुणवत्ता बढ़ती है, क्योंकि इस तकनीक में किसी भी रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशकों का प्रयोग वर्जित है. इस तकनीक में सभी प्राकृतिक चीजो का ही प्रयोग किया जाता है जिससे फसल की गुणवत्ता बढ़ती है और इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार की बीमारी से ग्रस्त होने का खतरा नहीं होता है.

इन सभी कारणों को मद्देनजर रखते हुए यह कहा जा सकता है कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती किसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक है. ज्यादा से ज्यादा और जल्द से जल्द किसानों को शून्य बजट प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए.

लेखक

सोनिया,कविता एवं डी.पी मलिक

कृषि अर्थशास्त्र विभाग एवं सस्य विज्ञान विभाग

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

English Summary: Zero budget natural farming a boon for farmers Published on: 03 February 2022, 04:16 PM IST

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