उत्तराखंड में अनुकूल मौसम होने के कारण गाजर घास यहां पर तेजी से पैर पसारने लगी हुई है. ये घास यहां के खेतों में तेजी से फैल रही है. इस घास के फैलाव के चलते कृषि भूमि तेजी से बंजर होती जा रही है. इसके अलावा जंगलों में भी बाकी वनस्पतियां विकसित नहीं हो पा रही है. इस 'पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस' नाम की घास पर काबू नहीं पाया गया तो यह पहाड़ की जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है.
नुकसानदायक है गाजर घास
गाजर घास किसानों के लिए अधिक नुकसानदायक साबित हो रही है. इससे फसलों के साथ ही मवेशियों के साथ-साथ किसानों को भी नुकसान पहुंचता है. इसके साथ ही सबसे अधिक विनाशकारी खरपतवार होने के चलते कई तरह की समस्याएं पैदा कर सकती है. इसके कारण फसल से तीस से चालीस प्रतिशत पैदावार कम हो जाती है. इस घास में ऐस्क्युरटिन लेक्टोन नामक एक तरह का विषाक्त पदार्थ पाया जाता है. फसलों में पाया जाने वाला ये विषैला पदार्थ फसलों की अंकुरण क्षमता व विकास पर विपरीत प्रभाव डालता है. इस गाजर घास के पर परागण फसलों के मादा जनन अंगों में एकत्र होकर उसकी संवेदनशील स्थिति को खत्म कर देते है. ये किसी मनुष्य के संपर्क में आती है तो इसके सहारे एग्जिमा, बुखार, दमा, आदि खतरनाक बीमारियां हो जाती है.
गाजर घास के बार में जानकारी
अगर हम गाजर घास से संबंधी कुछ सामान्य जानकारी की बात करें तो इस घास की कुल बीस से ज्यादा प्रजातियां पूरे विश्वभर में पाई जाती है. भारत के कुछ राज्यों में भी पिछले कुछ समय से कई राज्यों में गाजर घास का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. देश के राज्यों की बात करें तो गाजर घास जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक समेत पूर्वोतर के नागालैंड और उत्तराखंड के पांच मिलियन हेक्टेयर में फैल गई है. अगर बाहरी देशों की बात करें तो अमेरिका, मैक्सिकों, चीन, नेपाल, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में यह घास फैली हुई है. बाद में यह किसी न किसी रूप में होती हुई भारत में आ पहुंची और देश के कई राज्यों में तेजी से पैर पसार रही है. इसके साथ ही यह की रूप में बेहद ही घातक साबित हो रही है.
ऐसे पैदा होती है यह घास
गाजर घास जिस तरीके से पैदा होती है वह जानना जरूरी है. गाजर घास में तना बहुत ही रोयेदार व काफी शाखाओं वाला होता है. इसकी पत्तियां गाजर के तरह होती है. इसके फलों का रंग पूरी तरह से सफेद होता है. प्रत्येक पौधा एक हजार से पचास हजार तक अत्यंत सूक्ष्म बीज को पैदा करता है. जब ये बीज जमीन पर गिर जाते है तो फिर ये अंकुरित हो जाते है. इस घास का पौधा चार महीने में अपना चक्र पूरा कर लेता है और साल भर उगता रहता है.
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