पिछले कुछ सालों से गन्ने की फसल पर सफेद गिंडार का प्रकोप बढ़ने से उत्पादन कम हो रहा है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है. किसान को जिस समय इस कीट से हानि के लक्षण फसल पर दिखाई पड़ते हैं, उस समय इसका नियंत्रण लगभग असंभव है. इस कीट का जीवन चक्र 1 साल में पूरा होता है. कुछ प्रजातियों का जीवन चक्र 2 साल में पूरा हो जाता है. इसके जीवन चक्र की मुख्य 4 अवस्थाएं होती हैं.
1.भृंग व्यस्क अवस्था
2.अंडा अवस्था
3.लट/गिंडार अवस्था
4.शंकु/प्यूपा अवस्था
इसके भृंग अधिकतर पहले साल यानी मई-जून में जमीन के अंदर से सूरज छिपने के बाद लगभग शाम 7:30 से 7:45 बजे निकलर निकटतम पेड़ों पर बैठते हैं. जहां नर-मादा संभोग करके प्रजनन क्रिया आरंभ करते हैं. इसके बाद रात के समय अपनी पसंद के पेड़ जैसे नीम, गबलर, बेर, जामुन आदि पर रहते हैं, साथ ही इन पेड़ों की पत्तियां खा जाते हैं. बता दें कि सूरज निकलने से पहले भृंग पुन: जमीन के अंदर चले जाते हैं. यह प्रक्रिया लगभग 1 महीने तक चलती है.
मादा संभोग के 3 से 4 दिन बाद गीली मिट्टी में लगभग 15 सेमी की गहराई पर अंडे देते हैं. एक मादा लगभग 15 से 20 अंडे देती है. अंडों में 7 से 13 दिन बाद छोटी लटे/गिंडार निकलती हैं, जो कि लगभग 15 मिलीमीटर लंबी होती हैं. इसके साथ ही सूक्ष्म जड़ों को खाती हैं. लट की पहली अवस्था 2 सप्ताह तक रहती है.
इसके बाद दूसरी अवस्था में प्रवेश कर जाती हैं. इसकी लंबाई लगभग 35 मिल मीटर लंबी होती है. यह अवस्था 6 से 8 सप्ताह तक रहती है. सफेट लट की दूसरी और तीसरी अवस्था ही फसल को अधिक हानि पहुंचाती है. यह गन्ने की मुख्य जड़ों को खा जाती हैं. इस कारण गन्ना का उत्पादन कम होता है, साथ ही गन्ने की मिठास कम हो जाती है. सफेद लट की पहली अवस्था पर ही कीटनाशकों का प्रभाव की होता है. दूसरी और तीसरी अवस्था पर कीटनाशकों का कोई प्रभाव नहीं होता है, क्योंकि कीट को कीटनाशक की भनक लग जाती ह और वह जमीन की गहराई में चले जाते हैं. जब दवा का प्रभाव खत्म होता है, तो वापस ऊपर आ जाते हैं.
भृंग (व्यस्क) नियंत्रण
वृक्षों पर कीटनाशकों का छिड़काव
मानसून की पहली बारिश के बाद भृंग शाम के समय जमीन से निकलते हैं. उस समय वृक्षों पर जैसे, नीम, बेर, गूलर, जामुन आदि पर निम्न दवाइयों का छिड़काव शाम से पहले कर देना दें. जब कीट रात के समय पत्तियां खाएंगे, तो मर जाएंगे. इसके लिए इमींडा क्लोरोपिड 20 एस.एल का 0.1-0.2 प्रतिशत घोल, मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू एस.सी.0.05 प्रतिशत या फिर कार्बरिल 50 डब्ल्यू .पी.0.02 प्रतिशत या क्यूनालफॉस 25 ई.सी.0.05 प्रतिशत का छिड़काव करें. घोल तैयार करने के लिए एक पीपा पानी (18 लीटर) में मि.ली मोनोक्रोटोफॉस या 72 ग्राम कार्बरिल या 36 मि.ली क्यूनालफॉस की आवश्यकता होगी.
