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Soil Preparation: मानसून से पहले खेत में करें ये जरूरी काम, कम लागत में मिलेगा शानदार उत्पादन

Summer plowing: ग्रीष्मकालीन जुताई किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है. यह न केवल फसल की उत्पादकता बढ़ाती है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल कृषि को भी बढ़ावा देती है. यदि किसान कृषि विभाग की सलाह के अनुसार इस प्रक्रिया को अपनाएं, तो आने वाले समय में वे बेहतर उत्पादन के साथ-साथ अधिक मुनाफा भी कमा सकते हैं.

मोहित नागर
Monsoon preparation
मानसून से पहले खेतों में करें ये जरूरी काम (Pic Credit - Picxy)

Monsoon preparation For Farming: उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए कृषि विभाग ने मानसून से पहले खेतों की जुताई को लेकर नई एडवाइजरी जारी की है. विभाग का कहना है कि ग्रीष्मकालीन जुताई (Summer Plowing) न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाती है, बल्कि इससे फसल की उत्पादकता में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है. कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान इस प्रक्रिया को समय पर अपनाएं, तो खरीफ फसलों में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.

क्यों जरूरी है ग्रीष्मकालीन जुताई?

ग्रीष्मकालीन जुताई मई-जून के दौरान की जाती है, जब खेतों में नमी की मात्रा कम होती है और गर्मी अपने चरम पर होती है. यह समय खेत की ऊपरी कठोर परत को तोड़ने और मिट्टी को मुलायम व उपजाऊ बनाने का होता है. कृषि विभाग का कहना है कि इस समय की गई जुताई से मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे आगामी खरीफ फसल जैसे धान, मक्का, बाजरा, अरहर आदि को भरपूर लाभ मिलता है.

ग्रीष्मकालीन जुताई के महत्वपूर्ण लाभ

  1. मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: खेत की कठोर परत टूटने से मिट्टी में ऑक्सीजन का संचार बेहतर होता है और जड़ें गहराई तक फैलती हैं. इससे पौधों की वृद्धि में मदद मिलती है.
  2. जल संरक्षण में सहायक: यह प्रक्रिया मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ाती है, जिससे फसल के लिए आवश्यक नमी लंबे समय तक बनी रहती है.
  3. खरपतवार नियंत्रण: जुताई के दौरान खेत में मौजूद खरपतवार और फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है.
  4. कीट एवं रोग नियंत्रण: गर्मी में गहराई तक की गई जुताई से मिट्टी में छिपे कीटों जैसे दीमक, सफेद गिडार, कटुआ बीटल आदि के अंडे, लार्वा और प्यूपा नष्ट हो जाते हैं.
  5. उर्वरक की आवश्यकता में कमी: मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ने से रासायनिक खादों की आवश्यकता कम हो जाती है और प्राकृतिक उर्वरता बनी रहती है.

पारंपरिक कृषि पद्धतियों की वापसी का समय

कृषि विभाग किसानों को यह सलाह दे रहा है कि वे आधुनिक तरीकों के साथ पारंपरिक कृषि पद्धतियों को भी अपनाएं. कतार में बुआई, फसल चक्र (Crop Rotation), सहफसली खेती (Intercropping) जैसी विधियां खेत की उत्पादकता बढ़ाने में बेहद प्रभावी हैं. साथ ही, इससे पर्यावरण प्रदूषण पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है.

खरीफ फसलों की तैयारी में सहयोगी

ग्रीष्मकालीन जुताई न केवल मिट्टी को तैयार करती है, बल्कि यह खरीफ फसलों की बोआई से पहले भूमि को संतुलित और स्वस्थ बनाती है. इससे बीज का अंकुरण बेहतर होता है और पौधों को शुरुआती अवस्था में आवश्यक पोषण मिल पाता है. खासकर धान जैसी फसलों में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है.

कम लागत में अधिक उत्पादन

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीष्मकालीन जुताई एक ऐसी तकनीक है जिसे अपनाकर किसान कम लागत में अधिक और गुणवत्तायुक्त उत्पादन पा सकते हैं. इस प्रक्रिया में किसी अतिरिक्त संसाधन की आवश्यकता नहीं होती, बस समय पर खेत की गहरी जुताई करनी होती है.

किसानों को विभाग की सलाह

  • खेतों की गहराई से जुताई करें (8-10 इंच तक).
  • जुताई के तुरंत बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ें ताकि सूरज की गर्मी से हानिकारक जीवाणु नष्ट हो सकें.
  • फसल अवशेषों को खेत में ही मिलाकर छोड़ें, जिससे जैविक खाद बन सके.
  • खरीफ फसलों की तैयारी के लिए मिट्टी परीक्षण कराएं और उपयुक्त बीज का चयन करें.
English Summary: uttar pradesh farmers new advisory summer plowing before monsoon Published on: 12 May 2025, 11:04 AM IST

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