खेतों में फसलों को अनेक प्रकार के जैविक कारकों की वजह से नुकसान होता है. इनमें से एक कारक पादप परजीवी सूत्रकृमि निमेटोड भी होते हैं. मिट्टी में रहने वाले ये सूत्रकृमि फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. इन सूत्रकृमियों में से एकधान जड़-गांठ सूत्रकृमि मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोलाद्ध भारत के अनेकों राज्यों में गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है. पहली बार मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोलाको संयुक्त राज्य अमेरिका के लूसियाना राज्य में बार्नयार्ड घास इकाइनोक्लोआ कोलोनम की जड़ों में देखा गया और परिभाषित किया गया था. यह सूत्रकृमि प्रजाति भारत समेत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में धान की फसल का एक सामान्य परजीवी बन चुका है. भारत में इसे असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में देखा गया है. असम, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में धान जड़-गांठ सूत्रकृमि के गंभीर प्रकोप को देखा गया है और यह सूत्रकृमि अब धान की पौधशाला की सबसे ख़तरनाक समस्या बन चुका है. धान के अलावा अनेक खरपतवार भी मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोलाके पोषी पाए गए हैं. हाल के समय में मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोलाका तीव्र संक्रमण पश्चिम बंगाल में रबी गेहूं और खरीफ प्याज में ओडिशा में रबी प्याज में और कर्नाटक में मीठी प्याज की एक किस्म में भी पाया गया है.
खोज एवं निदान
मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोला के संक्रमण को पोषी फसलों, धान, गेहूं, प्याज आदि के जड़ों के सिरों में बनने वाली विशिष्ट प्रकार की 'तकलें' या 'कंटिये' जैसी गांठों से आसानी से पहचाना जा सकता है. परती अथवा खाली पड़े खेत में मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोला के संक्रमण को विभिन्न खरपतवारों या अपने आप अंकुरित हुए धान के पौधों की जड़ों को देखकर आसानी से पता लगाया जा सकता है.
प्रबंधन के तरीके
मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोला के प्रबंधन के लिए अनेकों तरीके उपयुक्त पाए गए हैं. धान की विभिन्न जननद्रव्य प्रजातियों के राष्ट्रीय संग्रह को धान जड़-गांठ सूत्रकृमि प्रतिरोध के लिए परीक्षण किया गया और कईं प्रतिरोधक प्रजातियों को पहचाना भी गया है. कीटनाशक कार्बोफ्यूरान को आम तौर पर धान की पौधशाला और खेतों में सूत्रकृमि प्रबंधन के लिए उपयोग किया जाता है. फसल चक्रीकरण में धान,सरसों-धान धान,परती-धान आदि चक्रों ने उचित प्रबंधन प्रदान किया है. मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोला के प्रबंधन के लिए निम्नलिखित तरीकों का उपयोग किया जा सकता है.
पौधशाला के लिए धान जड़-गांठ सूत्रकृमिमुक्त जमीन ही उपयोग की जानी चाहिए. इस जमीन को धान जड़-गांठ सूत्रकृमि मुक्त बनाने के लिए गर्मी के महीनों में कम से कम 3-4 हफ़्तों के लिए पॉलिथिन की चादर LLDPE 100 लगाकर क्यारी का सौर्यीकरण और उसके बाद कीटनाशक कार्बोफ्यूरान 10 ग्राम स्क्वायर मीटर मीटर से उपचार करना चाहिए. इसके अलावा पौधशाला की क्यारी को जैव नियंत्रक जीवाणु स्यूडोमोनास फ्लुओरोसेंस 20 ग्राम स्क्वायर मीटर से भी उपचारित किया जा सकता है.
बीजों को कार्बोसल्फान 25 ई सी मार्शल के 0.1% घोल में 12 घंटों तक भिगोया जाना चाहिए इससे मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोला के अंडों को नुकसान पहुंचेगा. जड़-गांठों की तीव्रता कम होगी व धान की उपज बढ़ेगी.
खेतों में फसल चक्र में मिलाइडोगाइन ग्रामिनीकोला की अपोषी फसलों जैसे मूंगफली. सरसों, उड़द, आलू को लगाना चाहिए या कम से कम दो मौसम में जमीन को परती छोड़ने से खेतों में सूत्रकृमि की संख्या कम हो जाती है.
अगर उपलब्धता हो तो सूत्रकृमि प्रभावित क्षेत्रों में धान की प्रतिरोधी जननद्रव्य प्रजातियां जैसे - ऐ आर सी 12620, आई एन आर सी 2002, सी आर 94, सी सी आर पी 51 ही लगानी चाहिए.
पौधों के प्रत्यारोपण के 40 दिन के बाद मुख्य खेत को कीटनाशक कार्बोफ्यूरान (फ्यूराडान) 3 जी से 33 किलोग्राम की दर से उपचारित करने से खेतों में सूत्रकृमि की संख्या कम हो जाती है और अन्य कीट जैसे की तना छेदक भी नियंत्रित होते हैं.
विशाल सिंह सोमवंशी और मतियार रहमान खान
सूत्रकृमि विज्ञान संभाग, भा. कृ. अनु. परि.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान
नई दिल्ल - 110012
Share your comments