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Maize Farming: मक्के की फसल में ये कीट पहुंचाते हैं सबसे ज्यादा नुकसान, यहां जानें लक्षण और बचाव के उपाय

Makka ki Fasal: किसानों को मक्का की फसल में सबसे अधिक कीट एवं रोग की परेशानी का सामना करना चाहिए, जिसका असर मक्का की पैदावार पर देखने को मिलता है. ऐसे में आज हम मक्का किसानों के लिए मक्का की फसल में लगने वाले कीट एवं लक्षण से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं.

लोकेश निरवाल
मक्का की फसल में लगने वाले खतरनाक कीट
मक्का की फसल में लगने वाले खतरनाक कीट

Diseases in Maize Crop: मक्का की फसल प्रमुख अनाज की फसल में से एक मानी जाती है. भारत में इसकी  खेती सबसे अधिक पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में की जाती है. मक्की की खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक होती है, क्योंकि यह फसल लगभग सभी तरह की मिट्टी में अच्छा उत्पादन देती है. लेकिन अक्सर देखा गया है कि मक्का की फसल में किसानों को कीट एवं रोग का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते पैदावार के साथ-साथ उन्हें आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ता है. बता दें कि मक्का की फसल में कई तरह के कीट एवं रोग लगते हैं, जिसका अगर सही समय पर प्रबंधन नहीं किया गया, तो वह पूरी फसल को नष्ट कर देते हैं.

इसी क्रम में आज हम इस लेख में जानेंगे कि मक्का किसानों के लिए मक्का की फसल/Maize Crop में कौन से रोग एवं कीट लगते हैं और उनके लक्षण एवं प्रबंधन क्या-क्या है. ताकि किसान समय पर कीट एवं रोग को नियंत्रण कर बढ़िया पैदावार प्राप्त कर सके.

मक्का की फसल में लगने वाले कीट एवं लक्षण

सैनिक कीट, (फॉल आर्मी वर्ग): यह एक बहुफसलनाशी कीट है तथा इसकी होस्ट रेंज बहुत बड़ी होती है. यह पत्तियों खाता है परन्तु अधिक संक्रमण की अवस्था में सुडीयां-भुट्टे भी खा जाती है. फसल की पूर्व बढ़त की अवस्था में इस कीट की सुडियां पादपकों में गोभों को खा जाती है व्यस्क अवस्था में संक्रमण होने पर पत्तियों को खाकर गंभीर नुकसान पहुंचाती है तथा केवल शिराएं ही बचती है. मक्के में सामान्यतः पत्तियों के नुकसान का विवरण इस प्रकार होता है कि पत्तियां कटी-फटी सी होती है तथा गीले लकड़ी के बुरादे जैसा कीटमल पत्तियों के पास दिखाई देता है. फॉल आर्मी वर्म की सुडीयों में आखिरी से पहले खंड के पृष्ठीय भाग में वर्गाकार अवस्था में चार बड़े बिन्दू तथा चार छोटे बिन्दू पृष्ठीय (व्यायाम के झुले) की आकार में दूसरे खंडों पृश्ठीय भाग पर व्यवस्थित रहते है. बड़ी सुडीं के सिर पर उल्टे आकार को सफेद रंग का निशान पाया जाता है.

(सैनिक कीट) फॉल आर्मी वर्गः वयस्क कीट, अंडा समूह सुंडी, लक्षण तना छेदकः इन कीटों की मादा पत्तियों के निचले सतह पर अंडे देती है. तीन दिन बाद अंडों से नवजात शिशु बाहर आकर पौधे की गोभ में चले जाते हैं. एक ही पौधे को बहुत सारी सुंडियां खाती हैं और नीचे तने में चले जाते हैं. पत्ती छेदों का होना, इस कीट की स्थिति को दर्शाता है.

मक्का की फसल में लगने वाले कीट नियंत्रण

  • फॉल आर्मीवर्ग के अंडों को नष्ट करने के लिए अण्ड परजीव्याम जैसे कि ट्राईकाग्रामा रपी. और टेलीनोमस रिमस का उपयोग किया जा सकता है.

  • फॉल आर्मीवर्ग में अरारदार प्रबंधन हेतु कीट रोगमारी फंफूद जैसे कि निमोरिया रीलेई या मेटाराइजीयम एनीसोप्लीन / 2 ग्राम / ली. पानी का छिड़काव करें.

