हरियाणा के पश्चिमी भागों में चने का बहुत महत्व है. चने के कुल क्षेत्रफल का 88 प्रतिशत हरियाणा के पश्चिमी भागों में ही है.लेकिन चने की फसल में अनेक बीमारियां व कीड़े आक्रमण करते हैं जिनको समय पर नियंत्रित न किया जाए तो ये कम पैदावार का कारण बनते हैं.चने की मुख्य बीमारियों व कीड़ो की रोकथाम निम्न प्रकार से है:
बीमारियां
उखेड़ा: यह बीमारी बीजाई के लगभग 3-6 हफ्ते बाद दिखाई देती है.इसमे पत्तियाँ मुरझा कर लुढ़क जाती हैं.लेकिन उनमे हरापन रहता है.तने को लंबाई से काटने पर रस वाहिकी काली भूरी दिखाई देती है.उखेड़ा से बचाने के लिए जमीन में नमी बनाये रखें व 10 अक्तूबर से पहले बीजाई न करें बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज-उपचार करें.बीजाई से पूर्व बीज का उपचार जैविक जैविक फफूंदनाशक बायोडरमा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज+वीटावैक्स 1ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें.
तना गलन: पत्तियाँ बदरंग होकर गिर जाती हैं.जमीन की सतह पर सफ़ेद फफूँद तने को चारों ओर से घेर लेती है.
जड़ गलन रोग: यह 2 प्रकार से होता है:
गीला जड़ गलन- यह रोग ज्यादा नमी वाली जमीन में होता है.
सूखा जड़ गलन रोग- यह रोग चने में फूल व फलियाँ बनते समय ज्यादा होता है.
इस बीमारी का प्रकोप फसल की अंकुरण अवस्था में या सिंचित क्षेत्रों में जब फसल बड़ी हो जाती है तब होता है. भूमि की सतह के पास पौधे के तने पर गहरे भूरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं.बीमार पौधे के तने व पत्ते हल्के पीले रंग के हो जाते हैं.मुख्य जड़ के नीचे का भाग गल जाने के कारण जमीन में ही रह जाता है.
विषाणु रोग: रोगी पौधे छोटे रह जाते हैं तथा संतरी या भूरे रंग के हो जाते हैं.यह बीमारी देसी चने में ज्यादा आती है.जोड़ वाली जगह पर तिरछा काटने से अंदर भूरा सा दिखाई देता है.जमीन में नमी को संरक्षित करने व 10 अक्तूबर के बाद बीजाई करने से इस रोग से बचा जा सकता है.
कीड़े
दीमक: रेतीली व अर्ध-नमी वाली जमीन में यह कीट ज्यादा सक्रिय रहता है.
रोकथाम:1500 मी.ली क्लोरपायरिफोस 20 ई. सी. को पानी में मिलाकर 2 लीटर घोल बना लें.इस घोल को 1 क्विंटल बीज पर छिड़कें व एकसार उपचारित करने के बाद बोने से पहले रातभर ऐसे हे पड़ा रहने दें.
कटुआ सूँडी: यह कीट उगते हुये पौधों के तने के बीच में व बढ़ते हुये पौधों के शाखाओं को काटकर नुकसान करती है.
रोकथाम: 10 किलो 0.4% फेनवलरेट धूड़ा प्रति एकड़ के हिसाब से करें.
फली छेदक सूँडी: यह कीट फलियों में बन रहे हरे बीज/दानों को खा कर नष्ट कर देती हैं.इस कीड़े की सूँडी प्यूपा बनने तक लगभग 30-40 फलियाँ खा जाती हैं.
रोकथाम: 400 मी.ली. क्विनल्फोस 25 ई. सी. या 150 मी.ली. नोवालूरोन 10 ई. सी. 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव उस समय करें जब एक सूँडी प्रति एक मीटर लाइन पौधों पर मिलने लगे.यदि जरूरी हो तो दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें.बड़ी सूँडीयों को हाथ से इकट्ठा करके नष्ट कर दें.खेत से चटरी-मटरी खरपतवार निकाल दें.
डॉ मीनू, डॉ योगिता बाली, डॉ गुलाब सिंह और डॉ मुरारी लाल
कृषि विज्ञान केंद्र भिवानी (हरियाणा)
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