अरहर की खेती में सबसे बड़ी पेरशानी उसे जंगली जानवरों से बचाने में होती है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी वैज्ञानिक तकनीक बताएंगे, जिससे बिना किसी खर्चे के आप अरहर की रक्षा जंगली जानवरों से कर पाएंगें. विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक से न सिर्फ आप फसलों की सुरक्षा, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी कायम रख सकते हैं.
मेड़ तकनीक है सहायक
विशेषज्ञों के मुताबिक यदि खेत में मेड़ों पर अरहर उगाया जाए, तो इससे फसलों को नीलगाय एवं अन्य तरह के जंगली जानवरों से बचाया जा सकता है. इतना ही नहीं इस विधि द्वारा अरहर की बुवाई अगर की जाए तो दलहन के मूल्य पर काबू पाया जा सकता है.
मेड़ों पर अरहर उगाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और जमीन की नीची परत को तोड़कर वर्षा का जल संरक्षित होता है, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरती है.
प्राप्त होगी निर्धारित संख्या
मेड़ पर अरहर की बुवाई करने से अच्छे उत्पादन के प्राप्त होने की संभावना है, इससे पौधों की निर्धारित संख्या प्राप्त होती है. इसके अलावा वर्षा अधिक होने पर नालियों द्वारा पानी बाहर निकाला जा सकता है और वर्षा के कम होने पर बारिश के पानी को ही नालियों में संरक्षित किया जा सकता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो पानी की समस्या बहुत हद तक कम हो जाती है.
अरहर की बुवाई-
मेड़ों पर अरहर की बुवाई करना भी आसान है. आपको एक मेड़ से दूसरी मेड़ के बीच 60 सेमी का फासला रखना है और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी तक रखनी है. अगर सभी पौधों को एक तरह का पोषण मिलता है तो संभावित रूप से उपज में 42 से 53 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की जा सकती है.
खरपतवार और नियंत्रण
अरहर की खेती में खरपतवार का होना सामान्य समस्या है. इसके नियंत्रण के लिए लिए इमेजाथापर ( 10 एस.एल) 1 लिटर को 500 लिटर पानी के साथ ( 2 मिली. द्वा/ लि. पानी) मिलाकर बुवाई के 25-30 दिन पर स्प्रे किया जा सकता है. आप चाहें तो जैविक खरपतवारों को कीटनाशकों का प्रयोग भी कर सकते हैं.
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