ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) विदेशी फल है लेकिन अब इसकी खेती भारत में भी की जाने लगी है. ड्रैगनफ्रूट का इस्तेमाल आइसक्रीम, जेली, जूस, वाइन आदि बनाने में होता है. इसके फल में किवी की तरह बीज पाए जाते हैं. यह कई विटामिन्स से भरा होता है.
बाजार में यह फल 200 से 250 रुपए प्रति किलो तक बिकता है. भारत के कई किसान ड्रैगनफ्रूट की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. आईए जानते हैं ड्रैगनफ्रूट की खेती कैस करें.
ड्रैगन फ्रूट सफेद, लाल गुलाबी और पीले रंग में पाया जाता है. भारत में सबसे ज्यादा सफेद ड्रैगन फ्रूट उगाया जाता है, क्योंकि इसका पौधा आसानी से मिल जाता है. हालांकि इसका भाव अन्य किस्मों से कम होता है. लाल गुलाबी किस्म का ड्रैगन फ्रूट भारत में कम देखने को मिलता है, इसका फल बाहर और अंदर दोनों जगह गुलाबी होता है. इसका बाज़ार भाव सफ़ेद वाले ड्रैगन फ्रूट से ज्यादा होता है. पीला रंग का ड्रैगनफ्रूट बहुत महंगा होता है, ये भारत में बहुत कम ही मिलता है. इसका रंग बाहर से पीला, अंदर से सफेद होता है. आप सफेद ड्रैगनफ्रूट की खेती से शुरुआत कर सकते हैं. भारत में ड्रैगनफ्रूट की की खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में होती है. इसके अलावा कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी किसान इसकी खेती करते हैं.
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए जलवायु
ड्रैगनफ्रूट की खेती करने से पहले अपने स्थान की जलवायु का परीक्षण कर लें. इसकी खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है. इसका पौधा नागफनी की तरह होता है. इसकी खेती ज्यादा शुष्क वातावरण वाली जगहों पर की जाती है. इसके पौधे अच्छे तापमान में बढ़ते हैं लेकिन सीधी धूप पौधों के लिए अच्छी नहीं होती. ऐसे में शेड का इस्तेमाल किया जाता है. पौधे का विकास करने के लिए 25 डिग्री के आसपास तापमान उपयुक्त होता है, पौधों में फल बनने के दौरान 30 से 35 डिग्री तापमान अच्छा होता है.
ड्रैगन फ्रूट फसल की बुवाई का समय
ड्रैगन फ्रूट का पौधा जून-जुलाई के मध्य लगाया जाता है. क्योंकि इस दौरान बारिश का मौसम होता है, पौधा अच्छे से विकास करता है. लेकिन जहां पानी की व्यवस्था हो वहां फरवरी-मार्च में भी पौधे लगाए जा सकते हैं.
ड्रैगनफ्रूट के लिए अच्छी है ऐसी मिट्टी
इसकी खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरुरत नहीं होती. हालांकि भूमि अच्छी जलनिकासी वाली और उर्वरक क्षमता वाली होना चाहिए. भूमि का पीएच मान 7 के आसपास उपयुक्त होता है.
ड्रैगनफ्रूट खेती की तकनीक
ड्रैगनफ्रूट की खेती समतल जमीन में गड्ढे बनाकर की जाती है. पौधों की बुवाई से पहले खेत की 3 से 4 बार जुताई करें. खेत के अवशेषों को हटा दें. फिर चार फिट व्यास वाला और डेढ़ फिट गहरे गड्ढे बनाएं. पक्तियों के बीच में 4 मीटर की दूरी रखें. इसके बाद गड्ढों में गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरक मिट्टी में मिलाएं. गड्ढों की सिंचाई करें. इसके बाद गड्ढों के बीच सपोर्टिंग सिस्टम लगाकर चारों तरफ पौधे लगाए जाते हैं. एक हेक्टेयर में लगभग 1200 पिल्लर लगते हैं, जिसके चारों तरफ पौध उगाई जाती है. जब पौधा विकास करता है, तब उसे इन पिल्लर के सहारे बाँध दिया जाता है और आखिरी में पौधे की सभी शाखाओं को ऊपर वाले गोल घेरे के अंदर से निकालकर बाहर चारों तरफ लटका दिया जाता है. ड्रैगन फ्रूट की खेती बीज और पौध दोनों तरह से की जा सकती है. लेकिन बीज से पौधे बनाने में काफी समय लगता है और फल का उत्पादन 7 से 8 साल बाद होता है. लेकिन पौध से लगे पेड़ दो साल बाद ही पैदावार देने लगते हैं. ड्रैगनफ्रूट की पौध बड़ी मुश्किल से भारत में मिलती है ऐसे में किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से ही पौध खरीदें. एक हेक्टेयर में इसके लगभग 4450 पौधे लगाए जाते हैं. जिनका कुल खर्च दो लाख के आसपास आता है.
