गेहूं में लगने वाले प्रमुख कीट हैं, दीमक और माहू. गेहूं के प्रमुख रोग है भूरा हरदा, पीला हरदा, झुलसा रोग, कलिका रोग और अकडी रोग
दीमक
दीमक मिट्टी में रहने वाले भूरे रंग के छोटे आकार के कीट हैं. यह गेहूं के छोटे-छोटे जड़ों को काटकर नुकसान पहुँचाता है, जिसके कारण पौधे मर जाते हैं आक्रान्त पौधों को उखाड़ने पर तने में मिट्टी लगी पायी जाती है.
प्रबंधन
खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें. खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें. सड़ी गोबर के खाद का ही व्यवहार करें. क्लोरपाइरीफास 20 ई.सी. का 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. क्लोरपाइरीफास 1.5 प्रतिषत धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में व्यवहार करें.
माहू(लाही)
यह कीट काले, हरे, भूरे रंग के पंखयुक्त एवं पंखविहीन होते हैं. इसके शिशू एवं वयस्क पत्तियाँ, फूलों तथा बाली से रस चूसते हैं, जिसके कारण फसल को काफी क्षति होती है. कीट मधुश्राव भी करती है जिससे पत्तियों पर काली फफूंद जमा हो जाती है. फलतः प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है. वह कीट समूह में पाये जाते हैं.
प्रबंधन
फसल की बुआई समय पर करें. लेडी बर्ड विटिल की संख्या पर्याप्त होने पर कीटनाशी का व्यवहार नहीं करें. खेत में पीले रंग के टिन के चदरे पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लकड़ी के सहारे खेत में गाड़ दें. उड़ते लाही इसमें चिपक जायेंगे. आक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या फेनभेलरेट 20 ई.सी. का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.
भूरा हरदा
भूरे रंग के बिखरे हुए धब्बे पत्तियों और तनों पर पाये जाते हैं.
प्रबंधन
फसल चक्र अपनाएं. रोग-रोधी किस्म को लगायें. खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें. कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार कर बुवाई करें. मैन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें. टेबुकोनाजोल 25.9 ई.सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.
पीला हरदा
सर्वप्रथम पत्तियों पर रेखीय सजावट में पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं, जिसे छूने पर हाथ में लग जाते हैं.
प्रबंधन
फसल चक्र अपनाएं. रोग-रोधी किस्म को लगाये. खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें. कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार कर बोआई करें. मैन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें. टेबुकोनाजोल 25.9 ई.सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.
झुलसा रोग
इस रोग में पत्तियों पर पीले-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिसका आकार निश्चित नहीं होता है. बाद में धब्बे आपस में मिलकर पत्तियों को झुलसा देते हैं.
प्रबंधन
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें. संतुलित उर्वरक का व्यवहार करें. प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करें. कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिषत घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें. मैन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
कलिका रोग
इस रोग में बालियों में दाने के स्थान पर फफूंद का काला धूल भर जाता है. फफूंद के बीजाणु हवा में झड़ने से स्वस्थ बाली भी आक्रांत हो जाती है. यह अन्तरबीज जनित रोग है.
प्रबंधन
रोगमुक्त बीज की बुआई करें. कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण या टेबुकोनाजोल 2 डी.एस. 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार कर बोआई करें. दाने सहित आक्रान्त बाली को सावधानी पूर्वक प्लास्टिक के थैले से ढक कर काटने के बाद नष्ट कर दें. रोगग्रसित खेत की उपज को बीज के रूप् में उपयोग न करें.
अकड़ी रोग
यह रोग सूत्रकृमि के द्वारा होता है. शुरू में पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी या चिमड़ी हो जाती है. बाली निकलने के जगह मॉल का निर्माण होता है, जिसमें गेहूं दाने के बदले काले इलाइची के दाने के समान बीज बनते हैं.
प्रबंधन
रोग मुक्त एवं स्वस्थ बीज की बुआई करें. फसल चक्र अपनाएं. नीम की खल्ली 2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम जुताई के समय व्यवहार करें. 10 प्रतिशत साधारण नमक का घोल बनाकर बीज को डुबाएं और तैरने वाले बीज को छान लें. पानी में डुबे बीज को अच्छी तरह धोकर बुआई करें.
वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने पर असिंचित अवस्था में 25 से 30 क्विंटल, सिंचित अवस्था तथा समय पर बुवाई करने पर 40 से 50 क्विंटल एवं सिंचित अवस्था विलंब से बुवाई करने पर 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है.
लेखक: डा. प्रवीण दादासाहेब माने एवं डा. पंचम कुमार सिंह
वरिष्ठ वैज्ञानिक,कीट विज्ञान विभाग
नालन्दा उद्यान महाविधालय, नूरसराय
ईमेल: [email protected]
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