सरसों की खेती भारत में आदिकाल से अलग-अलग तरीकों से होती रही है. हमारी संस्कृति और सभ्यता में सरसों का खास स्थान भी है. आज़ बदलते हुए वक्त के साथ सरसों देश के हर राज्य में उगाया जाने लगा है. हालांकि अभी भी हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के लिए सरसों एक प्रमुख फसल है.
कृषि विशेषज्ञों की माने तो वैज्ञानिक तकनीक से सरसों की खेती अधिकतम उपज के साथ बंपर मुनाफा दे सकती है. इस लेख के माध्यम से चलिए आपको बताते हैं कि कैसे आप कम लागत में सरसों की उन्नत खेती कर सकते हैं.
सरसों की खेती के लिए मौसम (Mustard cultivation season)
सरसों की खेती करने के लिए 18 से 25 सेल्सियस तक का तापमान चाहिए होता है. इसलिए भारत में इसकी खेती के लिए शीत ऋतु का मौसम उपयुक्त है.
सरसों की खेती के लिए भूमि (land for mustard cultivation)
सरसों की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त है. हालांकि मटियारी या रेतीली मृदा में भी इसकी खेती की जा सकती है.
सरसों की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for mustard cultivation)
सबसे पहले खेतों की अच्छे से जुताई करें. इसके बाद दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें. इस कार्य के बाद खेत को समतल करने के लिए सुहागा लगाएं. इसकी खेती के लिए मिटटी का भुरभुरा रहना फायदेमंद है. भुरभुरी माटी सरसों के लिए उपयुक्त है.
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सरसों की उन्नत किस्में (Improved varieties of mustard)
सरसों की कई किस्में प्रचलित हैं, जैसे सिंचित क्षेत्रों के लिए- लक्ष्मी, नरेन्द्र अगेती राई- 4, वरूणा किस्म. वहीं असिंचित क्षेत्र के लिए- वैभव, वरूणा (टी– 59) और पूसा बोल्ड.
सरसों की कटाई एवं गहाई (Mustard harvesting and threshing)
सरसों के पीले पड़ने एवं फलियों के भूरे होने पर कटाई करें. ध्यान रहे कि सरसों को अधिक पकाना सही नहीं है. फसल के अधिक पकने से फलियों के चटकने की संभावना बढ़ जाती है. सरसों के दानों को अलग करने के लिए फसल को सूखाकर थ्रेसर या डंडों से पीटें. इस क्रिया से सरसों के दानें बाहर आ जाएंगें.
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