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धान की अधिक पैदावार के लिए अपनाएं ये वैज्ञानिक विधि, यहां जानें पूरी डिटेल

धान की फसल से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए किसानों को वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए. ताकि वह कम समय में अधिक पैदावार से साथ-साथ अपनी कमाई को भी बढ़ा सके. ऐसे में आइए इस लेख में धान की वैज्ञानिक खेती/ Scientific Cultivation of Rice के बारे में विस्तार से जानते हैं...

लोकेश निरवाल
धान की फसल (Image Source: Pinterest)
धान की फसल (Image Source: Pinterest)

खरीफ फसलों में धान प्रदेश की प्रमुख फसल है भारत के कुल चावल उत्पादन का लगभग 36% इन तीनों राज्यों से होता है भारत में उत्पादित कुल चावल में पश्चिम बंगाल का योगदान 13.62% ,उत्तर प्रदेश का 12.81% और कुल चावल का 9.96% हिस्सा पंजाब का है भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है देश में चावल के उत्पादन के लिए जलवायु बहुत अनुकूल है यदि भारत में कुल चावल उत्पादन की बात करें, तो उस डिपार्मेंट ऑफ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021-22 में 12971 टन चावल का उत्पादन हुआ था वही साल 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक कुल चावल का उत्पादन 136000 तन रिकॉर्ड किया गया है. यही वजह है कि भारत में खाद्य फसलों में चावल सबसे प्रमुख फसल गिनी जाती है.

धान की अधिक पैदावार प्राप्त करने हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है

  1. स्थानीय स्थिति जैसे क्षेत्रीय जलवायु मिट्टी सिंचाई साधन जल पर भराव तथा बुवाई एवं रोपाई की अनुकूलता के अनुसार ही धान की सस्तुत प्रजातियों का चयन करें.

  2. शुद्ध प्रमाणित एवं शोधित बीज बोये.

  3. मृदा परीक्षण के के आधार पर संतुलित उर्वरकों हरी खाद एवं जैविक खाद का समय से एवं सस्तुत मात्रा में प्रयोग करें.

  4. उपलब्ध सिंचन क्षमता का पूरा प्रयोग करें समय से बुवाई / रोपाई करे.

  5. पौधों की संख्या प्रति इकाई क्षेत्र सुनिश्चित की जाए.

  6. कीट रोग एवं खरपतवार नियंत्रण किया जाए.

  7. कम उर्वरक दे पानी की स्थिति में भी उर्वरकों का अनुपात 2:1:1 ही रखा जाए.

भूमि की तैयारी :-  गर्मी की जुताई करने के बाद 2 3 ई करके खेत की तैयारी करनी चाहिए साथ ही खेत की मजबूत मेड बंदी कर देनी चाहिए ताकि खेत में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके  हरी खाद के रूप में सनेई ली जा रही है तो इसकी बुवाई के साथ ही फास्फोरस का भी प्रयोग कर लिया जाए धान की बुवाई /रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व खेत की सिंचाई कर दें जिससे की खरपतवार उग जाए उसके पश्चात बुवाई/ रोपाई के समय खेत में पानी भरकर जुताई कर दें.

प्रजातियों का चयन:- प्रदेश में धान की खेती असिंचित एवं सिंचित दिशाओं में सीधी बुवाई एवं रोपाई द्वारा की जाती है प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में परिस्थिति के अनुसार दान की निम्न प्रजातियां हैं.

(अ)  शीघ्र पढ़ने वाली किस्म:- नरेंद्र-118 ,नरेंद्र-80, नरेंद्र-1 ,मनोहर, नरेंद्र-97 ,पंतधान-12 बारानी दीप IR-50 रन  शुष्क सम्राट नरेंद्र ललावती l

(ब) मध्य देर से पकने वाली किस्म :- नरेंद्र 359 पैंथन कर पथ दान 10 सीता सूरज भवन मालवीय दान 36 नरेंद्र धान 2064 नरेंद्र धन 3112 नरेंद्र धाम 2061

(स) देर से पकने वाली किस्म :- मसूरी सभा

(द) सुगंधित धान किस्म:- टाइप-3 नरेंद्र ,ललावती ,कस्तूरी ,पूसा ,बासमती-1 ,हरियाणा बासमती-1 , बासमती 370 ताराबड़ी, बासमती, मालवीय सुगंध, मालवीय, सुगंध 43 बल्लभ बासमती 22 ,नरेंद्र लालमति.

(य) ऊसरीली धान प्रजाति:- ऊसर धान - 1 CSR-10 नरेन्द्र ऊसर धान – 1 एवं ऊसर धान – 3, CSR-13 नरेन्द्र धान – 2009

(र) निचले एवं जल भराव वाले क्षेत्र एवं बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के लिए:-

स्वर्णा M.T.U.-7029 (उथला जलभराव) NDR-8002, जल लहरी, जलमग्न मधुकर जलनिधि, जल प्रिया, बाढ़ अवरोधी, स्वर्णा सब-1, नरेन्द्र नारायणी, नरेन्द्र जलपुष्प, नरेन्द्र मयंक

उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं विधि :-

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना उपयुक्त है. यदि किसी कारणवश मृदा का परीक्षण ना हुआ तो उर्वरकों का प्रयोग निम्न प्रकार किया जाए.

