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Sarso Ki Kheti: सरसों की नई उन्नत किस्मों से बुंदेलखंडी किसानों को मिलेगी डेढ़ गुना ज्यादा पैदावार, पढ़िए पूरा लेख

भारत में मूंगफली के बाद सरसों दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो मुख्यतया राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम और गुजरात में उगाई जाती है. मौजूदा समय में सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) किसानों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा रही है.

कंचन मौर्य
Sarso Ki Kheti
Sarso Ki Kheti

भारत में मूंगफली के बाद सरसों दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो मुख्यतया राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम और गुजरात में उगाई जाती है. मौजूदा समय में सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) किसानों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा रही है.

इसकी उन्नत खेती के लिए कई नई किस्में भी विकसित की जा रही हैं. इसी कड़ी में राजस्थान में सरसों की उन्नत किस्म गिरिराज (Mustard Giriraj Variety) को विकसित किया गया था, जो अब बुंदेलखंड में भी सरसों की खेती को नई दिशा देने का काम कर रही है.

दरअसल, पहले भी भरतपुर के राई एवं सरसों अनुसंधान निदेशालय द्वारा रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय को गिरिराज समेत चार उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध कराए गए. इसके बाद किसानों को दिए गए, जिससे स्थानीय बीजों के मुकाबले डेढ़ गुना तक फसल की पैदावार प्राप्त हुई है. इस बार भी विश्वविद्यालय ने दोगुने किसानों को इन उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध कराए हैं, ताकि बुंदेलखंड सरसों का हब बन सके.

राजस्थान उपलब्ध कराता है 50% सरसों का तेल(Rajasthan provides 50% mustard oil)

 

देश में 50 प्रतिशत सरसों का तेल राजस्थान की तरफ से उपलब्ध कराया जाता है. बता दें कि बुंदेलखंड की परिस्थिति पानी की कमी और अनियमित बारिश के कारण राजस्थान के समान ही है. ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा साल 2019 में लगभग 50 किसानों के लिए सरसों की उन्नत किस्म उपवब्ध कराई गई थी. इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.

पिछले साल मिली सरसों की अच्छी पैदावार (Good yield of Mustard got last year)

पिछले साल सरसों की बुवाई के बाद किसानों को लगभग 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक यानी 35 से 40 प्रतिशत ज्यादा सरसों की पैदावर प्राप्त हुई. बता दें कि विश्वविद्यालय ने किसानों को डेढ़ किलो बीज प्रति एकड़ और 40 किलो खाद प्रति एकड़ की दर से बांटी. इसके बाद 22 क्विंटल से ज्यादा उपज प्रति हेक्टेयर हुई. यानी सरसों के स्थानीय बीजों के मुकाबले डेढ़ गुनी उपज सामने आई है. इतना ही नहीं, सरसों की फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक सारे कृषि कार्य विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की देखरेख में हुए.

सरसों की इस किस्म की खेती से कम लागत और ज्यादा मुनाफा (Less cost and more profit from cultivation of this variety of mustard)

आपको बता दें कि बुंदेलखंड में गेहूं की बुवाई ज्यादा की जाती है, जबकि, गेहूं की फसल को 4 बार से ज्यादा पानी देना पड़ता है. मगर सरसों की फसल को 30 दिन में सिर्फ एक बार पानी की जरूरत होती है. इसकी फसल 1 या 2 बार पानी देने पर लहलहा उठती है. कृषि विश्वविद्यालय का कहना है कि अगर किसान गेहूं की बजाए सरसों की बुवाई करते हैं, तो कम लागत और मेहनत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

नई किस्म में फली और दाने अधिक

अभी तक बुंदेलखंड के किसान सरसों की सालों पुरानी स्थानीय किस्मों की बुवाई करते हैं. यह किस्म शुद्ध नहीं होती हैं. इस कारण कीट भी फसल में लग जाते हैं. मगर सरसों की नई किस्म शुद्ध है, जिससे फसल में फली ज्यादा आती है, साथ ही इसके दाने भी भारी होते हैं. खास बात यह है कि इस किस्म से फसल में रोग भी नहीं लगता है और तेल भी ज्यादा निकलता है.

English Summary: The farmers of Bundelkhand will get more yield from the new improved varieties of mustard Published on: 20 January 2021, 01:56 PM IST

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