Crop Management: शीतलहर और पाला के कारण किसान की फसलें अक्सर प्रभावित होती हैं. इसे ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार के कृषि विभाग ने शीतलहर/पाला से होने वाली फसलों की क्षति को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं. सरकार के इन दिशा-निर्देशों का पालन करके किसान पाले से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं और फसल की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं. कृषि विभाग द्वारा दिए गए ये सुझाव फसल उत्पादन को बढ़ावा देने और किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मददगार साबित हो सकते हैं.
बता दें कि जब वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प पेड़-पौधों की पत्तियों या किसी ठोस सतह के संपर्क में आती है और तापमान 4°C या इससे कम हो जाता है, तो ओस की बूंदें बर्फ की चादर के रूप में जम जाती हैं. इसे पाला कहते हैं. यह फसलों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.
फसलों को शीतलहर/पाला से बचाने के उपाय
- मिट्टी की गुड़ाई से बचें:
पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई न करें. ऐसा करने से मिट्टी का तापमान और कम हो सकता है, जिससे फसल पर पाले का असर बढ़ जाता है. - हल्की सिंचाई करें:
पाला पड़ने की आशंका हो तो खेतों में हल्की सिंचाई करें. इससे तापमान 4°C से नीचे नहीं गिरेगा और फसलें सुरक्षित रहेंगी. - गंधक का छिड़काव:
घुलनशील गंधक (80% डब्ल्यूपी) का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. इससे पौधों में गर्मी उत्पन्न होगी और वे पाले के प्रभाव से बचेंगे.
- धुआं करें:
शाम के समय खेतों के चारों कोनों में घास-फूस जलाकर धुआं करें. यह पाले को सीधे फसलों पर जमने से रोकता है और तापमान को स्थिर बनाए रखता है. - पौधों को ढकें:
नर्सरी में प्याज, मिर्च, टमाटर, बैगन आदि सब्जियों को पुआल, पॉलिथिन या अन्य साधनों से ढकें. पौधों का पूर्वी-दक्षिणी हिस्सा खुला रखें ताकि सुबह की धूप पौधों तक पहुंच सके. फरवरी तक पुआल का उपयोग करें. - फफूँदनाशी का छिड़काव करें:
पाले के साथ-साथ झुलसा रोग से भी बचाव जरूरी है. झुलसा एक फफूँदजनित रोग है जो तेजी से फैलता है. निम्नलिखित फफूँदनाशी में से किसी का सात दिन के अंतराल पर छिड़काव करें:
- मैंकोजेब 75%
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63%
- जिनेब 75%
- मेटालैक्सील एम 4% + मैंकोजेब 64%
- इन दवाओं का 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें.
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अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
किसान भाइयों और बहनों को अधिक जानकारी के लिए किसान कॉल सेंटर (टोल-फ्री नंबर 1800-180-1551) पर संपर्क करने या अपने जिले के सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण से परामर्श लेने की सलाह दी गई है.
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