आलू एक प्रकार की सब्जी है, जिसे वनस्पति विज्ञान की दृष्टि से एक तना माना जाता है. यह गेहूं, धान और मक्का के बाद सबसे ज्यादा उगाया जाता है. आलू की खेती (Potato Farming) भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में होती है. इसे जमीन के नीचे पैदा किया जाता है. आलू के उत्पादन में चीन और रूस के बाद भारत का तीसरा स्थान है.
यहां अधिकतर किसान आलू की खेती (Potato Farming) कर मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन कई आलू की फसल में रोगों का प्रकोप हो जाता है. इस कारण फसल की उपज कम प्राप्त होती है औऱ किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में आज हम आलू में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण (Major diseases of potato and their control) की जानकारी लेकर आए हैं.
आलू फसल मे अगेती अंगमारी या अर्ली ब्लाइट (Early Blight)
यह रोग फफूंद की वजह से लगता है. इसका प्रमुख लक्षण यह है कि नीचे की पत्तियों पर हल्के भरे रंग के छोटे-छोटे बिखरे हुए धब्बें पड़ जाते हैं, जो कि अनुकूल मौसम पाकर पत्तियों पर फैलने लगते है. इससे पत्तियां नष्ट हो जाती हैं.
नियंत्रण पाने का तरीका
बुवाई से पहले खेत की सफाई कर पौधों के अवशेष को एकत्र करके जला दें. आलू के कंदो को एगेलाल के 0.1 प्रतिशत घोल में 2 मिनट तक डुबाकर उपचारित करें. इसके साथ ही रोग प्रतिरोधक किस्म जैसे कुफरी जीवन, कुफरी सिंदूरी आदि की बुवाई करें.
आलू का पछेती अंगमारी रोग (Late Blight)
यह रोग भी फफूंद की वजह से होता है. इसके लगने से सबसे पहले नीचे की पत्तियों पर हल्के हरे रंग के धब्बें दिखाई देते हैं, जो जल्द ही भूरे रंग के हो जाते हैं. यह धब्बे अनियमित आकार के बनते हैं, जो अनुकूल मौसम पाकर बड़ी तीव्रता से फैलते जाते हैं. इससे पत्तियां पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं.
नियंत्रण पाने का तरीका
आलू की बुवाई से पहले खोद के निकाले गए रोगी कंदो को जलाकर नष्ट कर दें. इसके साथ ही प्रमाणित बीज का प्रयोग किया जाना चाहिए और रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. जैसे- कुफरी अंलकार, कुफरी खासी गोरी, कुफरी ज्योती, आदि. इसके अलावा बोर्डो मिश्रण 4:4:50, कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव 12 से 15 दिन के अन्तराल में 3 बार करना चाहिए.
आलू में भूरा विगलन रोग एवं जीवाणु म्लानी रोग (Brown Rust)
यह जीवाणु जनित रोग हैं, जिसमें रोग ग्रसित पौधे सामान्य पौधों से बौने हो जाते हैं. अगर इन पौधों मे कंद बनता है, तो काटने पर एक भूरा धेरा देखा जा सकता हैं.
नियंत्रण पाने का तरीका
खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. वहीं, प्रमाणीत बीज का प्रयोग करना चाहिए, साथ ही बुवाई से पहले खोद के निकाले गए रोगी कंदो को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए. इसके अलावा कंद लगाते समय 4 से 5 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से ब्लीचिंग पाउडर उर्वरक के साथ कुंड मे मिलाएं.
Share your comments