स्थिति: सिंचित दशा मे रोपाई

अधिक उपज देने वाली प्रजाति

(क)  शीघ्र पकने वाली          N        P          K

                                  120      60         60

प्रयोग विधि:- फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नाइट्रोजन कि एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें.

(ख) मध्यम देर से पकने वाली     N          P          K

                                      120      60        60

प्रयोग विधि:- फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा पूरी तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा वाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें.

(ग)  सुगन्धित धान (बौनी)      N           P            K

                                   120        60          60

प्रयोग विधि:- फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद तथा एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा बाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें.

जल प्रबंध:- प्रदेश मे सिंचाई क्षमता के उपलब्ध होते हुए भी धान का लगभग 60-62% क्षेत्र ही सिंचित है, जबकि धान की फसल/Paddy Crop को खाद्यान्न फसलों मे सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है. फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं मे रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने वाली निकलने, फूल खिलने तथा दाना भरते समय खेत मे पानी बना रहना चाहिए. फूल खिलने कि अवस्था  पानी के लिए अति संवेदनशील है. परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है इसके लिए खेत कि सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5-7 cm सिंचाई करना उपयुक्त होता है. यदि बारिश के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई दे तो सिंचाई अवश्य करें. खेत मे पानी रहने से फास्फोरस लोहा तथा मेंग्नीजतत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि कल्ले निकलते समय 5 cm से अधिक पानी अधिक समय तक खेत मे भरा रहना चाहिए वहां जल निकासी का प्रबंध करना बहुल आवश्यक है अन्यथा उत्पादन पर कुप्रभाव पड़ेगा. सिंचित दशा मे खेत मे निरंतर पानी भरा रहने कि दशा मे यदि खेत मे अदृश्य होने की स्थिति मे एक दिन बाद 5 से 7 cm तक पानी भर दिया जाए इससे सिंचाई के जल मे भी बचत होगी.

बीज शोधन:- नर्सरी डालने से पूर्व बीज शोधन अवश्य करें. इसके लिए जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग की समस्या हो वहां पर 25 kg बीज के लिए 4 gm स्ट्रेप्टोमाइसिन को मिलाकर पानी मे रात भर भिगो दे. दूसरे दिन छाया मे (भिगोकर) सुखाकर डाले. यदि शाकाणु झुलसा की समस्या क्षेत्र मे नहीं हैं तो 25kg बीज को रात भर पानी मे भिगोने के बाद दुसरे दिन निकालकर अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद 75 gm थीरम या 50 gm कार्बेन्डाजिम को 8–10 लीटर पानी मे घोलकर बीज मे मिला दिया जाए इसके बाद छाया मे अंकुरित करके नर्सरी मे डाला जाएं. बीज शोधन हेतु 5gm/kg ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जाए.

नर्सरी :- एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई के लिए 800-1000 वर्ग मी० क्षेत्रफल मे महीन धान का 30kg माध्यम धान का 35kg और मोटे धान का 40 kg बीज पौध तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है ऊसर भूमि मे यह मात्रा सवा गुनी कर दी जाय. एक हेक्टेयर नर्सरी से लगभग 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई होती है.

धान का खैरा रोग

खैरा रोग (Khaira Disease):-  धान मे लगने वाला एक रोग है. इसमें पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद मे कत्थई रंग के हो जाते है. पौधा बोना रह जाता है. वयात कम हो जाती है प्रभावित पौधों की जड़े भी कत्थई रंग की हो जाती है. यह रोग मिट्टी मे जस्ते की कमी के कारण होता है. यह रोग उत्तर प्रदेश कि तराई धान की खेती के लिए सन 1955 से ही एक समस्या बना हुआ है. उत्तर भारत के अन्य तराई क्षेत्रों मे भी यह बीमारी पाई जाती है. अब यह रोग भारत के प्रदेशों जैसे- आंध्र प्रदेश, पंजाब एवं बंगाल आदि मे पाया जाता है.

नियंत्रण:- इसकी रोकथाम के लिए फसल पर 5kg जिंक सल्फेट 2.5kg बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर (क्रमशः 100 gm एवं 40gm प्रति नाली) छिड़काव करना चाहिए. पौधशाला मे उपरोक्त के दो छिड़काव बुवाई के 10 तथा 20 दिन बाद करने चाहिए.

लेखक:

विवेक कुमार त्रिवेदी1, देवाशीष गोलुई2
1नर्चर.फार्म, बंगलौर
2भा.कृ.अ.प. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110012

English Summary: Scientific method of cultivation of paddy crop Published on: 08 August 2024, 03:23 PM IST

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