कर्नाटक के मैसूर में रहने वाले एक किसान थमैया ने जैविक खेती में मिसाल कयाम की है. शुरुआत में किसान को सिंचाई और पैदावार में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. इनमें सबसे बड़ी समस्या खेतों में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता थी. इसके बाद किसान ने अपरंपरागत तरीके से खेती करने का मन बनाया. किसान ने लगभग 1 एकड़ खेत में 5 स्तरीय की खेती करने का मन बना लिया. यह एक ऐसा मॉडल था, जो कि किसान के लिए आत्मनिर्भर मॉडल साबित हो गया. किसान को इस मॉडल से काफी मुनाफ़ा मिला है.
सालभर में लाखों रुपए का मुनाफ़ा
किसान ने बहुस्तरीय खेती को अपनाकर 1 एकड़ खेत में लगभग 300 किस्म के पैड़-पौधे लगाए. इसमें नारियल, कटहल, बाजरा, पत्तेदार सब्जियां, आम, सुपारी, केले और काली मिर्च तक के पेड़ शामिल हैं. इस मॉडल पर खेती करने के बाद किसान को बहुत लाभ मिल रहा है. इसके साथ ही पानी की 50 प्रतिशत बचत और पैदावार 10 गुना बढ़ी है. इस तरह किसान को सालभर में लगभग 10 लाख रुपए तक का मुनाफा मिल रहा है.
किसान ने इस तरह की खेती
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किसान थमैया ने नारियल के पेड़ों से खेती करने शुरू किया.
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किसान ने दो नारियल के पेड़ों के बीच एक चीकू का पेड़ लगाया.
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इन पेड़ों के बीच एक केले का पेड़ लगाया.
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किसान ने नारियल के पेड़ों के नीचे सुपारी और काली मिर्च का पेड़ लगाया. इस तरह कई मसालों के पौधे लगाए.
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इसके बाद खेत के उत्तर और दक्षिण की तरफ आम, जामुन, कटहल, बेल आदि के पेड़ लगाए.
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इन पेड़ों के नीचे दूसरी परत में मूंग दाल, नींबू और सहजन का पेड़ लगाया.
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इसके साथ ही हरी सब्जियों की खेती और बाजरा की खेती भी की. आपको बता दें कि इस तरह खेती करने से मिट्टी ढक जाती है. इसके अलावा खरपतवार भी नहीं बढ़ती है.
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किसान ने खेती की भूमि के नीचे हल्दी, अदरक, गाजर, और आलू भी उगाया.
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कुछ और पेड़ भी लगाए, जिसमें 140 औषधीय पौधे हैं. इनमें आंवला, चेरी, कॉफ़ी, शीशम, शरीफा, चंदन और गन्ना शामिल है.
क्या होती है पांच-स्तरीय खेती?
इस मॉडल के तहत खेत को एक बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. इसमें किसान एक ही खेत में कई तरह के पेड़-पौधे उगाता सकता है. यह एक आत्मनिर्भर तकनीक है, क्योंकि इस तकनीक में एक फसल की कटाई के बाद दूसरी फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. खास बात है कि इस तकनीक में पानी की बचत के साथ-साथ लाखों रुपए का मुनाफ़ा मिल जाता है.
पांच-स्तरीय खेती का लाभ
इस तकनीक से खेती करने में कई फायदे हैं. इस खेती में पानी का इस्तेमाल बहुत कम होता है. इस तकनीक में पानी झाड़ियां, लताएं और सब्जियां समेत अन्य फसलों की जड़ों देर तक बना रहता है. इस मॉडल की खास बात है कि इससे सालभर पैदावार मिलती रहती है. इस तकनीक में ऐसी फसलों की खएती की जाती है, जिससे अलग-अलग समय में पैदावार मिलती रहती है.
आपको बता दें कि किसान इस तकनीक से सालभर पैदावार बेचकर मुनाफ़ा कमा सकते हैं. एक लाखों रुपए कमाने का बहुत अच्छ ज़रिया है. बता दें कि देश में कई किसान खेतीबाड़ी में बहुत संघर्ष कर रहें हैं, लेकिन मैसूर के किसान थमैया ने जैविक मॉडल को अपनाकर अपने जीवन को सफल बनाया है.
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