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इन दिनों मेंथा की पेराई का काम चल रहा है, मगर मानसून की बारिश कई बार मेंथा किसानों के लिए कई समस्याएं खड़ी कर देती है. बता दें कि मेंथा का तेल कम तापमान और अनियमित बारिश के समय निकलता है. ऐसे में मानसून के आ जाने से किसानों को कुछ खास बातों पर विशेष ध्यान देना होगा, ताकि फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव न पड़ पाए. इससे पहले आपको बता दें कि हमारे देश में मेंथॉल मिंट का उत्पादन काफी बड़े स्तर पर होता है. इसकी मांग नें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है इसलिए इसकी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में की जा रही है. हमारे देश में करीब 3.0 लाख हेक्टेयर में मेंथा की खेती की जाती है, जिससे करीब 38,000 से 40,000 मीट्रिक टन तेल का उत्पादन प्राप्त होता है. अगर सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात की जाए, तो यह अकेला ऐसा राज्य है, जहां करीब 80 से 85 प्रतिशत मेंथॉल मिंट का उत्पादन हो रहा है. इसमें लखनऊ, बाराबंकी, रायबरेली, हरदोई ,बरेली, रामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, मुरादाबाद, शाहजहांपुर, संभल, बदायूं, एटा, अलीगढ आदि जिले शामिल हैं. इन जिलों के किसान मेंथॉल मिंट की बढ़ती मांग को लगातार पूरा करने में मदद कर रहे हैं.
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मानसून में होने वाली समस्याएं
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मानसून परिवर्तन की वजह से उप्तादन में कमी आ जाती है.
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फसल की कटाई से पहले खेत में पानी लगाने से उत्पादन कम होता है.
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फसल में अधिक खरपतवार लगती है, जिससे किसानों का आर्थिक लागतर ज्यादा लगती है.
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किसानों को रोग और कीट के प्रबंधन पर लागतर लगानी पड़ती है.
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फसल में थ्रिप्स कीट लग सकता है, जो कि पतियों के ऊपरी और नीचली सतह को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे तेल की पैदावर में भारी गिरावट आती है.
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