ट्राइकोडर्मा एक जैविक कवकनाशी है, जिसे कृषि में फफूंद जनित रोगों, खासकर मृदा जनित रोगों के प्रबंधन के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. यह एक फफूंदी (फंगस) है, जो ट्राइकोडर्मा वंश से संबंधित है और विभिन्न रोगजनकों, जैसे कि फ्यूजेरियम, पिथियम, राइजोक्टोनिया और स्क्लेरोटियम इत्यादि के खिलाफ बहुत प्रभावी है. इसके उपयोग से रासायनिक कवकनाशियों पर निर्भरता कम होती है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
ट्राइकोडर्मा के कार्य करने का सिद्धांत
1. परजीवीकरण (Mycoparasitism)
ट्राइकोडर्मा रोगजनक फफूंद के कवक तंतु (माइसेलियम) पर आक्रमण करता है एवं रोगजनक के कवक तंतु के अंदर मौजूद सभी पोषक तत्व का उपयोग करके उन्हें नष्ट कर देता है.
2. एंटीबायोटिक्स का उत्पादन
ट्राइकोडर्मा रोगजनकों के विकास को रोकने के लिए एंटीबायोटिक जैसे पदार्थों का स्राव करता है.
3. प्रतिस्पर्धात्मक निषेध
ट्राइकोडर्मा तेजी से बढ़ता है और मिट्टी में पोषक तत्वों और स्थान के लिए रोगजनकों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है.
4. पादप प्रतिरोध क्षमता में वृद्धि
यह पौधों में प्रतिरोध तंत्र को सक्रिय करता है, जिससे पौधों की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है.
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ट्राइकोडर्मा उपयोग की विधियां
1. ट्राइकोडर्मा द्वारा बीज उपचार
बीजों का उपचार फसल की प्रारंभिक अवस्था में रोगों से बचाने के लिए किया जाता है.
ट्राइकोडर्मा द्वारा बीज उपचार करने की विधि - 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 1 किलो बीज के साथ मिलाएं. बीजों को छाया में सुखाकर तुरंत बोने के लिए उपयोग करें.
ट्राइकोडर्मा द्वारा बीज उपचार करने के फायदे- यह बीज जनित और मिट्टी जनित रोगों की लंबी श्रृंखला को प्रबंधित करता है, जैसे डैम्पिंग ऑफ और रूट रोट इत्यादि से बचाव करता है.
2. ट्राइकोडर्मा द्वारा मिट्टी उपचार
मिट्टी में उपस्थित रोगजनकों को नियंत्रित करने के लिए ट्राइकोडर्मा का उपयोग किया जाता है.
ट्राइकोडर्मा द्वारा मिट्टी उपचार करने की विधि- 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 100 से 200 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाएं. इस मिश्रण को छायादार स्थान पर 7 से 10 दिनों तक रखें और समय-समय पर नमी बनाए रखें. खेत की जुताई के समय इसे मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं.
ट्राइकोडर्मा द्वारा मिट्टी उपचार करने के फायदे - यह मिट्टी में रोगजनकों को नियंत्रित करता है और पौधों की जड़ें मजबूत बनाता है.
3. ट्राइकोडर्मा का पौधशाला (नर्सरी) में उपयोग
पौधशाला में फसलों को रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा का उपयोग किया जाता है.
ट्राइकोडर्मा का पौधशाला (नर्सरी) में उपयोग करने की विधि - पौधशाला की मिट्टी में ट्राइकोडर्मा मिश्रित जैविक खाद मिलाएं. पौधों की जड़ों को 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी में मिलाकर 30 मिनट तक डुबोएं.
ट्राइकोडर्मा का पौधशाला (नर्सरी) में उपयोग करने के फायदे - यह पौधशाला (नर्सरी) में पौधों को विविध मृदा जनित रोगों बचाता है.
4. ट्राइकोडर्मा का खड़ी फसल पर छिड़काव
यदि फसल में रोग के लक्षण दिखाई दें, तो ट्राइकोडर्मा का छिड़काव प्रभावी हो सकता है, लेकिन इसका प्रयोग सीमित होता है .
ट्राइकोडर्मा का खड़ी फसल पर छिड़काव करने की विधि - 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को प्रति लीटर पानी में मिलाएं. इस घोल को संक्रमित हिस्सों पर छिड़कें.
ट्राइकोडर्मा का खड़ी फसल पर छिड़काव करने के फायदे - यह रोग के प्रकोप को कम करता है और पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देता है.
5. ट्राइकोडर्मा का सिंचाई जल के साथ उपयोग
ट्राइकोडर्मा को सिंचाई जल में मिलाकर पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जा सकता है.
ट्राइकोडर्मा का सिंचाई जल के साथ उपयोग करने की विधि - 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर को 200 लीटर पानी में मिलाएं. इसे ड्रिप सिंचाई या बाढ़ सिंचाई के माध्यम से खेत में डालें.
ट्राइकोडर्मा का सिंचाई जल के साथ उपयोग करने के फायदे - यह जड़ों के आसपास रोगजनकों को नियंत्रित करता है.
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग में बरती जानेवाली सावधानियां
- ट्राइकोडर्मा का उपयोग हमेशा छायादार स्थान पर करें, क्योंकि सीधे धूप में इसके बीजाणु नष्ट हो सकते हैं.
- इसे रासायनिक कवकनाशियों के साथ मिलाकर उपयोग न करें.
- अच्छी गुणवत्ता वाले ट्राइकोडर्मा उत्पाद का चयन करें.
- जैविक खाद या गोबर की खाद के साथ उपयोग करना इसके प्रभाव को बढ़ाता है.
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से होनेवाले लाभ
- पर्यावरण-अनुकूल: रसायनों के उपयोग को कम करता है.
- सतत कृषि: मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता को बनाए रखता है.
- रोग नियंत्रण: कई फफूंद जनित रोगों के प्रबंधन में प्रभावी.
- कम लागत: रासायनिक कवकनाशियों की तुलना में सस्ता और टिकाऊ.
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