Top Mustard Varieties: रबी मौसम की प्रमुख तिलहनी फसल सरसों कम लागत और सिंचाई में अधिक लाभ देने वाली नकदी फसल है. इसकी खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और पंजाब में प्रमुख रूप से की जाती है. सरसों की फसल के लिए 18 से 25 डिग्री तापमान और ठंडी, शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है. दोमट या बलुई-दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है.
वही, बुवाई सितंबर के आखिरी सप्ताह से 15 दिसंबर तक होती है. ऐसे में आइए आज सरसों की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में जानते हैं जिनकी खेती करके किसान शानदार मुनाफा कमा सकते हैं-
सरसों की अगेती किस्में
पूसा अग्रणी : सरसों की कम अवधि में पकने वाली पहली प्रजाति है पूसा अग्रणी, जो 110 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत पैदावार 13.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
पूसा तारक एवं पूसा महक : पूसा तारक और पूसा महक लगभग 110-115 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं. इस की औसत पैदावार 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच में रहती है.
पूसा सरसों 25 : यह किस्म 100 दिन में ही पक जाती है. इस की औसत पैदावार 14.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच रहती है.
पूसा सरसों 27 : इस किस्म के पकने में 110-115 दिन का समय लगता है. इस की औसत पैदावार तकरीबन 15.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच रहती है.
पूसा सरसों 28 : इन सभी प्रजातियों में जो नवीनतम प्रजाति है, वह है पूसा सरसों-28. यह प्रजाति 105-110 दिन के अंदर पक जाती है. इस की औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
सरसों की मध्यम अवधि वाली किस्में
राज विजय सरसों : सरसों की यह किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के इलाकों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है . ये किस्म बोआई के 120 से 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. सरसों की इस किस्म में तेल की मात्रा 37 से 40 फीसदी के पास होती है. सरसों की इस किस्म को उत्पादन और अच्छी क्वालिटी के तेल प्रोडक्शन के लिए अहम माना जाता है. इस किस्म की औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.
पूसा मस्टर्ड 21 : यह किस्म पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में ज्यादा उगाई जाती है . सरसों की यह किस्म 137 से 152 दिनों में पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस किस्म का 18 से 21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है. इस में तेल की मात्रा लगभग 37 से 40 फीसदी तक पाई जाती है.
पूसा मस्टर्ड-32 : सरसों की इस नई किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी आईएआरआई, पूसा ने विकसित किया है. यह सरसों की पहली एकल शून्य किस्म है. इस किस्म की खास बात यह है कि इस में सफेद रतुआ रोग लगने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि यह किस्म सफेद रतुआ रोग के प्रति सहनशील है. यह किस्म अच्छी पैदावार देने में सक्षम है.
पूसा बोल्ड : सरसों की पूसा बोल्ड किस्म की फलियां मोटी एवं इस के 1,000 दानों का वजन तकरीबन 6 ग्राम होता है. इस किस्म से 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त होती है. इस में तेल की मात्रा सब से अधिक 42 फीसदी तक होती है. यह किस्म राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह किस्म 130 से 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.
पूसा जय किसान (बायो-902) : सरसों की यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में ज्यादा उगाई जाती है. यह किस्म विल्ट, तुलासिता और सफेद रोली रोग को सहने में सक्षम है इस में इन रोगों का प्रकोप कम होता है. सरसों की पूसा जय किसान (बायो-902) किस्म से 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल सकती है. इस में तेल की मात्रा तकरीबन 38 से 40 फीसदी तक पाई जाती है. यह किस्म 130 से 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.
पूसा विजय : यह प्रजाति सिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई के लिए सर्वोत्तम है. इस की औसत पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह उच्च तापमान, लवण्यता व गिरने के प्रति सहनशील है. इस के पौधों की ऊंचाई 170-180 सेंटीमीटर तक होती है. यह मोटे दाने वाली (6 ग्राम प्रति 1,000 दाने) प्रजाति है, जिन में तेल की औसत मात्रा 38.5 फीसदी है . यह किस्म बोआई के 140 दिन बाद पक कर तैयार हो जाती है. यह सफेद रतुआ, चूर्ण फफूंदी, मृदुरोमिल आसिता और स्क्लेरोटीनिया सड़न के प्रति सहिष्णु है.
