Tea Cultivation: भारत में चाय की खेती असम के बागों में की जाती है. समय के साथ-साथ इसकी खेती अन्य राज्यों में भी की जाने लगी है. भारत चाय के उत्पादन के दूसरा स्थान पर है. इसकी खेती के लिए अम्लीय जमीन की आवश्यकता होती है. आज हम आपको इससे जुड़ी खेती के तरीके को बताने जा रहे हैं.
चाय की खेती करने के लिए मिट्टी की तैयारी
चाय की खेती काली मिट्टी में होती है, लेकिन बदलते तकनीक के साथ इसे किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है. जलभराव वाली मिट्टी में पौधे सड़ने लगते हैं. इसके खेत का पीएच मान 5 से 6 के बीच चाहिए. चाय के पौधों को गर्मी के समय में बारिश की जरुरत होती है.
चाय के पौधों के लिए उवर्रक
चाय के पौधों को लगाने के लिए जमीन में गड्डों को तैयार करना होता है. यह गड्डे कतार में होते हैं और इनके बीच की दूरी दो से तीन फीट तक होती है. इन तैयार गड्डे में आप आकार के अनुसार गोबर की खाद डाल दें. इसके अलावा नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश को भी मिलाना चाहिए.
चाय के पौधों की रोपाई
चाय के पौधों की रोपाई इनके कलम के द्वारा की जाती है. आप खुरपी या फावड़े की मदद से तैयार गड्डों में चाय के पौधों की रोपाई कर सकते हैं. इन पौधों की रोपाई अधिकतर बारिश के समय में की जाती है.
चाय की फसल में खरपतवार नियंत्रण
चाय के बागानों की समय-समय पर निराई–गुड़ाई करते रहना चाहिए. फसल की पहली बार रोपाई के बाद कम से कम 20 दिन इसकी निराई करनी चाहिए. इससे खेतों की पैदावार अच्छी होने लगती है.
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चाय की फसल में रोगों से रोकथाम
चाय के पौधों में शैवाल, कीट रोग और गुलाबी रोग जैसे अनेक रोग लग जाते हैं. यह कीट फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे चाय की पैदावार कम हो जाती है. किसान ऐसे रोगों से बचाव के लिये समय-समय पर रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव करते रहना चाहिए.
चाय की फसल से कमाई
चाय के पौधों एक से डेढ़ साल में तैयार हो जाते हैं. इसकी पत्तियों की तुड़ाई एक साल में तीन बार की जा सकती है. एक हेक्टेयर के खेत में 600 किलोग्राम तक चाय का उत्पादन किया जा सकता है. जिससे आप आराम से दो लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं.
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