रबी की दलहनी फसलों में मसूर की खेती (Lentil Cultivation) को एक प्रमुख स्थान दिया गया है. यह एक बहुप्रचलित और लोकप्रिय दलहनी फसल है. अगर किसानों को मसूर की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करना है, तो इसका उन्नत किस्मों का चुनाव करना बहुत ज़रूरी है. इसके साथ ही अपने क्षेत्र की प्रचलित, ज्यादा पैदावार देने वाली और रोग प्रतिरोधी होना ज़रूरी है. भारत में मसूर की 3 प्रकार की अनेक किस्में उपलब्ध हैं. जिनमें उकटा, छोटे दाने वाली किस्म, बड़े दाने वाली किस्म शामिल हैं.
ज़रूरी है कि किसान को इन सब किस्मों की अच्छी जानकारी हो, ताकि वह किस्म का सही से चुनाव कर पाएं. आज हम अपने इस लेख में मसूर की कई उन्नत किस्मों, उनकी विशेषताओं और पैदावार पर प्रकाश डालने वाले हैं.
उकटा प्रतिरोधी किस्में
इसमें वी एल मसूर- 129, वी एल- 133, पी एल- 02, वी एल- 154, वी एल- 125, पन्त मसूर (पी एल- 063), के एल बी- 303 और आ पी एल- 316 आदि किस्में शामिल हैं.
छोटे दाने वाली किस्में
इसमें पंत मसूर- 4, पूसा वैभव, आ पी एल- 406, पन्त मसूर- 639, पन्त मसूर- 406, डी पी एल- 32 पी एल- 5 और डब्लू बी एल- 77 आदि किस्में शामिल हैं.
बड़े दाने वाली किस्में
इसमें जे एल- 3, पी एल- 5, एल एच- 84-6, डी पी एल-15 (प्रिया), लेन्स- 4076, जे एल- 1, आई पी एल- 316, आई पी एल- 406 और पी एल- 7 आदि किस्में शामिल हैं.
मसूर किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
वी एल मसूर 1 (V L Masoor 1): मसूर की यह किस्म का छिलका काला और दाना छोटा होता है. यह किस्म फसल को 165 से 170 दिन में तैयार कर देती है. यह एक उकठा रोग प्रतिरोधी किस्म है, जिससे प्रति हेक्टेयर लगभग 10 से 12 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो सकती है.
वी एल मसूर 103 (V L Masoor 103): इस किस्म का छिलका भूरा और दाने छोटे होते हैं. यह फसल को लगभग 170 से 175 दिन में तैयार कर देती है. यह एक उकठा और बीज गलन रोग के लिए सहनशील है, जिससे प्रति हेक्टेयर लगभग 12 से 14 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो सकती है.
अरूण (पी एल 77-12) (Arun (pl.77-12): इस किस्म का दाना मध्यम बड़े आकार का होता है. इसकी बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक की जा सकती है. यह किस्म लगभग 110 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिससे प्रति हेक्टेयर लगभग 22 से 25 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
पंत मसूर- 4 (Pant Masoor- 4): यह किस्म पर्वतीय क्षेत्रों के अनुकूल रहती है. इससे फसल लगभग 160 से 170 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म का दाना छोटा होता है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 15 से 20 क्विंटल पैदावार मिल सकती है. बता दें कि यह किस्म उकठा रोग के लिए प्रतिरोधी मानी गई है.
पंत मसूर 5 (Pant Masoor- 5): यह मसूर की किस्म गेरूई, उकठा एवं झुलसा रोग के प्रति अवरोधी, समय से बुवाई एवं बड़े दाने वाली मसूर है. इस प्रजाति की अवधि पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 160 से 170 दिन एवं उपज क्षमता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह प्रजाति उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड हेतु संस्तुत है.
पंत मसूर 8 (Pant Masoor- 8): यह किस्म गेरूई रोगों के प्रति अवरोधी मानी गई है. इसका दाना छोटा होता है. इससे फसल लगभग 160 से 165 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म से अच्छी पैदावार मिल सकती है.
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पूसा शिवालिक (एल 4076) (Pusa Shivalik (L 4076): यह एक बड़े आकार के दाने वाली किस्म है, जो कि लगभग 130 से 140 दिन में फसल तैयार कर देती है. इसकी बुवाई का मध्य अक्टूबर से नवंबर के अंतिम सप्ताह तक की जा सकती है. इस किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 25 से 26 क्विंटल पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.
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