पूसा सरसों-1-22 (एलईटी- 17) : यह प्रजाति साल 2008 में गुजरात व पश्चिमी महाराष्ट्र के सिंचित क्षेत्रों के लिए समय पर बुआई के लिए अनुमोदित की गई थी. यह कम इरुसिक एसिड (2 फीसदी से कम) वाली प्रजाति है. इस की पैदावार 20.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह प्रजाति 142 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस के 1,000 दानों का वजन 3.6 ग्राम होता है और इस की पैदावार क्षमता 27.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पूसा सरसों-24 (एलईटी-18) : यह प्रजाति साल 2008 में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मूकश्मीर व हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों लिए जारी की गई थी. यह समय पर बोने के लिए उपयुक्त किस्म है और 20.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है. यह बोआई के 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस के 1,000 दानों का वजन 4 ग्राम होता है. यह कम इरुसिक एसिड (2 फीसदी से कम) की प्रजाति है.
पूसा सरसों-26 (एनपीजे-113) : यह बारीक दाने वाली प्रजाति है इस के पौधों की ऊंचाई 110-125 सेंटीमीटर होती है. यह किस्म 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस प्रजाति को दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में मध्य सितंबर में बोआई कर के दिसंबर माह के अंत तक काट कर गेहूं, प्याज, मक्का आदि की फसल लेने के लिए अधिक उपयुक्त है.
पूसा सरसों-29 (एलईटी-36) : यह किस्म साल 2013 में पंजाब व हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित की गई है. यह कम इरुसिक एसिड (2 फीसदी से कम) वाली प्रजाति है. यह सिंचित क्षेत्रों में 21.69 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है. इस में तेल की मात्रा 37.2 फीसदी और बोआई के 143 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह अंकुरण एवं पकने के समय अधिक तापमान के प्रति सहनशील है.
पूसा सरसों-30 (एलईएस-43) : यह प्रजाति साल 2013 में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों और पूर्वी राजस्थान में समय से सिंचित क्षेत्रों में बोआई के लिए जारी की गई. इस के 1,000 दानों का वजन 5.38 ग्राम है और इस में इरुसिक एसिड (2 फीसदी से कम) होता है. इस में 37.7 फीसदी तेल होता है और यह बोआई के 137 दिन में पक कर तैयार हो जाती है इस की औसत पैदावार 18.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पूसा करिश्मा (एलईएस-39) : साल 2005 में अनुमोदित कम इरुसिक एसिड वाली प्रथम प्रजाति है. यह सिंचित क्षेत्रों में और समय पर बोने के लिए उपयुक्त है यह 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है. यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए उपयुक्त है.
पूसा आदित्य एनपीसी-9 : इस की औसत पैदावार 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह प्रजाति बारानी अवस्थाओं में एवं कम उपजाऊ भूमि में अच्छी पैदावार देती है और डाउनी मिल्ड्यू व सफेद रतुआ रोग के प्रतिरोधी है यह झुलसा तना गलन, पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति भी सहिष्णु और चैंपा के प्रति सहनशील है. इस प्रजाति के दाने बहुत छोटे (4 ग्राम प्रति 1,000) आकार के हैं. इस में तेल की मात्रा 40 फीसदी होती है. इस प्रजाति के पौधों की औसत ऊंचाई 200-230 सेंटीमीटर होती है. यह विपरीत परिस्थितियों में अच्छी उपज देने वाली करण राई की महत्त्वपूर्ण प्रजाति है.
पूसा स्वर्णिम (आईजीसी-01) : यह प्रजाति राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर और उत्तराखंड के लिए सिंचित और बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह सिंचित अवस्था में 16.7 क्विंटल और बारानी क्षेत्रों में 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है इस में तेल की मात्रा 40.43 फीसदी तक होती है. इस किस्म में उच्च दर्जे की सूखा सहिष्णुता है और सफेद रतुआ के प्रति उच्च प्रतिरोधकता है. यह लंबी अवधि की प्रजाति है .
पीआर-15 (क्रांति) : असिंचित क्षेत्रों में बोआई के लिए उपयुक्त इस किस्म के पौधे 155-200 सेंटीमीटर ऊंचे, पत्तियां रोएंदार, तना चिकना और फूल हलके पीले रंग के होते हैं. इस का दाना मोटा, कत्थई एवं इस में तेल की मात्रा 40 फीसदी होती है. यह किस्म 125 से 130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. वरुणा की अपेक्षा अल्टरनेरिया रोग और पाले के प्रति अधिक सहनशील है. तुलासिता व सफेद रोली रोधक है.
आरआरएन 573 : समय से बोआई के लिए यह उपयुक्त किस्म है. पौधा 168 से ले कर 176 सेंटीमीटर तक ऊंचा व इस की पत्तियां चौड़ी, फलियों की नोक एक तरफ मुड़ी हुई होती है. फसल के पकने की अवधि 136 से 138 दिन है. इस के 1,000 दानों का औसत वजन 44 ग्राम है और तेल की मात्रा 41.4 फीसदी है. यह किस्म रोग व कीटों के प्रति मध्यम सहिष्णु है. इस की औसत उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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