मिट्टी की उत्पादन क्षमता उसकी उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है.पौधे अपने विकास और बढ़वार के लिए आवश्यक पोषक तत्व मिट्टी से प्राप्त करते है.मिट्टी में इन तत्वों की मात्रा सही अनुपात में होने पर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है. यह इस प्रकार का प्रबंधन है जिसमें उर्वरा शक्ति में कमी आये बीना पौधों को संतुलित पोषण प्राप्त हो और उर्वरकों के संतुलित प्रयोग से मिट्टी, पौधों एवं पर्यावरण पर होने वाले दुस्प्रभाव भी कम हो.
सॉइल सेंपलिंग कैसे करें (How to do soil sampling)
मिट्टी का नमूना ऐसे स्थान से ले जो पूरे खेत का प्रतिनिधित्व करे, इसके लिए कम से कम 500 ग्राम नमूना लेना चाहिए.ध्यान रखेपेड़ के नीचे, मेड से, निचले स्थानों से, जहां खाद और उर्वरक का ढेर हो, जहां पानी इकट्ठा होता हो जैसे स्थानों से नमूना नहीं लें.जहां से सेंपलिंग की जानी है उस भाग की ऊपरी सतह से टहनियाँ, सुखी पत्तिया, डण्ठल एवं घास आदि को हटाकर खेत के आकार के हिसाब से 8-10 स्थानों का नमूना ले. अगली फसल जो खेत में बोई जानी है उसकी जड़ों को पहचान कर ही सेंपलिंग ले जैसे उथली जड़ वाली फसल में 10-15 सेमी तथा गहरी जड़ वाली फसल में 25-30 सेमी की गहराई तक अंग्रेजी के V आकार का गड्ढा बना कर नमूना प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे मिट्टी के 8-10 नमूने लेकर के चार भाग में बाँट लें और इन चार भागों के आमने सामने के एक एक भाग को बाहर कर दें तथा बचे हुए हिस्से का ढेर बना कर फिर से वही क्रिया दोहरायें जब तक 500 ग्राम मिट्टी का नमूना न बच जाए. इसके बाद मिट्टी के इस नमूने को एकत्रित कर पॉलीथीन में डाल कर लेबलिंग कर लें. लेबलिंग में किसान का नाम, खेत की अवस्थिति, मिट्टी का नमूना लेने की तारीख़ तथा पिछली, वर्तमान और आगे बोने वाली फसल का नाम लिख दें.
मिट्टी परीक्षण की आवश्यकता क्यों?(Why the need for soil testing?)
अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्म या अधिक घनी खेती से उनकी क्षमता के अनुरूप उपज प्राप्त करने के लिए अधिक खाद उर्वरकों की आवश्यकता होती है और फसल लेकर मिट्टी में उपलब्ध तत्वों की कमी हो जाती है.अतः मिट्टी के स्वास्थ्य तथा गुणों में सुधार करना आज के दौर की प्रमुख आवश्यकता है.देश में लगभग सभी मिट्टियों में जैविक कार्बन की मात्रा 1% से भी कम है.सॉइल टेस्टिंग से जैविक कार्बन जाँच कर मिट्टी के भौतिक गुण जैसे मृदा संरचना, जल ग्रहण शक्ति, सूक्ष्मजीवों की वृद्धि आदि सुधारा जा सकता है.
जब तक मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन और पोषक तत्वों के बारे में उचित जानकारी पता नहीं हो तब तक उचित प्रबंधन नहीं किया जा सकता है. परीक्षण से मिट्टी में उपस्थित तत्वों का पता लगाकर उसी के अनुसार खाद व उर्वरक की मात्रा सिफारिश की जाती हैऔर उर्वरक लागत को कम किया जा सकता है.
पौधों की बढ़वार के लिए प्रमुख रूप से 17 विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें से कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की पूर्ति पौधें वायुमण्डल और जल से करते है और शेष 14 पोषक तत्व मिट्टी से प्राप्त किये जाते है.इनमें से किसी भी तत्व की कमी या अधिकता होने पर फसल की वृद्धि और उत्पादकता पर असर पड़ता है.एक तत्व की कमी और अधिकता दूसरे तत्व के अवशोषण पर भी प्रभाव डालता है.इस तरह अम्लीय भूमि में सल्फर, बोरोन, मोलीब्लेडनम की उपलब्धता कम हो जाती है, जब की आयरन, मैगनीज, एल्युमिनियम की उपलब्धता इस प्रकार की मिट्टी में विषैले स्तर तक पहुँच जाती है. सॉइल टेस्टिंग से मिट्टी की सामान्य, अम्लीय या क्षारीय प्रकृति का पता लगाया जा सकता है.
इसलिए सॉइल टेस्टिंग से मिट्टी पीएच, विघुत चालकता, जैविक कार्बन के साथ साथ मुख्य पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों का पता लगाया जा सकता है, जो उपज बढ़ाने के लिए बेहद जरुरी है. मिट्टी की अम्लीयता या क्षारीयता या पीएच एवं विद्युत चालकता (EC) का पता लगाकर भूमि सुधारक रसायन चुना,जिप्सम जैसों की अनिवार्यता का सही मात्रा का निर्धारण भी कर सकते हैं.
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