केसर (Saffron Plant) एक फूल वाला पौधा है और दुनिया के सबसे महंगे मसालों (World's expensive spices) में से एक है और सबसे महंगा मसाला होते हुए भी यह दुनिया में कहीं भी उग सकता है. भारत में केसर की खेती (Kesar Farming) मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) और जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) में की जाती है, लेकिन अब किसान अपने प्रयोग से इसको यूपी (Uttar Pradesh) और राजस्थान (राजस्थान) जैसे राज्यों में भी उगा रहें है. अब ऐसे में बहुत से किसानों का यह सवाल होता है कि इसकी खेती कैसे की जाती है, तो आइये जानते हैं.
केसर ईरान, भारत, अफगानिस्तान, इटली, फ्रांस, न्यूजीलैंड, पेंसिल्वेनिया, स्पेन, पुर्तगाल, ग्रीस और मोरक्को, तुर्की और चीन जैसे देशों के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है. चूंकि यह पौधा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैला हुआ है, केसर की खेती की रोपण तकनीक (Saffron Farming Techniques) भी भिन्न हो सकती है, जो कि जलवायु, मिट्टी के प्रकार, रोपण की गहराई और कॉर्म की दूरी के आधार पर भिन्न हो सकती है.
केसर के पौधे के बारे में कुछ जानकारी (Some information about saffron plant)
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जंगली केसर का वैज्ञानिक नाम क्रोकस कार्टराइटियनस है.
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ऐसा कहा जाता है कि केसर की उत्पत्ति ग्रीस में हुई थी.
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केसर के पौधे 20 सेमी की ऊंचाई तक बढ़ सकते हैं.
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केसर के फूलों को तीन शाखाओं में बांटा गया है.
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फूल बैंगनी से बकाइन तक रंग में भिन्न होता है, और लाल रंग के कलंक को मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
केसर की खेती कैसे करें? (How to cultivate saffron?)
जलवायु (Climate)
केसर को उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाने के लिए सर्वोत्तम जलवायु चाहिए होती है. यह इसमें सबसे अच्छा बढ़ता है जहां इसे हर दिन कम से कम 12 घंटे सीधी धूप मिलती है.
मिट्टी (Soil)
अन्य सभी फसलों और मसालों की तरह केसर की खेती अत्यधिक मिट्टी के प्रकार पर आधारित होती है. अम्लीय से तटस्थ, बजरी, दोमट और रेतीली मिट्टी इसके उचित वृद्धि के लिए सर्वोत्तम हैं. केसर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 8 होना चाहिए. बता दें कि केसर भारी, चिकनी मिट्टी में नहीं उग सकता है.
ऋतु (Season)
केसर की खेती के लिए जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने सबसे अच्छा माना जाता है. पौधा अक्टूबर में फूलना शुरू कर देता है और इसको गर्मियों में गर्मी के साथ सूखापन और सर्दियों के दौरान अत्यधिक ठंड की आवश्यकता होती है.
पानी (Water)
केसर के पौधे को ज्यादा गीली मिट्टी की जरूरत नहीं होती है इसलिए इसे कम पानी की आवश्यकता होती है. यदि हम संख्या के अनुसार देखें तो केसर की खेती के दौरान प्रति एकड़ लगभग 283 घन मीटर पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
केसर की कटाई (Saffron Harvesting)
उच्च देखभाल के अलावा, केसर इतना महंगा होने का मुख्य कारण यह है कि यह केसर की कटाई के लिए श्रमसाध्य और समय लेने वाला होता है. फूलों की कटाई भोर में करनी चाहिए, क्योंकि फूल भोर में खिलते हैं और दिन बढ़ने पर मुरझा जाते हैं. केसर की कटाई के बारे में अधिक विशिष्ट होने के लिए, केसर के फूलों को सूर्योदय से सुबह 10 बजे के बीच तोड़ना चाहिए.
कितना होना चाहिए अंतर (What should be the spacing)
कॉर्म के बीच की दूरी काफी हद तक उनके आकार पर निर्भर करती है. इटली (Italy) में केसर की खेती में, किसान कृमि को 2-3 सेंटीमीटर और 10 से 15 सेंटीमीटर की गहराई तक रोपते हैं, एक ऐसी तकनीक जो उन्हें फूलों की अधिकतम फसल और प्रचुर मात्रा में कॉर्मलेट देती है. ग्रीक (Greek) के किसान प्रत्येक पंक्ति के बीच 25-सेंटीमीटर की दूरी और कॉर्म के बीच 12-सेंटीमीटर की दूरी रखते हैं, जिनमें से प्रत्येक को 15 सेंटीमीटर की गहराई में दबाया जाता है. स्पेन (Spain) में, पंक्तियों में 3 सेंटीमीटर और कॉर्म 6 सेंटीमीटर से दूर होते हैं. भारत (India) में, प्रत्येक पंक्ति के बीच 15 से 20 सेंटीमीटर और प्रत्येक कॉर्म के बीच 7.5 से 10 सेंटीमीटर की दूरी होती है.
केसर के उपयोग (Uses of saffron)
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भारत में, केसर का उपयोग मुख्य रूप से कई व्यंजनों में रंग भरने और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है.
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भारतीय आयुर्वेद में इसका उपयोग गठिया, बांझपन, यकृत वृद्धि और बुखार को ठीक करने के लिए भी किया जाता है.
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केसर का उपयोग व्यावसायिक रूप से कॉस्मेटिक और परफ्यूम में भी किया जाता है.
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यह भी माना जाता है कि अगर गर्भवती महिला केसर में उबाला हुआ दूध अच्छी तरह से पीती है, तो इससे बच्चे का स्वास्थ्य और रंग अच्छा हो सकता है.
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