Sarso Ki Kheti: किसान लगातार एक ही खेत में न करें सरसों की बुवाई, इन बातों से भी करें परहेज

रबी की तिलहनी फसली में सरसों का एक प्रमुख स्थान है. इसकी खेती सीमित सिंचाई की दशा में भी अधिक लाभदायक मानी जाती है. अगर सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) उन्नत किस्म और विधि द्वारा की जाए, तो किसान फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. इस फसल के लिए लगभग 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए. इसके लिए दोमट भूमि सर्वोतम होती है, जिसमें की जल निकास उचित का उचित प्रबन्ध होना चाहिए. इसके साथ ही किसानों को सरसों की बुवाई संबंधित कुछ विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.
ये है सरसों की बुवाई का सही समय
अगर सरसों की बुवाई के उपयुक्त समय की बात की जाए, तो किसानों को अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक बुवाई का काम कर लेना चाहिए. इसके उपरांत बुवाई करते हैं तो उन्हें ऐसा बीज बोना चाहिए, जिससे जल्दी फसल तैयार हो जाए.
सरसों का रोगों से करें बचाव
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है. इसमें तना गलन प्रमुख रोग है. इस रोग को पोलियो या लकवा भी कहा जाता है. इस रोग की शुरुआत पतों से होती है और पत्तियां मुरझाकर नीचे गिर जाती हैं. इसके बाद धीरे-धीरे तनो और टहनियो पर भी फैल जाता है.
ऐसे करें बचाव
अगर किसानों को सरसों की फसल को इस रोग से बचाना है, तो इसके लिए लगातार खेत में सरसों की फसल बोने से परहेज करें. इससे रोग की उग्रता बढ़ती है. फसल बुवाई से पहले 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से सूखा बीज से बुवाई करें. इसके अलावा जिन क्षेत्रों में तना गलन का प्रकोप होता है, वहां के किसान बुवाई के 45 से 50 दिन और 65 से 70 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम दवा का 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी की दर से दो छिड़क दें.
English Summary: Mustard sowing information for farmers
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