उड़द या उर्द उत्तर प्रदेश की मुख्य दलहनी फसल है. जिसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ में की जाती है, लेकिन उर्द की जायद के समय से बुवाई तथा सघन पद्धतियों को अपना कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. विगत 5 वर्षों का उर्द के आच्छा उत्पादन एवं उत्पादकता का विवरण निम्न प्रकार है.
भूमि तथा उसकी तैयारी
उर्द की खेती के लिए हल्की दोमट तथा मटियार भूमि उपयुक्त रहती है. पलेवा करके एक दो जुताई रोटावेटर, हेरो अथवा कल्टीवेटर से करके हर जुताई के बाद पाटा लगाना आवश्यक है. जिससे खेत की नमी बनी रहती है.
प्रजातियां
अच्छी उपज लेने के लिए जल्दी पकने वाली निम्न प्रजातियों की बुवाई करें.
क्र0 सं0 |
प्रजाति |
पकने की अवधि (दिन में) |
उपज कु0 प्रति है0 |
1. |
पन्त यू-19 |
75-80 |
8-9.5 |
2. |
नरेन्द्र उर्द-1 |
75-80 |
8-9 |
3. |
आजाद उर्द-1 |
75-80 |
8-10 |
4. |
आजाद उर्द-2 |
70-75 |
10-12 |
5. |
पन्त यू-35 |
75-80 |
8-10 |
6. |
शेखर-2 |
75-80 |
10-12.5 |
7. |
टी-9 |
75-80 |
8-9 |
प्रजाति की बुवाई मार्च के दूसरे सप्ताह के अन्दर अवश्य करें.
बीजोपचार एव बीज शोधन
2.5 ग्राम धायराम अथवा 2 ग्राम थीरम एवं एक ग्राम कार्बोन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा स्यूडोमोनास से प्रति किग्रा0 बीज की दर से शोधन करें. जिससे प्रारम्भिक अवस्था में रोग रोधक क्षमता बढ़ती है. जिससे जमाव अच्छा हो जाता है. जिसके फलस्वरूप प्रति इकाई पौधों की संख्या सुनिश्चित हो जाती है और उपज में वृद्धि होती है. इसके बाद मोनोक्रोटोफास 36 ई0सी0 दवा 10 मिली प्रति क्रि0ग्रा0 की दर से बीज को शोधित कर लें इससे तनावेधक मक्खी से बचाव होता है तथा फसल की बढ़वार अच्छी हो जाती है.
बीज उपचार
बीज शोधन के पश्चात् बीजों को एक बोरे में फैलाकर राइजोबियम व पी0एस0वी0 कल्चर से उपचारित करने की विधि इस प्रकार है.-
राइजोवियम
आधा लीटर पानी में 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर का पूरा पैकेट मिला दें. इस मिश्रण में 10 कि0 ग्रा0 बीज के ऊपर छिड़क कर हल्के हाथ से मिलायें जिससे बीज के ऊपर एक हल्की सी परत बन जाती है. इस बीज को छाये में 1-2 घंटे सुखाकर बुवाई प्रातः 9 बजे तक या सायंकाल 4 बजे के बाद करें. तेज धूप में कल्चर के जीवाणुओं के मरने की आशंका रहती है. ऐसे खेतों में जहां उर्द की खेती पहली बार या काफी समय के बाद की जा रही है. वहां कल्चर का प्रयोग अवश्य करें.
पी0एस0वी0
दलहनी फसलों के लिए फास्फेट पोषक तत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है. फास्फेट की उपलब्धता में कमी के कारण इन फसलों की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
भूमि मे अनुपलब्ध फास्फेट को उपलब्ध दशा मे परिवर्तित करने के लिए फास्फेट सालूब्लाईजिंग बैक्टरिया का (पी0एस0बी0) का कल्चर बहुत सहायक होता है. इसलिए आवश्यक है कि नत्रजन की पूर्ति हेतु राइजोबियम के साथ-साथ फासफेट की उपलब्धता बढ़ाने के लिए पी0एस0बी0 का प्रयोग किया जाता है. पी0एस0बी0 की प्रयोग विधि एवं मात्रा राइजोबियम कल्चर के समान है.
बीज की मात्रा
उर्द का पौधा जायद में कम बढ़ता है. अतः 30-35 किग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर बुवाई हेतु प्रयोग करें.
बुवाई का समयः- बुवाई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च.
