राजस्थान के किसान कश्मीरी केसर की खेती कर कमा रहें भारी मुनाफा

जम्मू-कश्मीर की बर्फीली वादियों में महक बिखेरने वाली केसर अब राजस्थान के करौली जिले के गांवों में भी महकने लगी है. यहां पर कुसुम (अमेरीकी केसर) की क्यारियां महकने लगी है. दरअसल राजस्थान के इन किसानों को खेती काफी ज्यादा पसंद आ रही है और इससे उनको मुनाफा भी प्राप्त हो रहा है साथ ही इस क्षेत्र में कुसुम की कटाई का दौर चल रहा है. इस क्षेत्र के अधिकांश किसान कम लागत और उत्पादन, सिंचाई की फसल को उगा कर अच्छी और ज्यादा उत्पादन देने वाली फसलों पर ध्यान देते है. यहां पर किसान केसर की खेती के लिए दिन प्रतिदिन मेहनत करके खेती करने का कार्य कर रहे है. यहां इस क्षेत्र के क्यारदाखुई, करई, कालाखाना, सांकरवाडा, सोप, शहर, ढिढोरा समेत विभिन्न गांवों में दर्जन किसान 40 से 50 बीघा लीक से हटकर अमेरीकन केसर की खेती करने का कार्य कर रहे है.
ऐसे की अमेरिकन केसर की खेती
केसर की खेती करने वाले किसान मंगलराम का कहना है कि यहां हमने अमेरीकन केसर की खेती है. उनके रिश्तेदार ने इसके बीज को कश्मीर बीज को मंगवाया है और बाद में इसकी खेती की है. चूंकि केसर की खेती ज्यादातर ठंडे प्रदेश में ही होती है. इसीले बारिश खत्म होने के बाद ही इसकी खेती की गई है.

फूलवारी से सजा खेत
किसान कल्याण ने जानकारी दी कि अमेरिकी केसर के पौधे में फूल निकल जाने पर सप्ताह में दो बार ठीक से सिंचाई करनी चाहिए. बुवाई के छह महीने बाद अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक मई महीने के मध्य तक पौधे में केसर का फूल पूरी तरह से पक कर लाल हो जाता है और बाद में इन पौधों से केसर को तोड़ लिया गया है. किसान ने बताया कि केसर के फूलों से सजे पेड़ और खेत को देखने के लिए आसपास के किसान यहां पर देखने आते जाते रहते है.
केसर से अलग चाहिए कुसुम को वातावरण
दरअसल अमेरीकी खेती और कश्मीरी केसर में भिन्नता होती है. इन दोनों की खेती के लिए वातावरण भी अलग-अलग चाहिए होता है. कश्मीरी केसर का पौधा एक से डेढ़ फीट तक लंबा होता है. वही अमेरिकन पौधे की लंबाई तीन से चार फीट तक होती है. साथ ही इन दोनों के फूलों में भी और इनके रंग में अंतर होता है.
English Summary: Kesar in this district of Rajasthan
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