आजकल छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले समेत पूरे जंगल में फूलों से लदे बांस को सहज रूप से देखा जा सकता है. ग्रामीणों में फूल और बीज को लेकर काफी ज्यादा उत्सुकता का माहौल है. जंगल में ग्रामीण बांस के फूल के गिरने से बीज को एकत्र करने का कार्य कर रहे है. इसके बीज को पीसकर रोटी बनाई जाती है. इस का खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग करते है. इन बांस के पौधों में लगभग 40 से 45 साल बाद ही फूल आते है. फिलहाल ग्रामीण बीज मिलने की उत्सुकता के बीच में अकाल पड़ने की समस्या से चिंता में पड़ गए है.
40 साल बाद होता परिवर्तन
यहां पर बताया गया है कि एक ही प्रजाति के जितने भी बांस होते है उनमें प्राकृतिक रूप से एक साथ फूल आते है. यह परिवर्तन 40 से 50 साल बाद होता है. बाद में फूल आने के बाद बांस सूख जाता है. इधर सूखे बांस के फूल से बीज झर जाते है. जो भी जंगल के लोग होते है वह इस फूल को एकत्रित कर लेते है और समयानुसार खाद्य के रूप में उपयोग करते है. बस्तर जिले के किसानों का कहना है कि आमततौर पर बांस के फूल आना अच्छा नहीं माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिस साल बांस के फूल आते है उस साल यहां पर सबसे ज्यादा सूखा पड़ जाता है.
बांस के साथ होता फूल का जीवन समाप्त
वन परिक्षेत्राधिकारी का कहना है कि हर पेड़-पौधे में फल-फूल आने का समय निर्धारित होता है. बांस में 40-50 साल बाद ही फूल आते है. और उसके बाद बांस का जीवन चक्र समाप्त हो जाता है. बांस में 40-50 साल बाद फूल आते हैं और इसके साथ ही उक्त बांस का जीवन चक्र समाप्त हो जाता है, इसलिए इसे किसी भ्रांति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. ग्राम गुमलवाड़ा, कोलावाड़ा, कालागुड़ा के ग्रामीण बताते हैं कि बांस के दाने झरने से उसे खाने के लिए जंगली चूहों की संख्या बढ़ गई है.
फूल के लिए नहीं है कोई निश्चित समय
बांस के फूल आने का कोई निश्चित समय नहीं होता है. देश में कई प्रजाति के बांस पाए जाते हैं. लेकिन एक ही प्रजाति के बांस में एक ही समय फूल आते हैं. वहीं पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिकों के शोध में जो तथ्य सामने आए हैं, उसमें बांस की विभिन्न् प्रजातियों मे विभिन्न् अंतराल पर फूल आते हैं. यह अंतराल 40 से 45 वर्ष तक या इससे भी अधिक का हो सकता है.
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