गेहूं की जीडब्ल्यू 322 किस्म में करनाल वंट रोग के लक्षण पाए गए थे, लेकिन फिर भी मध्य प्रदेश के हरदा जिले के लगभग 30 प्रतिशत किसान इसी किस्म की बुवाई करने की तैयारी में हैं.
इस किस्म की बुवाई से कम मेहनत में बेहतर उत्पादन मिलता है, इसलिए किसानों का इस किस्म से मोहभंग नहीं हो रहा है. वैसे गेहूं की अन्य किस्मों की तरफ भी किसानों का रुझान है, लेकिन गेहूं की जीडब्ल्यू 322 किस्म के प्रति ज्यादा दिलचस्पी दिखाई जा रही है. हालांकि कृषि विभाग चौपाल और प्रचार-प्रसार के अन्य साधनों के जरिए किसानों को इसकी बुवाई न करने की सलाह दी जा रही है.
आपको बता दें कि बीते साल जिले में लगभग 1 लाख 64 हजार हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई थी. इस साल चना का रकबा बढऩे की संभावना है, इसलिए गेहूं की बुवाई लगभग 1 लाख 43 हजार हेक्टेयर में होने का अनुमान लगाया जा रहा है. कृषि विभाग की मानें, तो जिले में मप्र बीज निगम और राष्ट्रीय बीज निगम के काउंटर्स के अलावा बीज उत्पादक समितियों और निजी क्षेत्र में 78425 क्विंटल बीज की उपलब्धता है.
इसमें से गेहूं बीज 56777 और चना बीज 500 क्विंटल है. इसके अलावा अन्य उपज का बीज है.कृषि विभाग का कहना है कि गेहूं की जीडब्ल्यू 322 में करनाल वंट रोग के लक्षण दिखने के बाद कई किसान तेजस, 1544, एचडी 2932, जेडब्ल्यू 1202, जेडब्ल्यू 1203 और 3382 की बुवाई करने में रुचि दिखा रहे हैं. मगर कई किसान ऐसे भी हैं, जो जीडब्ल्यू 322 की बुवाई करना चाहते हैं.
क्या है करनाल बंट रोग ? (What is Karnal Bunt disease?)
इस रोग में गेहूं का दाना काला पड़कर सिकुड़ जाता है. इसके आटे से सड़ी मछली की तरह बदबू आती है. इसके अलावा भूसा भी पशुओं के खाने योग्य नहीं रहता है. गेहूं की पूरी बाली में दाना नहीं बैठता है. इसमें अन्य किस्मों की तुलना में वजन कम रहता है और तेज हवा चलते ही इसकी फसल आड़ी हो जाती है.
हर साल कम होती है रोग प्रतिरोधक क्षमता (Disease resistance decreases every year)
गेहूं की जीडब्ल्यू 322 किस्म में करनाल वंट रोग मानव शरीर के लिए बीमारी का घर बताया गया है. इसके साथ ही मिट्टी के लिए भी हानिकारक है. यह किस्म लगभग 15 साल पहले प्रचलन में आई थी. जब इस किस्म में करनाल वंट मिला, तो किसानों को इसकी बुवाई न करने की सलाह दी गई.
कृषि विभाग का कहना है कि किसी भी किस्म का बीज तैयार करते समय मैकेनिज्म डवलप किया जाता है. इसका उपयोग शुरू होने पर साल-दर-साल इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है. इसका मतलब है कि यह आए दिन बदलते मौसम की मार सहने के लायक नहीं रहती है. ऐसे में कृषि विभाग द्वारा सानों को 10 साल में हर उपज की किस्म बदलने की सलाह दी जाती है.
हरियाणा में पाई गई थी बीमारी (The disease was found in Haryana)
हरियाणा के करनाल में सबसे पहले गेहूं की जीडब्ल्यू 322 किस्म में एक प्रकार का रोग दिखाई दिया. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस किस्म की सैंपलिंग कराई थी. बता दें कि सीड सर्टिफिकेशन लेबोरेट्री के अलावा कृषि विश्वविद्यालयों की प्रयोगशाला में राज्यभर के सैंपल का परीक्षण कराया गया था.
इनमें हरदा जिले से भी 50 नमूनों की सैंपलिंग के बाद करनाल वंट की पुष्टि हुई. इसके बाद से जीडब्ल्यू 322 किस्म का रकबा कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं. किसानों को जानकारी दी जा रही है कि इस बीज में बीमारी के लक्षण होने से मानव शरीर और मिट्टी, दोन के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है.
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