कब होता है ड्रैगनफ्रूट का उत्पादन
ड्रैगन फ्रूट का पौधा तीन से चार साल में पूरी तरह से तैयार हो जाता है. कुछ पौधे लगाने के एक साल बाद ही फल देने लगते हैं. यह एक सीजन में कम से कम तीन बार फल देता है. इसके एक फल का वजन 400 से 500 ग्राम तक होता है. इसकी ठीक तरह से फ्लाटिंग की जाए तो ये 25 साल तक फल देता है. इसके फल जब हरे रंग से बदलकर लाल गुलाबी दिखाई देने लगे तब इन्हें तोड़ लेना चाहिए.
ड्रैगनफ्रूट फसल की सिंचाई
ड्रैगनफ्रूट के पौधों को ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती. बारिश के समय पौधों में बिल्कुल पानी की आवश्यकता नहीं होती. सर्दियों के मौसम में महीने में दो बार पानी देना उपयुक्त होता है, जबकि गर्मियों में सप्ताह में एक बार पानी देना उचित होता है. पौधों पर फूल बनने के समय पानी देना बंद कर देना चाहिए, लेकिन फूल से फल बनने के दौरान नमी बनाए रखना चाहिए. सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति का इस्तेमाल अच्छा होता है.
ड्रैगनफ्रूट फसल का रखरखाव
इसके पौधों के बीच में कटाई करनी चाहिए, अगर कटाई न हो तो पौधा बहुत बड़े आकार का हो जाता है. खरपतवार से बचाने के लिए निराई-गुड़ाई करें. खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनों का उपयोग न करें. पौधों में किसी खास तरह का रोग नहीं लगता लेकिन मीठे रस के कारण चीटिंयों का अटैक हो जाता है. इससे बचाव के लिए नीम के तेल का छिड़काव करें.
ड्रैगनफ्रूट फसल के लिए खाद व उर्वरक
इसकी खेती के लिए अच्छी खाद की आवश्यकता होती है. खेती के लिए गोबर की खाद, एन.पी.के डालें. हर साल खाद डालें. पौधा विकसित होने के बाद जैविक खाद की मात्रा बढ़ा दें. पौधे से फलों की तुड़ाई होने पर एन.पी.के. की 200 ग्राम मात्रा प्रत्येक पौधे को साल में तीन बार देनी चाहिए. पहली मात्रा फूल बनने के दौरान, दूसरी और तीसरी मात्रा फलों के पकने और तुड़ाई के बाद देना सही होता है.
ड्रैगनफ्रूट फसल की लागत और मुनाफा
ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत में लागत ज्यादा आती है. पौध, पिल्लर खरीदने में पैसे खर्च होते हैं. पौधों के बढ़ने के साथ हर साल मेटेंनेंस पर खर्च करना होता है. लेकिन मेहनत का फल भी बराबर मिलता है. पहले-दूसरे साल में प्रति हेक्टेयर 400 से 500 किलो तक उत्पादन होता है लेकिन चार से पांच साल बाद प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन का उत्पादन हो जाता है. कुल मिलाकर एक हेक्टेयर से सलाना 25 से 30 लाख तक की कमाई कर सकते हैं. पौधा पूर्ण रुप से विकसित होने और अच्छा उत्पादन देने में 3 से 4 साल का समय लेता है. इस बीच आप मटर, बैंगन, गोभी, लहसुन, अदरक, हल्दी जैसे मसाला और सब्जी फसलों को उगा कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
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