  • फॉल आर्मीवर्म के प्रबंधन हेतु एमामेक्टिन बेंजोएट 5 जी / 0.5 ग्राम./ली. पानी या स्पाइनोट्राम 11.7 एस.सी./04 मि.ली./ली. पानी या क्लोरेनट्रेनीलीप्रॉल 18.5: एस. सी. / 0.4 मि.ली. / ली. पानी का उपयोग करें .

  • वर्षा ऋतु आने से पहले मक्का की फसल के ठूटों को इकट्ठा करके नष्ट करने तथा खेत में बचे मक्का के अवशेषों पर पशुओं को चराने से तना भेदक का प्रकोप कम होता है.

  • तना छेदक के प्रकोप से बचने के लिए बीजों को सायनट्रानिलिप्रोल 50% एफ.एस 64 ग्रा./ है. या टेट्रानिलिप्रोल 40.34% एफ. एस 7.5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें .

  • बचने 10 दिन पुरानी मक्का की फसल को तना भेदक के लिए अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा काइलोनिस (8 ट्राइको कार्ड्स प्रति हे.) का प्रयोग करें.

  • तना भेदक के प्रति मक्का प्रतिरोधी किस्में लगाएं.

  • वर्षा ऋतु आने से पहले मक्का के ठूठों को इक्छ्ठा करके नष्ट करने से गुलाबी तना भेदक का प्रकोप भी कम होता है .

  • आवश्यकतानुसार आइसोसायक्लोसेरम 18.1 एस.सी 6 मिली / 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

  • प्ररोह मक्खी के प्रकोप से बचने के लिए बीजों को थियामेथोक्साम 30 एफ. एस 8 ग्रा./ मिली प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें .

  • आवश्यकतानुसार ऑक्सीडेमेटोन मिथाइल 25% ई.सी 10 मिली /10ली. या थियामेथोक्सम 12.6+ लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 9.5% जेडसी 2.5 मि.ली /10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

  • जड़ तना छेदकः ये पौधे के सभी भागों पर आक्रमण करता है. ये पत्तियों की शीथ के नीचे की कोशिकाओं को खाते हुए, केंद्रीय  तने में सुरंग बनाता हुआ ऊपर की तरफ जाता है. प्रकोप तने से भुटटों पर पहुँच कर दानों को काफी क्षति पहुंचाता है.

तोह मक्खी : उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में तना मक्खी का को बसंत ऋतु में उगाई जाने वाली मक्का में होता है. मादा पौधे की 1-7 पत्तियों की अवस्था में पत्तों के नीचे अलग लग चुरुट (सिगार) आकार के अंडे देती हैं. कीट के मैगट पौधे की बढ़ती अवस्था ( 3 पत्ती अवस्था) में ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते है . शिशु मैगट तने को भेद कर सड़ा देते हैं. इस कीट के प्रकोप के कारण पौधे की मध्य शिरा भूरी हो जाती है. वह कर डेड हार्ट बनती है, पौधे की बढ़त रुक जाती है और पौधा मर जाता है.

दीमकः शुष्क मौसम व रेतीली मिट्टी में दीमक का प्रभाव ज्यादा होता है. मक्का में दीमक का प्रकोप पौधे के अंकुरण के बाद से ही आरम्भ हो जाता है. बड़े पौधे पूर्णतया सूख जाते हैं. जड़ से उनका सम्बन्ध खत्म हो जाता है व पौधा गिर जाता है. प्रभावित सूखे पौधे को सरलता से उखाड़ा जा सकता है. दीमक असंगठित (कच्चा) सेलूलोज़ पसंद करती है. अतः खेत में पिछली फसल के अवशेष न रखें. कच्ची खाद का प्रयोग बिलकुल न करें. दीमक लगने पर खेत में पानी लगा देने से दीमक का प्रकोप कुछ दिनों के लिए काम हो जाता है. बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब व उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है.

कटाई उपरांत मक्का फसल के ठूंठों को बाहर निकालकर तथा गर्मियों में खेत की गहरी जुताई कर के आने वाली फसल में दीमक का प्रकोप कम किया जा सकता है. खेत की सफाई रखने से भी दीमक का प्रकोप कम होता है . फ्रिपोनिल 0.3% HT ( 20 कि. ग्रा./ है) का छिड़काव करने के उपरांत हल्का पानी देने से दीमक का प्रकोप कम होता है.

English Summary: Pests and symptoms of maize crop Diseases control these simple methods Published on: 09 August 2024, 12:22 PM IST

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