उर्वरकों का प्रयोग
सामान्यतः उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के अनुसार किया जाना चाहिए अथवा उर्वरकों की मात्रा निम्नानुसार निर्धारित की जाए. 15-20 किलो ग्राम नत्रजन, 40 किलो ग्राम फासफोरस एवं 20 किलो ग्राम गन्धक प्रति हैक्टर प्रयोग करें. फासफोरस से दाने की उपज मे वृद्धि होती है. उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कुड़ो बीज से 2-3 सेमी0 नीचे देनी चहिए. यदि सुपर फासफेट उपलब्ध न हो तो 1 कुन्तल डी0ए0पी0 तथा 1.5 कुन्तल जिप्सम का प्रयोग बुवाई के समय किया जाना चाहिए.
सिंचाई
पहली सिंचाई 20-25 दिन बाद करनी चाहिए. पहली सिंचाई बहुत जल्दी करने से जड़ों तथा ग्रन्थियों का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता. बाद में आवश्यकतानुसार 15-20 दिन बाद हल्की सिंचाई करते रहे. जायद में उर्द की फसल में स्प्रिकलर से सिंचाई अत्याधिक लाभप्रद है.
खरपतवार नियंत्ररण
पहली सिंचाई के बाद खुरपी से निराई से खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ वायु का भी संचार होता है जो उस समय मूल ग्रन्थियों में क्रियाशील जीवाणुओं द्वारा वायुमण्डलीय नत्रजन एकत्रित करने में सहायक होते हैं.
खरपतवारों का रासायनिक निंयत्रण
पेन्डा मैथिलीन 30ई0 सी0 के 3.5 लीटर एलाक्लोर 50ई0सी0 के 3लीO 500-750 ली0 पानी में घोलकर बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर जमाव से पूर्व छिड़काव करें.
फसल सुरक्षा
उर्द में प्रायः पीले चित्रवर्ण (मोजेक) रोग का प्रकोप होता है. इस रोग के विषाणु मक्खी द्वारा फैलते हैं.
नियंत्रण
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समय से बुवाई करनी चाहिए.
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पीला चित्रवर्ण (मोजेक) प्रकोपित पौधे दिखते ही सावधानी पूर्वक उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
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पीला चित्रवर्ण (मोजेक) अवरोधी प्रजाजियों की बुवाई करनी चाहिए.
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5-10 प्रौढ़ मक्खी प्रति पौध की दर से दिखाई पड़ने पर मिथाइल ओ-डिमेटान 25 ई0 सी0 या डाईमेथोएट 30 ई0सी0 1.5 ली0 प्रति है0 की दर से 650-850 ली0पानी में मिलाकर छिड़काव करना चहिए.
थ्रिप्स
इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते हैं. जिसके कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं तथा फूल गिर जाते हैं. जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
नियंत्रण
मिथाइल-ओ-डिमेटन 25 ई0सी0 या डापमिथोंएट 30 ई0सी0 1 ली0 प्रति है0 की दर से 650-8500 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
हरे फुदके
इस कीट के प्रौढ़ एवं शिशु दोनों पत्तियों से रस चूसकर उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.
नियंत्रण
थ्रिप्स के लिए कीटनाशियों के प्रयोग से हरे फुदके का नियंत्रण
किया जा सकता है.
फली वेधक
विगत 2 वर्षों मे फली वेधकों से फसल की काफी हानि होती है. इनके नियंत्रण के लिए इन्डोसल्फान 35ई0सी0 या क्यूवालफास 25 ई0सी0 1.25 ली0 प्रति है0 की दर से 600-800 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए. जिससे फली वेधक पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
कटाई एवं भण्डारण
फसल पक जाने पर फलियां काली हो जायें तो कटाई करनी चाहिए. उर्द की सभी फलिया एक साथ ही पक जाती हैं तथा चिटकती नहीं. अतः फसल की कटाई एक साथ ही की जा सकती है.
भण्डारण
भण्डारण में रखने से पहले उर्द के दानों को अच्छी तरह साफ करके सुखा लेना चाहिए. इनमें 10 प्रतिशत से ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए. उर्द में भण्डारण हेतु स्टोरेज विन्स का प्रयोग उपयुक्त होगा. भण्डारण ग्रह एवं कोठियों आदि का भण्डारण से कम-से कम दो सप्ताह पूर्व खाली करके उनकी सफाई मरम्मत आदि व चूने से पुताई कर देनी चाहिए.
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लेखक-
डॉ मनोज कुमार राजपूत (कृषि वैज्ञानिक) कृषि विज्ञान केंद्र बलिया,
जगबीर सिंह (कृषि वैज्ञानिक) कृषि विज्ञान केंद्र बलरामपुर
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या
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