ये खबर भी पढ़ें: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत लगे फार्म पॉन्ड से किसान बने आत्मनिर्भर, लगातार बढ़ रही आमदनी
फेरोमोन विधि
यह विधि सफेद लट की होलीट्रीकिया कनसाइनगिनिया प्रजाति के भृंग नियंत्रण में प्रभावी है. अन्य प्रजातिय़ों के लिए प्रभावी नहीं है. प्लास्टिक के डिब्बे में 10 से.मी. वर्गाकार स्पंज के टुकड़ों को फेरोमोन की कुछ बूंदे डालकर 2 मिनट तक भिगोएं. एक डिब्बे में 20 से 25 स्पंड के टुकड़ों के लिए 100 मिली. फेरोमोन की आवश्यकता होगी. इसके बाद हर स्पंज के टुकड़े को लगभग 7 से 8 इंच लंबे पतले तार के एक सिरे में पिरों दें और तार के दूसरे सिरे पर एक छोटा पत्थर लपेट दें फिर इसे परपोषी वृक्ष के ऊपर लटका दें. इस, तरह हर वृक्ष पर विभिन्न दिशाओं में 3 से 4 फेरोमोन स्पंड हर दिन शाम के समय लगभग 7:45 बजे पर भृंग निकलने के उसी वृक्षों पर लटकाएं.
कई बार मानसून से पहले की बारिश काफी अच्छी होती है, तो भृंग इसी बारिश के बाद निकल आते हैं और संभोग कर अंडे देते हैं और कुछ दिन बाद मानसून की बारिश शुरू होती है, तो फिर भृंग निकलते है और अंडे देते हैं. ऐसी परिस्थितियों में भृंग नियंत्रण के लिए कीटनाशी पसायनों का छिड़काव और फेरोमोन स्पंज का प्रयोग दो बार करना पड़ता है, पहले मानसून की बारिश के बाद और दूसरे मानसून की बारिश के बाद. पिछले कुछ सालों में ऐसा भी पाया गया है कि अप्रैल माह से गेहूं कटने पर खेत की सिंचाई के बाद भृंग जमीन से निकल आते हैं. इस अवस्था में भी छिड़काव करना चाहिए.
भृंग नियंत्रण के लिए छिड़काव करने वाले पोषी वृक्षों का चुनाव, छिड़काव करने की मशीन, कीटनाशक, स्पंज तार आदि का प्रबंध बारिश से पहले कर लेना चाहिए ताकि बारिश के आते ही बिन देर हुए भृंग नियंत्रण अभियान शुरू किया जा सके. इस अभियान के तहत हर पेड़ पर छिड़काव करना चाहिए.
ये खबर भी पढ़ें: सिंचाई की इस तकनीक को अपनाकर किसान ने बेकार पड़ी 4 एकड़ खेत में उगाई सब्जियां, मिल सकता है 25 लाख का इनाम
भृंग संकलन
भृंग नियंत्रण, परपोषी वृक्षों पर कीटनाशी रसायन के छिड़काव के अतिरिक्त भृंग संकलन द्वारा भी किया जा सकता है. जहां पर छिड़काव की सुविधा नहीं हो, वहां रात में लगभग 9 बजे पोषी वृक्ष को बांस से हिलाकर नीचे चादर, प्लास्टिक शीट या त्रिपाल बिछाकर भृंग एकत्रित किए जा सकते हैं. इन्हें पानी और तेल के पानी में डालकर नष्ट कर दें. कुछ प्रजातियों के भृंग का लाइट ट्रैप द्वारा भी संकलन किया जा सकता है.
लट नियंत्रण
गन्ने की फसल में बुवाई के समय किया गया जमीन में रासायनिक उपचार बहुत प्रभावी नहीं होता है, क्योंकि इस उपचार का प्रभाव लट निकलने के समय तक अधिक अंतराल होने के कारण नहीं रहता है. इसका उपचार भृंग निकलने के 20 से 22 दिन बाद लट की पहली अवस्था में गन्ने की खड़ी फसल में सिंचाई के साथ क्लोरोपाइरीफास 20 ई.सी. या क्यूनालफास 25 ई.सी. या क्यूनालफास 20 ए.एफ., चार लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से या इमीडा क्लोरोपिड 20 एस. एल. 30 मि.ली हेक्टेयर की दर से खेत में डालें. दवाई को सिंचाई के साथ किसी बर्तन में पानी मिलाकर क्यारी के पानी आने वाले किनारे की तरफ तिपाई पर रखे दें ताकि दवाई बूंद-बूंद करके सारे खेत में फैल जाए या दवाई को 80 से 100 किलोग्राम मिट्टी में मिलाकर पौधों के पास डाल दें और सिंचाई कर दें.
फसल की कटाई के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने से लटों को पक्षी खा जाते हैं. अगर न हों तो एक व्यक्ति हल के पीछे इन लटों को इकट्ठा कर सकता है.
ये खबर भी पढ़ें: PM Kisan Yojana: इस महीने से आएगी पीएम किसान योजना की छठी किश्त, करोड़ों किसानों को मिलेगा लाभ
Share your comments